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यहां सेवाभावना से बनता-बंटता है मिड डे मील
–नवीन गौतम
(मुख्य संवाददाता)
एक तरफ जहां बिहार जैसी घटनाएं मिड डे मील स्कीम में सरकारी क्रियान्वयन की कलई खोल रही हैं वहीं कई गैर सरकारी संस्थाओं ने इस योजना में सफलतापूर्वक योगदान कर एक नया मानदंड स्थापित किया है। इन्हीं में से एक है इस्कॉन फूड रिलीफ फाउंडेशन।
‘जैसा मिलेगा अन्न वैसा होगा मन’ की नीति पर चलते हुए यह संस्था अपने काम को बखूबी अंजाम दे रही है। यह काम इस संस्था के लिए बिजनेस नहीं बल्कि बच्चों की सेवा है। इसकी स्वच्छता, गुणवत्ता और समयबद्धता के चलते ही इस्कॉन फूड रिलीफ फाउंडेशन की रसोई को आइएसओ 9000 प्रमाणपत्र भी मिल चुका है। संस्था की देश में संचालित 32 अत्याधुनिक रसोई में बच्चोंं के लिए भोजन उसी तरह से तैयार किया जाता है, जैसे भगवान का भोग लगाने के लिए प्रसाद तैयार होता है। इन रसोइयों में तैयार भोजन हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, आंध्रप्रदेश आदि राज्यों के 12 लाख स्कूली बच्चों को रोजाना उपलब्ध कराया जाता है। भोजन को बच्चों को देने से पहले संस्था की टीम टेस्ट करती है। स्कूल पहुंचने पर शिक्षकों से टेस्ट कराया जाता है।
संसाधन
संस्था की गुड़गांव स्थित रसोई में बच्चों के लिए मिड डे मील तैयार करने के लिए सब्जियां सफल से और फुल क्रीम मदर डेयरी से मंगाए जाते हैं। ब्रांडेड मसाले और अन्य उच्चस्तरीय सामग्री का इस्तेमाल किया जाता है। साफ-सफाई का पूरा ख्याल रखते हुए भाप से बनने वाले इस भोजन को मशीनों के सहारे तैयार किया जाता है। यहां एक बार में 20 हजार रोटियां बनाने वाली मशीन लगी है। खाना बनाने वाले सारे बर्तन स्टेनलैस स्टील के हैं। सब्जियों की कटाई मशीनों से की जाती है। अनाज की सफाई महिलाएं करती है तो मशीनों का इस्तेमाल भी होता है। लगभग 150 लोग इस रसोई में भोजन बनाने की देखभाल प्रक्रिया में लगे हुए हैं। रसोई में छह सौ से दस हजार लीटर तक के 20 कुकर हैं।
प्रक्रिया
सुबह चार बजे से भोजन बनना शुरू होता है और आठ बजते-बजते यह डिस्पैच के लिए तैयार कर दिया जाता है। भोजन को स्टेनलेस स्टील के डिब्बे में डालकर सील करने से पहले रसोई के ही दस लोग टेस्ट करते हैं। हर दिन दस नए व्यक्ति इस प्रक्रिया का हिस्सा बनते हैं। उनकी हरी झंडी के बाद डिब्बों में सील बंद कर 35 विशेष गाड़ियां इसे लेकर स्कूलों की ओर रवाना हो जाती हैं। सुबह 9.30 बजे तक स्कूलों में भोजन पहुंचने का लक्ष्य होता है। 10.30 बजे बच्चों को खाना देना होता है। स्कूलों में भी बच्चों को देने से पहले शिक्षक के समक्ष भोजन के डिब्बे की सील खुलती है। पहले शिक्षक चखते हैं, उनकी स्वीकृति के बाद ही बच्चोंं को भोजन दिया जाता है। शिक्षक के भोजन चखने तक फाउंडेशन कर्मी स्कूल में मौजूद होते हैं।
सवाल नीति और नीयत का
गुड़गांव के 625 स्कूलों के एक लाख पांच हजार बच्चों को मिड डे मील बनाने और पहुंचाने की जिम्मेदारी इस्कॉन फूड रिलीफ फाउंडेशन को दो साल पहले मिली। हरियाणा के दूसरे जिलों में यह काम 2006 में शुरू किया गया। संस्था द्वारा सफलतापूर्वक इस काम को अंजाम देने के पीछे उसकी नीति और नीयत मुख्य कारण है। संस्था के वाइस प्रेसीडेंट धनंजय कृष्ण दास से बातचीत के प्रमुख अंश:
कसौटी शुद्धता की: जिन गाड़ियों में खानेके डिब्बे जाते हैं, उन्हें भी स्वच्छ किया जाता है। मशीनों और बर्तनों की सफाई का विशेष ख्याल रखा जाता है। भोजन में पोषण स्तर का पूरा ख्याल रखा जाता है। खाने के चयन में डायटीशियन मदद करते हैं।
वित्त की व्यवस्था: सरकार से मिलने वाला फंड प्रति बच्चा 3 रुपया 25 पैसा है जबकि एक बच्चे के भोजन के लिए फाउंडेशन को 5 रुपये 50 पैसे लगाने होते हैं। यह अंतर लोगों के दान में मिले पैसों से पूरा किया जाता है।
विरोध का सामना: संस्था की नीति और नीयत ठीक है इसलिए दिक्कत कुछ ऐसे लोगों को होती है जो इसे बिजनेस के तौर पर लेते हैं। वह हमारा विरोध करते हैं, कई जगह शुरू में भोजन नहीं उतरने दिया, गाड़ी तोड़ी गई लेकिन बाद में सब ठीक हो गया।
पुस्तकों का भी वितरण
संस्था अपनी गाड़ियों से बच्चों को किताबें भी निशुल्क पहुंचाती है। इससे बच्चों को किताबें समय पर मिल जाती हैं।
21 जुलाई को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख ‘जहर की खुराक’ पढ़ने के लिए क्लिक करें.
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