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सरकारी खर्च पर चुनाव!

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चुनाव में काले धन के प्रयोग को रोकने के लिए समय-समय पर चिंताएं जाहिर की गई। इसके तहत समितियां भी गठित हुईं लेकिन उनकी सिफारिशों पर अमल नहीं हो सका।


compaign materialइंद्रजीत गुप्ता समिति

भाजपा के नेतृत्व वाली राजग ने चुनावी प्रणाली में व्यापक सुधार लाने के तहत जून, 1998 में इंद्रजीत गुप्ता की अध्यक्षता में संसदीय समिति का गठन किया। इस समिति के अन्य सदस्यों में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी [मा‌र्क्सवादी] के नेता सोमनाथ चटर्जी, वर्तमान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, शिवसेना के मधुकर सरपोतदार, भाजपा के विजय कुमार मल्होत्रा, अन्नाद्रमुक के एसआर मुथैया और समता पार्टी के दिग्विजय सिंह शामिल थे। देश भर के राजनीतिक दलों से विस्तृत सलाह मशविरा के बाद समिति ने अपनी रिपोर्ट केंद्रीय गृह मंत्रालय और कानून मंत्रालय को सौंपी।


प्रमुख सिफारिशें: समिति ने सरकारी खर्च पर चुनाव का समर्थन करते हुए कहा कि कम धन वाले दलों के लिए बराबरी का मौका वाले हालात स्थापित करने के लिए यह पूरा न्यायोचित, संवैधानिक और विधिसम्मत के साथ-साथ जनहित में भी है।


* केंद्र सरकार द्वारा सालाना 600 करोड़ रुपये योगदान वाले एक अलग चुनाव कोष का निर्माण किया जाए [10 रुपये प्रति मतदाता के हिसाब से 60 करोड़ मतदाताओं के लिए]। इस कोष में यथोचित भागीदारी सभी राज्य सरकारों की भी होगी।


* सरकारी खर्च पर चुनाव कराने की दो सीमाएं हों। पहला यह कि चुनाव खर्च उन्हीं राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियों को दिया जाए जिनको चुनाव चिन्ह आवंटित किया गया हो। निर्दलीय उम्मीदवारों को यह खर्च न दिया जाए। दूसरा यह कि अल्प कालीन स्टेट फंडिंग के तहत मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों और उनके उम्मीदवारों को यह मदद अन्य सुविधाओं के रूप में दी जाए।


* रिपोर्ट प्रस्तुत करते समय चूंकि देश की माली हालत इस लायक नहीं थी कि चुनाव का पूरा खर्च सरकार उठा सके, इसलिए समिति ने पूरे खर्च की बजाय उपयुक्त आंशिक खर्च वहन करने का सुझाव दिया।


scales-icon-largeलॉ कमीशन की रिपोर्ट

1999 में लॉ कमीशन ने इस मसले पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।

प्रमुख सिफारिशें: पूरे सरकारी खर्च पर चुनावों को संपन्न कराना तभी वांछनीय है जब तक कि राजनीतिक दलों को अन्य स्नोतों से धन लेने पर पाबंदी हो।


* इंद्रजीत गुप्ता समिति की सिफारिशों का समर्थन करते हुए लॉ कमीशन ने भी आंशिक स्टेट फंडिंग की वकालत की.


* इसके अतिरिक्त राजनीतिक दलों के लिए चुनाव खर्च मुहैया कराए जाने के प्रयास से पहले उन्हें उपयुक्त नियामक तंत्र के दायरे में लाया जाए। जैसे ऐसे प्रावधान किए जाएं जिससे दलों का आंतरिक लोकतंत्र, आंतरिक संरचना और हिसाब-किताब का रखरखाव और चुनाव आयोग के समक्ष उनकी ऑडिट रिपोर्ट पेश करना सुनिश्चित हो.


प्रशासनिक सुधार आयोग की रिपोर्ट

2008 में दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग ने भी सरकारी खर्चे पर चुनाव कराने पर अपनी रिपोर्ट दी.

प्रमुख सिफारिशें: अनैतिक और अनावश्यक फंडिंग को कम करने के उद्देश्य से आंशिक रूप में सरकारी खर्च पर चुनाव कराए जाएं.


संविधान समीक्षा आयोग

संविधान के कामकाज की समीक्षा करने वाले आयोग ने 2001 में इस मसले पर अपनी सिफारिशें पेश की।


प्रमुख सिफारिशें: आयोग ने सरकारी खर्च पर चुनाव कराने के विचार को सिरे से खारिज करते हुए 1999 में लॉ कमीशन की उस सिफारिश को लागू किए जाने की वकालत की जिसमें कहा गया है कि स्टेट फंडिंग पर विचार करने से पहले राजनीतिक दलों को उपयुक्त नियामक तंत्र के दायरे में लाया जाए.


15 जनवरी को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “कायदा-कानून : चुनाव” पढ़ने के लिए क्लिक करें.

15 जनवरी को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “आम जनता की चुप्पी टूटेगी तभी बनेगी बात” पढ़ने के लिए क्लिक करें.

15 जनवरी को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “नोट के बदले वोट!” पढ़ने के लिए क्लिक करें.


साभार : दैनिक जागरण 15 जनवरी 2012 (रविवार)

नोट – मुद्दा से संबद्ध आलेख दैनिक जागरण के सभी संस्करणों में हर रविवार को प्रकाशित किए जाते हैं.

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