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भारत के लिए होगी गंभीर चुनौती

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भरत वर्मा (संपादक- इंडियन डिफेंस रिव्यू)
भरत वर्मा (संपादक- इंडियन डिफेंस रिव्यू)

आने वाले वर्षों में पाकिस्तान में आंतरिक कलह बढ़ेगी। सेना, राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी और प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी को हटाकर इन पदों पर अपना आदमी बिठाना चाहती है, लेकिन गिलानी ने जिस तरह से पूरे मामले को संभाला उससे सेना को अपने कदम पीछे हटाने पड़े। देश की सबसे ताकतवर संस्था सेना इस बात को आसानी ने खत्म नहीं होने देगी। सेना के अधिकांश अफसर और सैनिक पंजाब प्रांत से आते हैं। सेना द्वारा पोषित जिहादी फैक्टरी के लिए भी वहीं से ही भर्ती की जाती है। नतीजतन, पाक सेना किसी भी अन्य जातीय समूह के द्वारा उठाए जाने वाले विद्रोह को कुचलने में सक्षम है। अधिकांश राजनीतिक दल और सिविल सोसायटी भी भविष्य में सैन्य विद्रोह का समर्थन करने के इच्छुक नहीं हैं। इसलिए आगामी दिनों में सैन्य प्रमुख कियानी और आइएसआइ लोकतांत्रिक सरकार को गिराने के लिए गंदे तरीके आजमा सकते हैं।


एक ओर बलूचिस्तान जहां सुलग रहा है वहीं यदि जरदारी को जबरन सत्ता से बेदखल किया जाता है तो सिंध में भी विद्रोह की लपटें उठने लगेंगी। न्यायापालिका सैन्य तानाशाही को सहन नहीं करेगी। संसद सदस्य लोकतंत्र की सर्वोच्चता चाहते हैं। सेना की अपनी महत्वाकांक्षाएं हैं और न्यायपालिका अपनी स्वायत्तता को बरकरार रखना चाहती हैं। इनकी वजह से अप्रिय स्थितियां पैदा होंगी। इन सबके अलावा तमाम जातीय समूह पंजाबी पाकिस्तान से आजादी चाहते हैं।


भारत के लिए इसके सीमित निहितार्थ हैं। पाकिस्तानी सेना जितना ज्यादा अपने लोगों से लड़ने में मशगूल रहेगी उतना ही कम ध्यान वह अपने तथाकथित दुश्मन भारत को देगी। हालांकि यदि वह अपनी आंतरिक समस्याओं से निपटने में कामयाब रहती है और भारत के खिलाफ चीन से हाथ मिला लेती है तो भारत को दो मोर्चों पर निपटना होगा। चीन पहले से ही पाकिस्तान को अपने एक प्रांत की तरह समझने लगा है। इसके अलावा यदि पाक सेना की मदद से तालिबान अफगानिस्तान की सत्ता में आ जाता है तो पड़ोस में एक कट्टर इस्लामिक राष्ट्र परिदृश्य में उभरेगा जो हमारी बहु-सांस्कृतिक और बहु-दलीय लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए खतरनाक होगा।


ऐसे में भारत के लिए अपनी आंतरिक समस्याओं से निपटना चुनौती होगी। देश को अपनी सेना का आधुनिकीकरण करना होगा जो सीमाओं की रक्षा करने और रणनीतिक हितों को बढ़ाने में मददगार होगा। यह कदम अस्थिर पाकिस्तान से निपटने में एक गारंटी के तौर पर होगा। यदि पाकिस्तान के हालात नहीं सुधरे तो आने वाले वर्षों में पाकिस्तान छिन्न-भिन्न होता जाएगा। पंजाबी वर्चस्व वाले पाकिस्तान से मुक्ति की छटपटाहट में इसके कई राज्य अलग होना चाहेंगे। नतीजतन, अगले 15 वर्षों के भीतर भारतीय उपमहाद्वीप का भूगोल काफी हद तक यूरोपीय संघ की तरह हो सकता है।


इसके विपरीत यदि वह भारत की तरह संघीय व्यवस्था को अपनाते हुए संसदीय लोकतंत्र की व्यवस्था कर लेता है और सेना को संवैधानिक भूमिका में ला पाता है तो वह अस्थिरता से उबर संपन्नता की ओर बढ़ सकता है।


मुद्दा जनमत

chart-1क्या पाकिस्तान में लागातार अस्थिरता का दौर भारत के हित में है?

नहीं: 58%

हां: 42%


chart-2क्या पाकिस्तान में परिपक्व लोकतंत्र विकसित हो सकेगा ?

नहीं: 25%

हां: 75%



आपकी आवाज

जब तक पाकिस्तान में आम जन की बजाय सेना और अमेरिका का अधिकाधिक दखल रहेगा, तब तक वहां लोकतंत्र अपरिपक्व ही रहेगा। -नारायणदत्त.@जीमेल.कॉम


वहां के नागरिकों में जागरूकता आएगी तभी स्थाई और पूर्ण लोकतंत्र विकसित हो पाएगा। -संतोष एलएलबी@याहू.कॉम


किसी भी देश का लोकतंत्र तब तक कामयाब नहीं हो सकता है, जब तक की वहां की आम जनता अपने अधिकारों एवं कर्तव्यों के प्रति अच्छी तरह से सचेत न हो। -राजू09023693142@जीमेल.कॉम


पड़ोस में लगातार अस्थिरता से भारत को बड़ा खतरा हो सकता है। परमाणु ताकत वाले देश में हथियारों का आतंकियों के हाथ लगने की अशंका होगी। -अखिलेश1195@जीमेल.कॉम


22 जनवरी को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “परेशान पाकिस्तान” पढ़ने के लिए क्लिक करें.

22 जनवरी को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “खुशहाल पड़ोस दूर की कौड़ी” पढ़ने के लिए क्लिक करें.

22 जनवरी को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “कैसा हो पाकिस्तान!” पढ़ने के लिए क्लिक करें.


साभार : दैनिक जागरण 22 जनवरी 2012 (रविवार)

नोट – मुद्दा से संबद्ध आलेख दैनिक जागरण के सभी संस्करणों में हर रविवार को प्रकाशित किए जाते हैं.


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