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धौनी जैसे भारतीय बल्लेबाजों ने निर्धारित ओवर के क्रिकेट की तरह अपनी बल्लेबाजी शैली में बदलाव नहीं किया। वे टेस्ट में भी उसी तरह खेलते हैं। जल्दबाजी करते हैं। उन्हें कुछ वक्त लेना चाहिए और अपनी पारी को बढ़ाना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं कर पाते। क्रीज पर कुछ समय ही टिक पाते हैं। आए, अपने कंधे खोले और गेंदों पर प्रहार शुरू कर दिया। इसकेबजाए उन्हें स्ट्रेट खेलना चाहिए और इस तरह वह मूव करती हुई गेंद को स्टंप के पीछे ढकेल सकते हैं। भारतीय उतने आक्रामक भी नहीं हैं, जैसा कि ऑस्ट्रेलियाई, जो केवल एक तरह का ही खेल खेलना जानते हैं और वह है आक्रामक क्रिकेट। भारत रक्षात्मक क्रिकेट खेल रहा है। -सुनील गावस्कर [पूर्व भारतीय क्रिकेटर]
कुशल कप्तानी भी मायने रखती है, लेकिन आप तब केवल कप्तान पर अंगुली नहीं उठा सकते हैं, जब टीम का कोई भी खिलाड़ी प्रदर्शन करने का बूता न रखे। ऑस्ट्रेलिया में धौनी या कोई भी कप्तान क्या करेगा, जब उसके धुरंधर बल्लेबाज एक के बाद एक हथियार डाल देंगे। भारतीय टीम के सामने प्रदर्शन की चुनौती है। एकजुट प्रदर्शन की। पूरी टीम को एक कारगर रणनीति पर एकजुट होकर अमल करना होता है, तभी सफलता हासिल होती है। देश या विदेश में यही चीज काम आती है। व्यक्तिगत प्रदर्शन नहीं।-कपिल देव [पूर्व क्रिकेटर]
भारतीय बल्लेबाजों के खाते में शानदार रिकॉर्ड और बेहतरीन व्यक्तिगत स्कोर हैं। हम उन्हें मानसिक चुनौती देकर ही रोक सकते हैं। यही हम करते हैं। उन्हें रन बनाने से रोक देते हैं और उन पर दबाव बन जाता है। यह हमारा तरीका है। टेस्ट क्रिकेट दबाव का नाम है। पुख्ता रणनीति ही परिणाम देती है। अगर आप सिडनी में देखें तो सचिन और लक्ष्मण ने यहां बेहतरीन प्रदर्शन किया है। पारंपरिक तौर पर यहां उछाल थोड़ा कम होता है। यह ऑस्ट्रेलिया में उस तरह के विकेटों में शामिल है, जहां उपमहाद्वीप से मिलती जुलती परिस्थितियां होती हैं। लेकिन इस बार यहां थोड़ा सा बदलाव है। पिच पर थोड़ी घास है। ऐसे में सिडनी भी अब भारतीय बल्लेबाजों के लिए स्वर्ग नहीं रहा।-मिकी ऑर्थर [ऑस्ट्रेलियाई कोच]
एक या दो बल्लेबाजों के सहारे स्कोर बनाने का सपना भुला देना चाहिए। जिस तरह इंग्लैंड में अकेले राहुल द्रविड़ काफी नहीं रहे थे, वैसे ही ऑस्ट्रेलिया में तेंदुलकर के सहारे टीम की नैया पार नहीं हो सकी। टीम को अपने अन्य बल्लेबाजों से भी रन की जरूरत होती है। गंभीर और सहवाग को शर्मिदगी महसूस हो रही होगी। पूरे साल उनके बल्ले से शतक नहीं बना। कोहली टेस्ट में अपनी जगह पक्की करने की कोशिश में लगे हुए हैं। ऐसे में करियर के आखिरी वर्षो में सचिन, द्रविड़, लक्ष्मण पर ज्यादा बोझ पड़ रहा है।-रवि शास्त्री [पूर्व क्रिकेटर]
इस टीम के बारे में आप क्या कह सकते हैं, जो पहले ही दिन पहले ही सत्र में ढेर हो जाती है। भारतीय क्रिकेट के सामने बहुत बड़ा सवाल उठ खड़ा हुआ है। भविष्य सुधारना है तो यह सजग हो जाने का वक्त है। योजनाबद्ध तरीके से और नए सिरे से सबकुछ तैयार करना होगा। दो साल का टारगेट रखकर टीम को कसना होगा। जुझारू और कुशल क्रिकेटरों की फौज तैयार करनी होगी, जो हर मैदान पर खरे उतरें। बेशक धौनी की टीम विश्वविजेता है, लेकिन ऑस्ट्रेलिया में हम उसका हाल देख रहे हैं।-दिलीप वेंगसरकर [पूर्व क्रिकेटर]
भारतीय टीम में बेशक दिग्गज बल्लेबाज हों, लेकिन हमें पता है कि वे ऑस्ट्रेलिया में खुद को असहज महसूस करते हैं। वे जिस तरह भारत में खेलते हैं, वैसा ऑस्ट्रेलिया की उछाल भरी पिचों पर नहीं खेल पाते। आप भारतीय बल्लेबाजी लाइन अप को देखकर सोच में पड़ जाएंगे कि इन खिलाड़ियों को कोई कैसे आउट करेगा। लेकिन सभी जानते हैं कि वे वहां असहज हो जाते हैं, जहां का विकेट भारत से अलग होता है और हमें लगता है कि उनका मानसिक दृष्टिकोण भी भारत में खेलने के उनके दृष्टिकोण से थोड़ा अलग होगा। वे उछाल भरे विकेट से सामंजस्य नहीं बिठा पाते।-डेविड वार्नर [ऑस्ट्रेलियाई सलामी बल्लेबाज]
जनमत
क्या विदेश में ढेर हो जाने के पीछे हमारे क्रिकेटरों की कमजोर मानसिकता और कोचिंग दोषी है?
हां : 83 %
नहीं: 17%
क्या टीम इंडिया के कुछ सीनियर खिलाड़ियों को अब जगह खाली कर देनी चाहिए?
हां: 64%
नहीं: 36%
आपकी आवाज
पुराने खिलाड़ियों की जगह नए खिलाड़ियों को आगे आने का मौका देना चाहिए. ताकि वे अपनी अच्छी इमेज बनाने के लिए अच्छा खेलें -राजू 09023693142 @ जीमेल.कॉम
हमारे क्रिकेटर विदेशों में बहुत ही निराशाजनक खेल रहे हैं। इसके लिए उनकी कमजोर मानसिकता और कोचिंग ही जिम्मेदार है -गोविंद शुक्ला 412 @ जीमेल.कॉम
08 जनवरी को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “घर में शेर, बाहर क्यों ढेर?” पढ़ने के लिए क्लिक करें.
साभार : दैनिक जागरण 08 जनवरी 2012 (रविवार)
नोट – मुद्दा से संबद्ध आलेख दैनिक जागरण के सभी संस्करणों में हर रविवार को प्रकाशित किए जाते हैं.
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