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आम जनता की चुप्पी टूटेगी तभी बनेगी बात

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टेलीकॉम घोटाला हो राष्ट्रमंडल घोटाला हो या किसी दागी राजनेता द्वारा गबन करने का मामला हो जनता खूब हो हल्ला करती है, लेकिन चुनावों के दौरान खुले रूप से हो रहे काले धन के खर्च पर सभी लोग चुप्पी साधे रहते हैं।


चुनावों में काले धन का बढ़ता प्रयोग बड़ी समस्या बन चुका है। चुनाव आयोग को मिली खुफिया सूचनाओं के अनुसार वर्तमान पांच राज्य विधानसभा चुनावों के दौरान केवल उत्तार प्रदेश में दस हजार करोड़ रुपये का काला धन खपाया जा सकता है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफा‌र्म्स [एडीआर] के अनुसार विधानसभा चुनावों में प्रत्येक उम्मीदवार औसतन तय सीमा से आठ से दस गुना अधिक धन खर्च करता है। गौरतलब है कि उत्तार प्रदेश जैसे बड़े राज्य में विधानसभा चुनाव खर्च सीमा 16 लाख रुपये है। एडीआर की रिपोर्ट में इसका भी आकलन किया गया है कि केवल उत्तार प्रदेश में हर एक पार्टी औसतन 3,000 से 5,000 करोड़ रुपये खर्च कर सकती है। इस तरह से सभी राजनीतिक दलों द्वारा केवल उत्तार प्रदेश में खर्च किए जाने वाले धन का आंकड़ा ही 15,000 से 25,000 करोड़ रुपये पहुंच जाता है।


आज के इस दौर में बिना धनबल के हम चुनाव को नहीं समझ सकते हैं। राजनीति में बिना धन के न तो प्रतिस्पर्धी बहुदलीय लोकतंत्र को चलाया जा सकता है और न ही उनकी सरकारें काम कर सकती हैं। शराब और बाहुबल से मतदाताओं को रिझाने की कोशिश चुनावों में काले धन के प्रयोग की विसंगति का नतीजा है।


राजनीति में धन के प्रयोग के बढ़ते चार खतरे प्रमुख हैं जिसके चलते इस पर नियंत्रण के प्रयास तेजी से किए जा रहे हैं।


Anupama Jha1 गैर बराबरी का मौका: राजनीति में भारी मात्रा में धन का उपयोग दूसरों की अपेक्षा अनुचित लाभ का द्वार खोलती है। यह प्रतिस्पर्धा के रास्ते का रोड़ा है। यद्यपि ज्यादा पैसे वाली पार्टी या उम्मीदवार हमेशा ही चुनाव नहीं जीतते, फिर भी दोनों यानी जीत और धन के बीच एक संबंध जरूर है।


2 असमान सत्ता पहुंच: दूसरा खतरा यह है कि गरीब तबके के लोग सत्ता तक नहीं पहुंच पाते या उन्हें उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाता है। ज्यादातर चुने गए उम्मीदवार बड़े वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं। इससे आज की प्रतिस्पर्धी राजनीति में प्रवेश के लिए जरूरत दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। जो इस लागत को नहीं वहन कर सकते हैं उनका राजनीतिक बिलगाव होता जा रहा है।


3 वैकल्पिक राजनीतिज्ञ: खतरा यह कि जो लोग पार्टियों को धन मुहैया कराते हैं वे राजनीतिज्ञों पर नियंत्रण न करने लगें। यहां चिंता यही है कि चुने गए प्रतिनिधि कहीं चयन करने वालों से ज्यादा चुनाव अभियान को वित्ता मुहैया कराने वालों के प्रति जवाबदेह न बन जाएं। महंगा होते चुनावों के इस दौर में सत्ता पाने की दौड़ में लगे कुछ उम्मीदवार अपने सिद्धांतों को ताक पर रख सकते हैं। चुने जाने पर वे अपने पूरे कार्यकाल में पूर्व में कुछ लोगों द्वारा की गई कृपा का ऋण चुकता करने में लग जाएं।


4 राजनीति का अपराधीकरण: खतरा यह कि यह गंदा या अवैध धन पूरे तंत्र को भ्रष्ट कर सकता है और कानून के राज को धता बता सकता है। राजनीतिज्ञों द्वारा अवैध स्नोतों से धन स्वीकार किया जाना भ्रष्टाचार का कारण हो सकता है।


दुर्भाग्य से लोकतंत्र की सच्ची भावना में हमारे वरिष्ठ राजनेता भी सबको बराबरी का मौका दिए जाने की आवश्यकता की सराहना नहीं करते। सत्ता में पहुंचने के लिए किसी भी कीमत पर चुनाव जीतने के लिए ये धन के अभद्र दिखावे के परहेज से भी नहीं हिचकिचाते। इससे भी बुरा यह कि आम जनता चुनावों में खर्च किए जाने वाले धन के महत्व को नहीं समझ पाती है। टेलीकॉम घोटाला हो, राष्ट्रमंडल घोटाला हो या किसी दागी राजनेता द्वारा गबन करने का मामला हो, जनता खूब हो हल्ला करती है, लेकिन चुनावों के दौरान खुले रूप से हो रहे काले धन के खर्च पर सभी लोग चुप्पी साधे रहते हैं।


राजनीति में धन पर नियंत्रण के लिए कुछ चीजें बहुत जरूरी हैं। इनमें धन के योगदान की सीमा, योगदान पर प्रतिबंध, खर्च सीमा, प्रचार समय सीमा, सार्वजनिक प्रकटीकरण और चुनाव अभियान का पब्लिक फाइनेंसिंग मुख्य हैं। इनमें से कुछ कोशिशें जैसे चुनाव प्रचार के दौरान समय सीमा की पाबंदी और कुछ हद तक सार्वजनिक प्रकटीकरण भारत में लागू हैं। समर्थकों और विपक्षी दलों में राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव के साथ-साथ देश के नीति नियंताओं के एक बड़े समूह की मौजूदा राय के चलते राजनीति में धन के उपयोग की बढ़ती प्रवृत्तिको सुधारने के लिए कोई कानून आज भी दूर की कौड़ी है।


मुद्दा: जनमत

chart-1क्या चुनाव में काले धन का प्रयोग रोकना असंभव है?


नहीं: 37%

हां: 63%


chart-2क्या सरकारी खर्च पर चुनाव कराना काले धन के बढ़ते प्रयोग के खिलाफ कारगर होगा?


नहीं: 48%

हां: 52%



आपकी आवाज

जब तक चुनाव में काले धन के प्रयोग को रोकने के लिए कठोर कानून नहीं लाया जाएगा और मतदाताओं को जागरूक नहीं किया जाएगा, तब तक इस प्रवृत्तिको रोकना मुश्किल है। -नारायणदत्ता.एडवोकेट @ जीमेल.कॉम


जब तक देश में कानून व्यवस्था को सही नहीं किया जाता है, तब तक चुनाव में काले धन का प्रयोग रोकना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। अगर देश की कानून व्यवस्था सही होती तो यहां काले धन का नामोनिशान ही नहीं होता।-राजू 09023693142 @ जीमेल.कॉम


15 जनवरी को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “कायदा-कानून : चुनाव” पढ़ने के लिए क्लिक करें.

15 जनवरी को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “सरकारी खर्च पर चुनाव!” पढ़ने के लिए क्लिक करें.

15 जनवरी को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “नोट के बदले वोट!” पढ़ने के लिए क्लिक करें.


साभार : दैनिक जागरण 15 जनवरी 2012 (रविवार)

नोट – मुद्दा से संबद्ध आलेख दैनिक जागरण के सभी संस्करणों में हर रविवार को प्रकाशित किए जाते हैं.

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