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खतरा टला नहीं है

मुद्दा
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आतंक: ओसामा मारा गया। दुनिया ने राहत की सांस ली। पश्चिमी देशों और वैश्विक आतंकवाद के खिलाफ मुहिम चलाने वाले अमेरिका में तो खासतौर पर खुशियां मनाई गईं, लेकिन अब जो अहम सवाल सबके दिमाग में कौंध रहा है वह यह है कि क्या अलकायदा सरगना ओसामा बिन लादेन के खात्मे के बाद आतंकवाद से हम सभी सुरक्षित हो गए हैं ? क्या इस क्षणिक जीत से अमेरिका ने आतंक पर विजय प्राप्त कर ली है?

मुहिम: छोटी-छोटी खुशियों पर जश्न मनाना पश्चिमी देशों का रिवाज है। फिर यह तो उनके सबसे बड़े दुश्मन की मौत थी जिसके पीछे अमेरिका पिछले दस साल से हाथ धोकर पड़ा था। आतंकवाद के खिलाफ अपनी वैश्विक मुहिम में ओसामा को पकड़ने के लिए अमेरिका अब तक दस हजार करोड़ डॉलर की रकम झोंक चुका है।

खतरा: बीमार ओसामा को मारने वाली अमेरिका की इस प्रतीकात्मक जीत पर हमें (भारत) खुशफहमी नहीं पालनी चाहिए। ओसामा की मौत के बाद ओबामा प्रशासन के शीर्ष लोग पाकिस्तान से अपने रिश्तों को पूर्ववत रखने की दलील दे रहें हैं और वे ऐसा करेंगे भी! दोनों के अपने-अपने स्वार्थ हैं जिनसे वे एक दूसरे से बंधे हुए हैं । पाकिस्तान भारत विरोधी अपनी नीति में बदलाव करने वाला नहीं है। वह अपनी जमीन पर हमारे खिलाफ सक्रिय आतंकी समूहों को खाद-पानी मुहैया कराता रहेगा। इसलिए यह गफलत में रहने का समय नहीं है बल्कि अब अपनी दीवारों को अभेद्य बनाने का वक्त आ गया है। ओसामा की मौत के बाद भी हमारे लिए आतंकवाद का खतरा टला नहीं है, लिहाजा यह बड़ा मुद्दा है।

जिंदा रहेगा ओसामा का जिन्न – -अजीत डोभाल
केसी (आइबी के पूर्व निदेशक और विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन के निदेशक)

ओसामा बिन लादेन के मारे जाने के बाद अफगानिस्तान, पाकिस्तान समेत दुनिया के कई देशों में सक्रिय आतंकी संगठन उसकी मौत का बदला लेने की जरूर कोशिश करेंगे। इससे भारतीय उपमहाद्वीप समेत पूरी दुनिया में आतंक का खतरा बढ़ गया है। ये आतंकी संगठन ओसामा को इस्लाम के नाम कुर्बान होने वाले शहीद का दर्जा देंगे। इन संगठनों के लिए यह एक आदर्श स्थिति है जिसमें ये ओसामा को जिहाद का हीरो बताते हुए नए आतंकियों की भर्ती कर सकते हैं।

अब पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा, हरकत जिहादी इस्लामी, जैश-ए-मुहम्मद, सिपह-ए-साहबा और लश्कर-ए-झांगवी जैसे अलकायदा के करीबी संगठनों को पुनर्जीवन और नया भावात्मक आधार मिल गया है। हालांकि अमेरिका द्वारा अफगानिस्तान में 2001 में शुरू किए गए ऑपरेशन इंड्यूरिंग फ्रीडम के बाद से अलकायदा ने अपनी रणनीति में आमूूलचूल बदलाव किए हैं। 2005 के बाद से उसके अधिकांश कमांडर गायब हो गए। आतंकी सदस्यों की संख्या में गिरावट आई। ओसामा बिन लादेन के गिरते स्वास्थ्य और संगठन के बीच आपसी संचार समुचित ढंग से नहीं हो पाने के कारण इसकी गतिविधियां कमजोर होती गईं। नतीजतन इस संगठन का चरित्र बदल गया। अलकायदा एक सक्रिय आतंकी संगठन की बजाए एक शक्तिशाली विचार बनता गया। ओसामा बिन लादेन इस्लामिक चरमपंथी संगठनों के लिए एक रोल मॉडल बनकर इनके ऊपर विचारधारात्मक स्तर पर हावी होता गया। इस विचार ने इन इस्लामिक चरमपंथी समूहों को एक रणनीति प्रदान की और इसी आधार पर कई संगठनों को वित्तीय मदद भी मिली।

ओसामा के मारे जाने के बाद अलकायदा और अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद के भविष्य का निर्धारण में कई तत्व अपनी भूमिका अदा करेंगे। सबसे बड़ा परिवर्तन तो अलकायदा में नेतृत्व का होगा। यदि अलकायदा की बागडोर अयमान-अल-जवाहिरी या किसी अन्य अरब या मिस्र के आतंकी के हाथों में जाती है तो इसके दुश्मन नंबर एक अमेरिका और पश्चिमी देश बने रहेंगे। लेकिन, यदि कमान किसी अफ-पाक आतंकी कमांडर मसलन इलियास कश्मीरी के पास जाती है तो भारत उसके लिए उसके लिए सबसे बड़ा दुश्मन होगा। अलकायदा के नेतृत्व के आधार पर ही आतंकी गतिविधियों की रणनीति तय होगी। इलियास कश्मीरी बेहद खतरे वाले ऑपरेशन को अंजाम देने में भी गुरेज नहीं करता है। जबकि अयमान-अल-जवाहिरी दीर्घकालिक रणनीति बनाता है। वह तमाम बिखरे सुन्नी आतंकी संगठनों को एक बैनर तले लाने का प्रयास भी कर सकता है।

पूरे आतंकी परिदृश्य से ओसामा के हटने के बाद पाकिस्तान की नीतियां भी आतंकवाद की दशा-दिशा के निर्धारण में भूमिका निभाएंगी। अगर भारत विरोधी संगठनों को पाकिस्तान समर्थन देना जारी रखता है तो यह भारत के लिए गंभीर चुनौती होगी। दरअसल भारत को अब इस वास्तविकता से रूबरू होने की जरूरत है कि पाकिस्तान के पास झूठ बोलने, धोखा देने और दगा करने की असीमित क्षमताएं हैं। जब वह अमेरिका जैसे अपने बेहद करीबी सहयोगी देश के साथ ऐसा कर सकता है तो फिर किसी भी प्रकार की गलतफहमी की गुजांइश नहीं बचती। ओसामा की मौत के बाद 6 मई को अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने रोम में वक्तव्य जारी करते हुए कहा पाकिस्तान से उनके संबंध यथावत रहेंगे। पाकिस्तान भारत विरोधी अपनी रणनीति में कोई बदलाव लाने वाला नहीं है। ऐसे में आतंकवाद पर प्रहार की उम्मीद बहुत कम नजर आती है। हमें अपने बलबूते ही आतंकवाद से निपटना होगा।

8 मई को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “आतंकवाद का नासूर बन चुका है पाकिस्तान” पढ़ने के लिए क्लिक करें.

8 मई को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “आतंकियों के पास परमाणु हथियार!” पढ़ने के लिए क्लिक करें

8 मई को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “दाऊद इब्राहिम और भारत – जनमत” पढ़ने के लिए क्लिक करें

साभार : दैनिक जागरण 8 मई 2011 (रविवार)
नोट – मुद्दा से संबद्ध आलेख दैनिक जागरण के सभी संस्करणों में हर रविवार को प्रकाशित किए जाते हैं.

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