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आतंकवाद का नासूर बन चुका है पाकिस्तान

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-प्रोफेसर उमा सिंह
(अंतरराष्ट्रीय मामलों की जानकार और पाकिस्तान विशेषज्ञ)

लंबे अर्से से पाकिस्तानी प्रशासकों का वहां मौजूद आंतकी संगठनों से नाता रहा है। ये आतंकी संगठन मुख्यतया अफगानिस्तान और भारत के खिलाफ आतंकी गतिविधियों में सक्रिय हैं । अलकायदा और अफगान तालिबान के साथ अन्य आतंकी समूहों ने पाकिस्तान के जनजातीय इलाकों (अफगान सीमा से सटे अर्ध स्वायत्त इलाके) को अपना डेरा बना रखा है। अब ये संगठन पाकिस्तानी आतंकी समूहों के साथ मिलकर साथ काम कर रहे हैं । अप्रैल 2009 में अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने भी कहा कि नाभिकीय हथियारों वाले देश पाकिस्तान में बिगड़ती सुरक्षा व्यवस्था अमेरिका और विश्व के लिए जानलेवा खतरा बन चुकी है।

पाकिस्तान के अंदर और इसके बाहर सक्रिय आतंकी संगठनों की संख्या का ठीक-ठीक पता लगाना मुश्किल काम है लेकिन इस समूहों को पांच श्रेणियों में बांटा जा सकता है। (देखें बाक्स) साल 2002 में पाकिस्तानी सेना द्वारा वहां के जनजातीय इलाकों में आतंकी समूहों को खत्म करने वाले अभियान के बाद अफगान तालिबान के समर्थकों ने अपने आप को खुद की तालिबान फौज की मुख्यधारा से जोड़ लिया। दिसंबर 2007 में हताश आतंकवादियों के करीब 13 समूहों ने तहरीक-ए-तालिबान (पाकिस्तानी तालिबान से भी जाना जाने वाला समूह) से जुड़ गए। इन समूहों ने दक्षिण वजीरिस्तान के आतंकी कमांडर बैतुल्लाह महसूद को अपना सरगना मान लिया। अगस्त 2009 में अमेरिकी मिसाइल हमले में महसूद के मारे जाने के बाद उसका चचेरा भाई और संगठन में दूसरे स्थान पर रहे हकीमुल्लाह महसूद ने तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान की बागडोर संभाली। पिछले कुछ साल में तालिबान शैली की इस्लामिक विचारधारा के तहत इन लोगों ने खुद को संगठित करना शुरू कर दिए हैं । इनका यह एजेंडा अफगानिस्तान के अफगान तालिबान से मिलता-जुलता है।

पाकिस्तान को निशाना बनाने वाले आतंकी समूहों में वृद्धि होने के साथ वहां पर दिनोदिन हिंसा बढ़ती जा रही है। आतंकियों की नई पौध भी आत्मघाती हमले करने में उत्सुक रहती है। अलकायदा पाकिस्तान के आतंकी समूहों को तकनीकी विशेषज्ञता और क्षमता मुहैया कराने के अलावा इनके बीच सहयोग को बढ़ावा देता है।

इन आतंकियों ने अपने नियंत्रण का विस्तार करते हुए पाकिस्तान के अन्य हिस्सों पर भी अपना प्रभाव स्थापित कर लिया है। ये इलाके हैं , दक्षिण पंजाब, उत्तर पश्चिम सीमांत प्रांत के कुछ हिस्सों और सुदूर दक्षिण। जैसाकि करांची स्थित पाकिस्तान मिलिट्री विश्लेषक आयशा सिद्दीकी का मानना है कि दक्षिण पंजाब जिहादियों का केंद्र बन चुका है। 80 के दशक में इन जिहादियों का जुड़ाव अफगान जिहाद से हुआ। इनमें से ज्यादातर आतंकी अभी भी अफगानिस्तान में जंग कर रहे हैं ।

पाकिस्तानी सेना और जमात-ए-इस्लामी के बीच गठजोड़ होने से पाकिस्तानी अलकायदा का जन्म हुआ। इस आतंकी समूह के अरब मूल के शीर्ष लोगों का जुड़ाव जमात-ए-इस्लामी के साथ है जबकि आत्मघाती हमलावरों सहित स्थानीय और विदेशी आतंकियों का जुड़ाव अपेक्षाकृत बड़े संगठन उलेमा-ए-इस्लाम के स्वायत्त आतंकी समूहों के साथ है। ओसामा बिन लादेन का पाकिस्तान के एबटाबाद में सैन्य अकादमी के पास मारा जाना यह साबित करता है कि यह देश आतंकवाद का केंद्र बन चुका है और यह आतंक को देश की नीति के हथियार की तरह उपयोग करता है। इस निष्कर्ष को सही ठहराने के लिए पाकिस्तान के स्तंभकार परवेज हुडभॉय के ये शब्द काफी हैं जिनमें उन्होंने अलकायदा सरगना के मारे जाने पर उसे सोने के अंडे देने वाली मुर्गी बताया था। उनके अनुसार पाकिस्तानी सेना ने इसे संभाल कर रखा था लेकिन अमेरिकी सैनिक चिढ़ाते हुए उनकी नाक के नीचे से उसे चुरा ले गए।

 

आतंक की विषबेल
(पाकिस्तान में सक्रिय आतंकी संगठनों का वर्गीकरण)

 

सांप्रदायिक – संप्रदाय के आधार पर आतंकी संगठनों का गठन, जैसे सुन्नियों का समूह सिपह-ए-साहबा और शियाओं का समूह तहरीक-ए-जाफरिया। ये संगठन वहां हिंसा फैलाने में सक्रिय हैं.

भारत विरोधी – वे संगठन जिनके एजेंडे में भारत विरोध शीर्ष पर रहता है। माना जाता है कि ये समूह पाकिस्तानी सेना और वहां की खुफिया एजेंसी इंटर सर्विसेज इंटेलीजेंस (आइएसआइ) के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करते हैं । जैसे लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मुहम्मद और हरकत उल मुजाहिदीन.

अफगान तालिबान – मूल तालिबान आंदोलन और खासकर मुल्ला मुहम्मद उमर के इर्द-गिर्द केंद्रित इसका कांधारी नेतृत्व। माना जाता है कि मुल्ला उमर अब क्वेटा में रह रहा है।

अलकायदा और इससे संबद्ध – मारे जाने से पहले तक ओसामा बिन लादेन और अन्य गैर दक्षिण एशियाई आतंकियों के नेतृत्व वाला संगठन। माना जाता है कि ये समूह पाकिस्तान के फेडरली एडमिनिस्टर्ड ट्राइबल एरिया (फाटा) को अपना अड्डा बनाए हुए हैं।

पाकिस्तान तालिबान – फाटा के चरमपंथियों से बने इन समूहों का अलग-अलग लोग नेतृत्व करते हैं । जैसे दक्षिण वाजिरिस्तान में महसूद जनजाति के हकीमुल्लाह महसूद, बाजौर के मौलाना फकीर मुहम्मद और तहरीक-ए-नफज-ए-शरीफ-ए-मुहम्मद के मौलाना काजी फजलुल्लाह.

पाकिस्तानी विद्वान और हार्वर्ड लॉ स्कूल में फेलो हसन अब्बास के अनुसार सुस्त पड़ चुके पंजाबी मूल के सांप्रदायिक और पंजाबी तालिबान और कश्मीर पर केंद्रित अन्य प्रतिबंधित आतंकी संगठनों ने अब फाटा (कबीलाई क्षेत्र) और उत्तर-दक्षिण सीमांत प्रांत (एनडब्लूएफपी) इलाकों में पाकिस्तान तालिबान, अफगान तालिबान और अन्य आतंकी संगठनों से हाथ मिला चुके हैं । पंजाब प्रांत के शहरों में हमले के लिए पंजाब तालिबान इनको लॉजिस्टिक मदद उपलब्ध कराता है। इनमें व्यक्तिगत संगठन के अलावा इनसे अलग हुए छोटे-छोटे समूह भी शामिल हैं। जैसे जैश-ए-मुहम्मद, सिपह-ए-साहबा पाकिस्तान और लश्कर-ए- झांगवी। इन समूह के साथ बड़े आतंकी संगठनों से असंबद्ध अनेक आतंकी सेल भी शामिल हैं । अब्बास के अनुसार 90 के दशक में इनमें से कई आतंकी संगठनों को सरकार का संरक्षण प्राप्त था। ये संगठन छापामार युद्धनीति और घात लगाकर हमले करने में पारंगत थे।

विषबेल की खुराक

सीआइए के एक अनुमान के मुताबिक अलकायदा हर साल अपनी आतंकी गतिविधियों पर 3 करोड़ डॉलर की रकम खर्च करता है। आए दिन होने वाले आतंकी हमलों के आगाज से लेकर अंजाम तक ये संगठन करोड़ों रुपये खर्च करते हैं । किसी कॉरपोरेट कंपनी की तरह ही इनका सालाना बजट होता है। किस मद में कितना खर्चा किया जाना है, यह सब पूर्व नियोजित होता है। जाहिए है इस सबके लिए इनको भारी मात्रा में धन की जरूरत होती है। आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए अलकायदा, तालिबान जैसे आतंकी संगठन धन जुटाने के लिए प्रमुख रूप से निम्नलिखित तरीकों का इस्तेमाल करते हैं ।

वित्तीय स्रोत – आपराधिक गतिविधियां मसलन बैंक डकैती, अपहरण, वसूली, तस्करी और ड्रग्स का अवैध धंधा.

चंदा: आतंकी संगठनों को सऊदी अरब, कुवैत, कतर और संयुक्त राज्य अमीरात (यूएई) के धनी लोगों एवं वहां की चैरिटी संस्थाओं द्वारा काफी धन प्राप्त होता है। इसके अलावा देशी /विदेशी लोगों और चैरिटी संस्थाओं और आतंकवाद से सहानुभूति रखने वाले देशों से इनको आर्थिक मदद मिलती है.

हवाला चैनल: धन एकत्र करने में हवाला भी एक स्रोत है.

मादक पदार्थों की तस्करी: यह धन प्राप्ति का प्रमुख जरिया है।

• हेरोइन के उत्पादन में अफगानिस्तान और म्यांमार का क्रमश: पहला और दूसरा स्थान है.
• अफगानिस्तान में सालाना 4000 मीट्रिक टन अफीम का उत्पादन होता है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था में हेरोइन का प्रतिनिधित्व 40-50 प्रतिशत होता है.
• अमेरिका के स्टेट डिपार्टमेंट ऑफिस फॉर इंटरनेशनल नारकोटिक्स मैटर्स के एक आकलन के अनुसार कोकीन के एक किलो के उत्पादन में 3000 डॉलर खर्च होते हैं। बाजार में थोक मूल्य कीमतों में इसकी कीमत 20,000 हजार डॉलर प्रति किलो है.
• प्रति किग्रा करीब 4000-5000 डॉलर उत्पादन लागत की हेरोइन बाजार में प्रति किग्रा 2.5-3 लाख डॉलर में बिकती है.
• पांच हजार मीट्रिक टन हेरोइन से करीब तीस अरब डॉलर की रकम प्राप्त होती है.
• अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे वाले इलाके में करीब 400 मीट्रिक टन हेरोइन का उत्पादन होता है। इसको ईरान, पाकिस्तान और मध्य एशिया और यूरोप में बेचने के लिए वह बाल्कन देशों और तुर्की के रास्तों को अख्तियार करता है। इससे मिली रकम को स्विट्जरलैंड, ऑस्ट्रिया, फ्रांस, केमैन आइलैंड और चैनल आइलैंड जैसे देशों के बैंक खातों में जमा किया जाता है.

मनीलॉंड्रिंग: एक आकलन के अनुसार हर साल करीब एक ट्रिलियन डॉलर की मनी लॉड्रिंग होती है।

आतंकी खर्च

• अमेरिका में 9/11 आतंकी घटना को अंजाम देने में अलकायदा ने पांच मिलियन डॉलर (बीस करोड़ रुपये से अधिक) खर्च किए.
• संयुक्त राष्ट्र के एक आकलन के अनुसार 2002 में बाली के एक नाइटक्लब में विस्फोट करने के लिए आतंकियों ने करीब 50 हजार डॉलर खर्च किए थे.
• स्पेन के मैड्रिड बम विस्फोट को अंजाम देने में आतंकियों का खर्च 10,000-15,000 हजार डॉलर आया था
• वर्ष 2005 में लंदन में हुए एक बम विस्फोट में आतंकियों ने 2,000 डॉलर खर्च किया था.

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साभार : दैनिक जागरण 8 मई 2011 (रविवार)
नोट – मुद्दा से संबद्ध आलेख दैनिक जागरण के सभी संस्करणों में हर रविवार को प्रकाशित किए जाते हैं.

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