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विधायी कायदा कानून

मुद्दा
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pranav mukherjeeअनिवार्य उपस्थिति : अधिकांश देशों की संसद में बैठकों और कमेटियों में उपस्थिति संबंधी नियम हैं। कुछ देशों ने तो अनिवार्य उपस्थिति कर रखी है लेकिन यह केवल निर्धारित मानक तय करने के लिए किया गया है। मसलन जर्मनी की संसद बुंदेस्टैग में सदस्यों से अपेक्षा की जाती है कि वे संसद में केवल उपस्थित ही नहीं रहें बल्कि संसदीय कार्यवाही में हिस्सा भी लें। इस तरह के कई नियम कई देशों (इंडोनेशिया, रूस, ब्रिटेन, अमेरिका) में हैं लेकिन उनको प्रभावी तरीके से लागू नहीं किया गया है। ये एक तरह के नैतिक कर्तव्य हैं। इनको प्रभावी तरीके से लागू नहीं करने का सबसे बड़ा कारण दरअसल यह है कि संसद सदस्य कई कमेटियों के सदस्य होते हैं और वे नियमित अंतर पर मिलते रहते हैं। इसके बावजूद ऐसा भी नहीं है कि लगातार अनुपस्थिति के बावजूद कार्रवाई नहीं हो। 1975 में ब्रिटेन के हाउस ऑफ कामंस के एक सदस्य के मामले में कमेटी का गठन किया गया। वह ऑस्ट्रेलिया में रहते थे और इसलिए कभी सदन में नहीं आते थे। कमेटी ने उनको निष्कासित करने का सुझाव दिया।

आर्थिक दंड : कई देशों में सदन में उपस्थित न रहने पर वेतन-भत्ते में कटौती हो जाती है। कोस्टा रिका, साइप्रस, फ्रांस, जर्मनी, हंगरी, जॉर्डन,पोलैंड और स्पेन में इससे संबंधित विधान है

अन्य प्रतिबंध : भारत में यदि कोई संसद सदस्य लगातार 60 दिन सदन की बैठक में नहीं आता है तो उसकी सीट को रिक्त घोषित कर दिया जाता है।  जिम्बाब्वे में 21 दिन गैरहाजिरी पर यह प्रावधान है।


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आचरण संबंधी नियम : सभी देशों में सदन की गरिमा को बनाए रखने के लिए आचरण एवं व्यवहार संबंधी नियम हैं। भारत के उच्च सदन राज्यसभा में आचार-व्यवहार संबंधी कायदे बनाए गए हैं। कनाडा, मिस्न, जांबिया और जिम्बाब्वे जैसे देशों में तो ड्रेस कोड तक है।

अनुशासनहीनता : ग्रीस, लक्जमबर्ग, स्लोवेनिया और अमेरिका में यदि किसी सदस्य को एक बार उसके आचरण संबंधी चेतावनी देने के बावजूद वह नहीं मानता तो उसको उस पूरे दिन की कार्यवाही में भाग लेने से वंचित किया जा सकता है। भारत, बेल्जियम, साइप्रस और अमेरिका जैसे देशों में पीठासीन अधिकारी असंसदीय भाषा, टिप्पणी को सदन

की कार्यवाही के रिकॉर्ड से हटाने के लिए कह सकता है।

कई देशों में पीठासीन अधिकारी अभद्र आचरण के लिए संबंधित सदस्य को माफी मांगने के लिए कह सकता है।

विभिन्न राजनीतिक दलों को ऐसी व्यवस्था पर विचार करना चाहिए जिससे संसद का सुचारू रूप से संचालन सुनिश्चित हो सके।

– प्रणब मुखर्जी (मानसूत्र सत्र हंगामे की भेंट चढ़ने पर नौ सितंबर को तिरुमला में राष्ट्रपति का बयान)


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