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दावेदारों की फेहरिस्त (राष्ट्रपति चुनाव)

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प्रणब मुखर्जी: राजनीतिक मामलों का व्यापक अनुभव और संवैधानिक प्रणाली के जानकार हैं। गठबंधन सहयोगियों से समन्वय स्थापित करने में माहिर हैं। अपनी पार्टी के बाहर के दलों से भी समर्थन प्राप्त है। संकट की घड़ी में संकटमोचक की भूमिका निभाने के कारण सरकार की उन पर कुछ ज्यादा ही निर्भरता है। दिनेश त्रिवेदी मामले के बाद तृणमूल कांग्रेस भी उनको शंका की नजर से देखती है। 10 जनपथ का पूर्ण समर्थन अभी तक नहीं मिला है। फिलहाल आम सहमति वाली इनकी अब तक की शीर्ष दावेदारी की राह में पार्टी ही रोड़ा बन सकती है।


हामिद अंसारी: वामदलों और कांग्रेस को उनके नाम पर एतराज नहीं है। पूर्व राजनयिक और अल्पसंख्यक समुदाय से ताल्लुक रखने के कारण सपा, बसपा और तृणमूल कांग्रेस का समर्थन मिल सकता है। कांग्रेस के लिए भी ‘सुरक्षित विकल्प’ हैं। गैर राजनीतिक भी हैं। इसके बावजूद लोकपाल के मसले पर जिस तरह उन्होंने राज्यसभा की कार्यवाही को स्थगित किया उससे विपक्ष की आंख की किरकिरी बन सकते हैं। वामदलों द्वारा समर्थन दिए जाने के कारण तृणमूल कांग्रेस नेता ममता बनर्जी उनको संदेह की नजर से देखती हैं.


एपीजे अब्दुल कलाम: ‘लोगों के राष्ट्रपति’ के रूप में याद किए जाते हैं। भाजपा और सपा समर्थन कर सकती हैं। कांग्रेस उनको राजग की पसंद मानती है। वामदल उनका विरोध कर रहे हैं। अभी तक ऐसी कोई नजीर नहीं है जिसमें कोई राष्ट्रपति रिटायर होने के बाद दूसरी बार राष्ट्रपति बना हो


सैम पित्रोदा: नवोन्मेष मामलों पर प्रधानमंत्री के सलाहकार हैं। कुछ लोग उनको ‘डार्क हॉर्स’ कह रहे हैं। दावेदारी के सिलसिले में भाजपा नेता नरेंद्र मोदी से मुलाकात भी कर चुके हैं लेकिन भाजपा ने उनके नाम पर कोई सकारात्मक संकेत नहीं दिए हैं। कांग्रेस के मुताबिक उनको सभी दलों का समर्थन मिलना मुश्किल है


मीरा कुमार: सौम्य स्वभाव की लोकसभा अध्यक्ष का अब तक का कार्यकाल अच्छा रहा है। उनकी दलित पृष्ठभूमि भी सहायक हो सकती है। लगातार दो बार महिला राष्ट्रपति के नाम पर मुश्किल हो सकती है


सुशील शिंदे: महाराष्ट्र के इस दलित नेता को 10 जनपथ का समर्थन हासिल है। उनकी राजनीतिक स्वीकार्यता भी अधिक है। आदर्श घोटाले का साया उनका पीछा कर रहा है। इस कारण उनके नाम पर दिक्कतें पेश आ सकती हैं


फारूक अब्दुल्ला: उनका कद और राजनीतिक अनुभव उनके पक्ष में है। कश्मीरी अल्पसंख्यक होने का लाभ गैर भाजपा दलों से मिल सकता है लेकिन कांग्रेस में ही कुछ लोग उनको अविश्वसनीय मानते हैं।


कर्ण सिंह: अपने राजनीतिक कद के कारण रेस में शामिल हैं। बढ़ती आयु और स्वास्थ्य उनके खिलाफ जा सकती है। भाजपा उनके नाम पर सहमत हो सकती है


पीए संगमा: रोमन कैथोलिक और आदिवासी नेता हैं। किसी आदिवासी को राष्ट्रपति बनाने की मांग कर रहे हैं। इस सिलसिले में तृणमूल कांग्रेस नेता ममता बनर्जी और सपा नेता मुलायम सिंह यादव से मिल चुके हैं। उन्होंने जिन परिस्थितियों में कांग्रेस छोड़ी थी। उससे तो यही लगता है कि कांग्रेस उनके नाम पर सहमत नहीं होगी


मुलायम सिंह यादव: क्षेत्रीय क्षत्रप खुद को बड़े रोल के रूप में देख रहे हैं। उन्होंने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं। पुत्र अखिलेश यादव को उत्तर प्रदेश के लिए केंद्रीय मदद की जरूरत है


एके एंटनी: ईसाई रक्षा मंत्री गांधी परिवार के विश्वासपात्र भी हैं। अभी तक कोई ईसाई राष्ट्रपति नहीं बना है। हालिया सैन्य प्रमुख उम्र

विवाद का शोर लेकिन अभी थमा नहीं है

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तब से अब तक

1952 डॉ. राजेंद्र प्रसाद: 13 मई को पदासीन हुए। पहले राष्ट्रपति को पांच लाख सात हजार चार सौ वोट मिले जबकि केटी शाह को 92 हजार 827 वोट मिले।

1957 डॉ. राजेंद्र प्रसाद: 13मई को दूसरी बार राष्ट्रपति बने। इन्हें 4,59,698 वोट मिले। नागेंद्र नारायण दास एवं चौधरी हरी राम को क्रमश: 2000 एवं 2672 वोट मिले।

1960 डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन: 13 मई को पदभार ग्रहण किया। इनको 5,53,067 वोट मिले। चौधरी हरी राम और यमुना प्रसाद त्रिशुलिया को क्रमश: 6341 और 3537 मत मिले।

1967 डॉ.जाकिर हुसैन: 13 मई को पदभार ग्र्रहण किया। 17 उम्मीदवारों में से डॉ.जाकिर हुसैन को सर्वाधिक 4,71,244 मत मिले।

3 मई 1969 को इनके आकस्मिक निधन के बाद संविधान के अनुच्छेद 65 (1) के तहत उप राष्ट्रपति वीवी गिरि को कार्यकारी राष्ट्रपति बनाया गया। इन्होंने 20 जुलाई, 1969 को पद से इस्तीफा दिया।

1969 वीवी गिरि: 24 अगस्त को राष्ट्रपति बने। 15 प्रत्याशियों में से गिरि को सर्वाधिक 4,01,515 वोट जबकि डॉ नीलम संजीव रेड्डी को 3,13,548 मत मिले।

1974 फखरुद्दीन अली अहमद: 24 अगस्त को पदभार ग्रहण किया। उन्हें 7,65,587 वोट जबकि त्रिदीब चौधरी को 1,89,196 मत मिले।

1977 नीलम संजीव रेड्डी: 11 फरवरी को फखरुद्दीन की असामयिक मौत के बाद तत्कालीन उपराष्ट्रपति बीडी जट्टी को कार्यकारी राष्ट्रपति बनाया गया। राष्ट्रपति की मौत या इस्तीफे के बाद छह महीने के अंदर राष्ट्रपति चुनाव कराया जाता है। 37 उम्मीदवारों ने पर्चे दाखिल किए। जांच में रिटर्निंग अधिकारी ने रेड्डी के अलावा सभी 36 लोगों के पर्चे रद्द कर दिए। इस तरह रेड्डी निर्विरोध चुने गए।

1982 ज्ञानी जैल सिंह: 25 जुलाई को राष्ट्रपति बने। जैल सिंह को 7,54,113 और एचआर खन्ना को 2,82,685 मत मिले।

1987 आर वेंकटरमन: 25 जुलाई को राष्ट्रपति बने। इन्हें 7,40,148 मत मिले।

1992 शंकर दयाल शर्मा: 25 जुलाई को राष्ट्रपति बने। चार प्रत्याशियों में डॉ शर्मा को 6,75,864 मत मिले।

1997 केआर नारायणन: 25 जुलाई को पदभार ग्रहण किया। दोनों उम्मीदवारों में से नारायणन और टीएन शेषन को क्रमश: 9,56,290 और 50,631 मत मिले।

2002 डॉ.एपीजे अब्दुल कलाम: 25 जुलाई को डॉ.कलाम राष्ट्रपति बने। कुल दो प्रत्याशियों में कलाम को 9,22,884 वोट मिले। वहीं लेफ्ट समर्थित उम्मीदवार कैप्टन लक्ष्मी सहगल को 1,07,366 मत मिले।

2007 प्रतिभादेवी सिंह पाटिल: 25 जुलाई को देश की पहली महिला राष्ट्रपति बनीं। संप्रग समर्थित प्रतिभा पाटिल को

6,38,116 और राजग समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार भैरोसिंह शेखावत को 3,31,306 मत मिले।


पहली बार…

लगातार दो चुनावों में जीत: डॉ राजेंद्र प्रसाद लगातार दो चुनाव जीतकर दो कार्यकाल पूरा करने वाले पहले राष्ट्रपति

निर्विरोध निर्वाचन: 1977 में नीलम संजीव रेड्डी निर्विरोध राष्ट्रपति चुने गए

निर्दलीय प्रत्याशी की जीत: 1969 मेंं वीवी गिरि ने कांग्र्रेस के प्रत्याशी नीलम संजीव रेड्डी को हराया। क्रास वोटिंग का पहला मौका था। और पहली बार ही अंतरात्मा की आवाज पर वोट देने की बात कही गई।

अल्पसंख्यक राष्ट्रपति: जाकिर हुसैन 1967 में कोटा सुब्बाराव को हराकर राष्ट्रपति बने

गैर राजनीतिक राष्ट्रपति: दर्शनशास्त्री डॉ राधा राधाकृष्णन 1962 में राष्ट्रपति बने

कार्यकाल के दौरान मृत्यु: 3 मई,

1969 को पद पर रहते हुए डॉ जाकिर हुसैन की मृत्यु हुई

कार्यवाहक राष्ट्रपति: 1969 में जाकिर हुसैन की मौत के बाद 3 मई से 20 जुलाई तक तत्कालीन उप राष्ट्रपति वीवी गिरि को कार्यवाहक राष्ट्रपति बनाया गया

सीधा मुकाबला: 1974 में केवल दो उम्मीदवारों फखरुद्दीन अली अहमद और त्रिदीब चौधरी के बीच सीधा मुकाबला हुआ।

दूसरी वरीयता के वोटों की गिनती: 1969 में दूसरी वरीयता के वोटों की गिनती हुई

महिला उम्मीदवार: 1967 में हुए चौथे राष्ट्रपति चुनाव में श्रीमती मनोहर होल्कर निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर खड़ी थीं

चुनाव कानून में बदलाव: 1974 में राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति चुनाव कानून,1952 में व्यापक बदलाव हुए। चुनाव नियम कड़े किए गए। यह नियम भी बनाया गया कि राष्ट्रपति चुनाव संबंधी मामलों की सुनवाई केवल सुप्रीम कोर्ट ही कर सकेगा


सरकार से टकराव

डॉ. राजेंद्र प्रसाद: तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से हिंदू कोड बिल पर मतभेद हुआ था

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन: चीन के हमले के बाद डॉ. राधाकृष्णन ने प्रधानमंत्री नेहरू से रक्षा मंत्री वीके कृष्णा मेनन को हटाने के मामले में मलाह मांगी

वीवी गिरि: 1969 में बैंकों के राष्ट्रीयकरण के मामले पर इंदिरा गांधी से मतभेद जगजाहिर हैं

फखरुद्दीन अली अहमद: इमरजेंसी लगने के लिए अपनी स्वीकृति देने के लिए जाने जाते हैं

ज्ञानी जैल सिंह: सरकार के डाक बिल को वापस लौटा दिया था

डॉ.एपीजे अब्दुल कलाम: सरकार को ऑफिस ऑफ प्रॉफिट बिल लौटा दिया


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