- 442 Posts
- 263 Comments
राष्ट्रपति राजनीति से ऊपर है। इसका यह मतलब नहीं कि इसके चुनाव में राजनीति नहीं होनी चाहिए या न हो सकती है। आदर्श परिस्थिति में राष्ट्रपति का चयन सर्वसम्मति से किया जाना चाहिए। इस मसले को लेकर समय समय पर राजनीतिक दलों के बीच कोई वार्तालाप नहीं होता है इसलिए समय आने पर राष्ट्रपति के चयन पर सरगर्मियां शुरू हो जाती हैं।
अंत में चयन उसी का होता है, जिसके नाम पर आम सहमति बनती है। लेकिन जिस प्रकार राजनीतिक दलों के आपसी संबंध विवादग्र्रस्त रहे हैं उसके संदर्भ में यदि एक पार्टी किसी व्यक्ति के पक्ष में है तो दूसरी पार्टियां उसके विरोध पर आमादा हो जाती हैं। कुछ पार्टियां चुनाव के ऐन पहले आम सहमति का शिगूफा छोड़ती जरूर हैं लेकिन इसके पीछे उनकी असली मंशा यह होती है कि उनके प्रस्तावित उम्मीदवार पर ही आम सहमति बने। इसीलिए आम सहमति बनाने की कोशिश नाकाम हो जाती है। लिहाजा चुनाव के अलावा कोई चारा नहीं बचता।
इस बार भी कोशिश यही थी, लेकिन मौजूदा माहौल में पार्टियों में सहमति बनती नहीं दिख रही है। ऐसे अनेक प्रश्न खड़े हो रहे हैं जिनका प्रजातंत्र में कोई महत्व ही नहीं होना चाहिए। जैसे राष्ट्रपति अल्पसंख्यक होना चाहिए, उसे राजनेता होना चाहिए या दलित या महिला होना चाहिए। मैं इससे इन्कार नहीं करता कि ये सारी बातें हमारी सामाजिक व्यवस्था का हिस्सा हैं और राष्ट्रपति के चयन में महत्वपूर्ण हो सकती हैं। दुर्भाग्य की बात यह है कि ये सारी बातें राजनीतिक दलों द्वारा अप्रत्यक्ष तरीके से नहीं बल्कि प्रत्यक्ष रूप में उठाई गईं।
इस प्रकार की प्रतिक्रियाओं और बयानबाजी का संदेश लोगों में बहुत अच्छा नहीं जाता है। लोग समझने लगते हैं कि राष्ट्रपति के राजनीति से ऊपर होने की बात केवल कपोल बयानबाजी है। सच तो यह है कि राष्ट्रपति के चुनाव के पीछे भी एक गंदी राजनीति है। इससे इस पद की गरिमा पर प्रतिकूल असर पड़ता है। प्रजातंत्र की कामयाबी के लिए यह आवश्यक है कि राजनीतिक संस्थाएं राजनीति से परे रहें। यदि उनमें भी राजनीति की जाएगी तो उनकी मान्यता में लोगों की आस्था डगमगाने लगेगी। राष्ट्र को चिंता होनी चाहिए कि केवल राष्ट्रपति चुनाव ही नहीं, बल्कि व्यापक स्तर पर हमारी सारी संस्थाएं राजनीति से परे रहें। इसीलिए आम सहमति का एक अलग महत्व है और हमें उसको कमजोर नहीं होने देना चाहिए।
ऐसा मेरा विश्वास है कि अंत में किसी एक उम्मीदवार के पक्ष में सर्वसम्मति बनेगी और वह ही राष्ट्रपति पद ग्र्रहण करेगा। लेकिन जो सियायत सामने आई है उससे जनमानस का हृदय तो दुखी हुआ ही है।
प्रो. इम्तियाज अहमद हैं
………………………………………
चुनावी प्रक्रिया
मतदाता
राष्ट्रपति का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से इलेक्ट्रोरल कॉलेज द्वारा किया जाता है। यह इलेक्ट्रोरल कॉलेज लोकसभा के 543 सदस्यों, राज्यसभा के चुने गए 233 सदस्यों और 28 राज्यों के 4,120 विधायकों से बनता है। 2007 में हुए पिछली बार के राष्ट्रपति चुनाव के दौरान कुल इलेक्टर्स की संख्या 4,896 थी। पहले राष्ट्रपति चुनाव में इनकी संख्या 4,056 थी।
विधायकों के मतों का मूल्यांकन
इनके मतों का मूल्य राज्यों की आबादी के आधार पर अलग-अलग होता है। एक विधायक के वोट का मूल्य 1971 की जनगणना के अनुसार राज्य की कुल आबादी को वहां के कुल विधायकों की संख्या और 1000 के गुणनफल से भाग देकर निकाला जाता है। यदि शेषफल 500 या अधिक आता है तो प्रत्येक विधायक के वोटों का मूल्य एक बढ़ जाता है। उदाहरण के लिए 2007 में पश्चिम बंगाल की आबादी को वहां के कुल विधायकों की संख्या 294 का 1000 से गुणा करने (294 ़1000) पर प्राप्त संख्या से भाग देने पर प्रत्येक विधायक के मत का मूल्यांकन 151 आता है। इस प्रकार राज्य के हिस्से में कुल 44,394 मत आते हैं। इसी प्रकार 2007 में उत्तर प्रदेश के हर एक विधायक के मत का मूल्यांकन 208 (कुल 83,824) था। 1952 में यहां के प्रत्येक विधायक के मतों की अहमियत 143 थी। 2012 में कुल 4,120 विधायकों के वोटों की अहमियत 5,49,474 है।
सांसदों के मतों का मूल्यांकन
सभी विधानसभाओं के कुल विधायकों के मतों के मूल्य को संसद के दोनों सदनों के चुने गए कुल सदस्यों की संख्या (776) से भाग देने पर आया भागफल संसद के एक सदस्य के वोट का मूल्य होता है। 2007 में प्रत्येक संसद सदस्य के वोट की अहमियत 708 के बराबर थी। 1952 में यह 494 थी जबकि 2012 में सभी सांसदों के मतों का मूल्य 5,49,474 है।
सिद्धांत के पीछे का तर्क
इस नियम के पीछे कुल विधायकों के मतों का मूल्य सभी सांसदों के मतों के मूल्य के बराबर करने की अवधारणा है। चूंकि सभी सांसदों के मतों का मूल्य एक सांसद के मत के मूल्य और कुल सांसदों की संख्या के गुणनफल के बराबर होता है। इसी तरह प्रत्येक सांसद के मतों का मूल्य सभी विधायकों के मतों के मूल्य में कुल सांसदों की संख्या से भाग देने पर मिलता है। इसलिए कुल सांसदों के मतों का मूल्य सभी विधायकों के मूल्य के बराबर हुआ।
बैलट पत्र
राष्ट्रपति चुनाव अधिनियम, 1974 के नियम 17 के अनुसार इसके बैलट पत्र पर कोई चुनाव चिन्ह नहीं होता है। केवल दो कॉलम होते हैं। पहले कॉलम में उम्मीदवार का नाम और दूसरा कॉलम उम्मीदवार चयन के लिए होता है।
मतदान
राष्ट्रपति का चुनाव गुप्त बैलट पत्रों द्वारा किया जाता है। इसमें ईवीएम का इस्तेमाल नहीं होता है।
हस्तांतरणीय मत
अपनी पहली पसंद के सामने मतदाता एक लिखता है। अगर अन्य उम्मीदवार भी हैं तो वह अपनी पसंद के क्रम के अनुसार उनको भी वोट कर सकता है। हालांकि यह जरूरी नहीं है। द्वितीय हस्तांतरणीय मत उस स्थिति में निर्णायक भूमिका में आते हैं जब कुल डाले गए मतों की आधी संख्या से अधिक किसी उम्मीदवार को नहीं मिलते हैं। बहुमत तक किसी उम्मीदवार के न पहुंचने की स्थिति में निचले पायदान से हारने वाले उम्मीदवार को हटा दिया जाता है। द्वितीयक हस्तांतरण प्रक्रिया के तहत उसे मिले मतों को शेष उम्मीदवारों को स्थानांतरित कर दिया जाता है। इस प्रमुखता की तब तक गणना की जाती है जब तक कि किसी उम्मीदवार को जरूरी बहुमत नहीं मिल जाता।
वर्तमान चुनाव में वोटों का गणित
कुल मत | 10,98,882 | 100% | बहुमत | 5,49,442 | 50% | |
संप्रग और सहयोगी | केरल कांग्र्रेस | 2,076 | कुल | 3,04,785 | ||
पार्टी | मत (अनुमानित) | रालोद | 6,220 | अन्य दल | ||
कांग्र्रेस | 3,30,485 | लोजप | 881 | सपा | 68,812 | |
तृणमूल | 48,049 | कुल | 4,60,191 | बसपा | 43,349 | |
द्रमुक | v21,780 | राजग एवं सहयोगी | अन्नाद्रमुक | 36,920 | ||
राकांपा | 23,850 | भाजपा | 2,23,885 | वाम दल | 51,682 | |
राजद | 8,934 | जदयू | 42,153 | बीजद | 30,215 | |
नेकां | 5,556 | अकाली दल | 11,564 | तेदेपा | 20,516 | |
आइयूएमएल | 4,456 | शिव सेना | 18,495 | जेडीएस | 6,138 | |
जेवीएम | 3,352 | झामुमो | 4,584 | पीडीपी | 1,584 | |
एआइएमआइएम | 1,744 | अगप | 3,284 | टीआरएस | 3,197 | |
बीपीएफ | 2,808 | जनहित कांग्रेस | 820 | कुल | 2,62,408 | |
संभावित समीकरण
परिदृश्य 1: संप्रग, राजग और वाम मोर्चे के बीच एक उम्मीदवार पर आम सहमति बनें।
परिदृश्य 2: संप्रग को एक साथ बनाए रखते हुए कांग्र्रेस पार्टी वाम दलों समेत अधिकाधिक दलों को अपने साथ मिलाने में कामयाब हो
परिदृश्य 3: राजग, वाम दल, अन्य क्षेत्रीय दल जैसे सपा, तृणमूल, अन्नाद्रमुक, बीजद और दूसरी गैर कांग्र्रेसी पार्टियां सर्वसम्मति से अपना एक उम्मीदवार उतारें
परिदृश्य 4: अन्य राजनीतिक दलों के समर्थन से संप्रग, राजग और वाम दल अपना अलग-अलग उम्मीदवार घोषित करें
Read Hindi News
Read Comments