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आतंकवाद और कट्टरपंथ से सुलगता पाकिस्तान अब दरक रहा है। वहां का सामाजिक तानाबाना उधड़ने के कगार पर है। दुनिया में आतंक की विषबेल फैलाने वाले इस देश में अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने की घातक प्रवृत्ति में अब तेजी आयी है। हाल ही में देश के अल्पसंख्यक मंत्री शहबाज भट्टी की हत्या कर दी गई। इस घटना से कुछ दिन पहले पंजाब प्रांत के गवर्नर सलमान तासीर को चरमपंथियों ने मौत की नींद सुला दिया। उदारवादी छवि वाले इन नेताओं को वहां के विवादित और तथाकथित अल्पसंख्यक विरोधी ईशनिंदा कानून के चलते चरमपंथियों का निशाना बनना पड़ा। अस्थिर पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की स्थिति का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि वहां के सिंध प्रांत के पूर्व अल्पसंख्यक हिंदू विधायक को अपनी सलामती के लिए भारत में शरण लेनी पड़ी है। खुशहाल और समृद्ध पड़ोसी होने के अगर चंद फायदे होते हैं तो इसकी विपरीत परिस्थिति वाले पड़ोसी से नुकसान की आशंका बलवती होती है। यही हाल बीमार पड़ोसी देश पाकिस्तान का हमारे लिए है। आतंकवाद का नासूर बन चुके पाकिस्तान की अस्थिरता और वहां के अल्पसंख्यकों के हितों की सुरक्षा बड़ा मुद्दा है।
इब्राहीम कुंभर
(पाकिस्तान स्थित केटीएन चैनल से जुड़े पत्रकार)
अल्पसंख्यक और उनके अधिकार, ये शब्द साथ-साथ चलते हैं, अगर नहीं, तो चलने चाहिए। अब तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इन अधिकारों को सम्मान दिया जाता है। हंगरी वह पहला देश है जहां अल्पसंख्यकों के अधिकारों को मानने की शुरुआत हुई। 1849 में संयुक्त राष्ट्र ने अल्पसंख्यकों के हितों के लिए एक दिशानिर्देश जारी किया। इसमें इनके अधिकारों को सुरक्षित रखने की वकालत की गई थी।
पाकिस्तान में भी अल्पसंख्यक बसते हैं। देश के झंडे में भी अल्पसंख्यक को जा़हिर करने के लिए सफे़द रंग रखा गया है। देश के संविधान में भी लिखा गया है कि सब नागरिक बराबर हैं। न कोई श्रेष्ठ है और न ही कोई गौण। दर्जा सबका बराबर है। देश के संविधान में इतने प्रावधानों के बावजूद यहां जितने भी हिंदू, ईसाई, सिख और दूसरे अल्पसंख्यक रहते हैं उनका नाम ही गैर से शुरू किया जाता है। हमारे यहां या शायद तमाम इस्लामी देशों में उन अल्पसंख्यकों को गैर मुस्लिम कहा जाता है। यह गैर संबोधन ही बहुत प्रतिकूल है। इसलिए उस शब्द से ही काफी चीजें सामने आती हैं। हमारे यहां दिखता तो यह है कि देश के अल्पसंख्यक समुदाय को धार्मिक स्वतंत्रता है, लेकिन यह समुदाय अब खौफ खाने का आदी हो चुका है। देश के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री शहबाज भट्टी की हत्या के बाद तो इस खौफ में और अधिक इजाफा हो गया है।
पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों को अपनी सुरक्षा का सबसे अधिक खौफ है। इनकी समस्याओं को अगर देखा जाए तो बहुत हैं। हालांकि यहां आपको ऐसे विचारों के भी बहुत लोग मिलेंगे जो अल्पसंख्यकों के लिए ‘अल्पसंख्यक’ शब्द के इस्तेमाल से परहेज करने की वकालत करते हैं । इन लोगों का सोचना है कि हमें अल्पसंख्यक या बहुसंख्यक के फेर में नहीं पड़ना चाहिए। इनको और सबको आम नागरिक समझा जाना चाहिए। लेकिन इसके साथ यह भी कहा जाता है कि देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री पद पर मुसलमान ही जरूरी हैं तो फिर यह बात अल्पसंख्यक के साथ भेदभाव करने वाली है। हम भी सुनते और देखते आए हैं कि यहां के अल्पसंख्यक अब देश को छोड़ना चाहते हैं। सरकार ने इस मसले पर कुछ कदम जरूर उठाए हैं लेकिन अभी तक कोई असर नहीं दिखता।
पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिंदू सबसे ज्यादा सिंध प्रांत में रहते हैं । यहां के 80 फीसदी हिंदू परिवार बेहद आर्थिक तंगी से गुजर रहे हैं । गरीब होना अपने आप में ही एक बदकिस्मती है लिहाजा ये लोग देश छोड़ने को सोच ही नहीं सकते। बाकी मध्यम वर्ग जो यह समझता है कि वह यहां से निकल कर भी गुजारा कर सकता है वे पाकिस्तान को छोड़ रहे हैं। यहां पर हालात यह है कि अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री अपनी सुरक्षा के लिए गृहमंत्री को कह कह कर थक जाता है, उनकी जान चली जाती है लेकिन सरकार उनको पर्याप्त सुरक्षा नहीं मुहैया करा पाती। जिस देश के मंत्री दिनदहाड़े गोलियों से भून दिए जाएं वहां आम जनता की सुरक्षा कौन करेगा?
अल्पसंख्यकों से जुड़ा एक मामला शादी परिवर्तन का भी है। इसके तहत अल्पसंख्यक समुदाय की महिलाओं को जबरदस्ती मुसलमानों से विवाह बंधन में बांध दिया जाता है। मुसलमान से शादी का मतलब कि वह महिला इंकार ही नहीं कर सकती। हाल ही में इस तरह के कई मामले सामने आए हैं । अल्पसंख्यकों के अपहरण का भी एक बड़ा मुद्दा है। इस समुदाय के लोगों और बच्चों का अपहरण कर बाद में भारी भरकम रकम के बदले उन्हें रिहा किया जाता है। इस समय भी कई लोग अपहृत हैं। कई लोगों और बच्चों की आज़ादी के लिए बात चल रही है। यहां अल्पसंख्यकों की समस्याएं जितनी गंभीर हैं उतना ही उनपर कम ध्यान दिया जाता है। इन मसलों को उठाने वाला कोई नहीं है, अगर किसी ने साहस भी किया तो शहबाज भट्टी और सलमान तासीर की तरह उस आवाज को हमेशा के लिए खामोश कर दिया जाता है। ये तो सब मानते हैं कि यहां के अल्पसंख्यकों ने देश के लिए जितना बलिदान किया है, उतना उनको सम्मान नहीं दिया जाता।
1 – साल 2007 से अल्पसंख्यकों पर खतरों में ज्यादा वृद्धि वाले देशों में पाकिस्तान शीर्ष पर है.
7 – अल्पसंख्यकों के लिए सबसे खतरनाक दस देशों की सूची में पाकिस्तान सातवें पायदान पर। सोमालिया, सूडान, अफगानिस्तान, इराक, म्यांमार और कांगो के बाद
जबकि – पाकिस्तान के राष्ट्रीय झंडे में सफेद रंग की पट्टिका अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधित्व की सूचक है.
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साभार : दैनिक जागरण 13 मार्च 2011 (रविवार)
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