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बिना तैयारी मुश्किल होगी भारी

मुद्दा
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सुरक्षा: खाद्य सुरक्षा कानून। गरीबों का पेट भरने के लिए प्रस्तावित कानून। लोकसभा में पेश करने के बाद इसे स्थायी समिति के पास भेजा जा चुका है। बहुत ही कम कीमत पर जरूरतमंदों की भूख मिटाने की सुरक्षा देने वाले इस कानून के कसीदे काढ़ते केंद्र सरकार अघा नहीं रही है, लेकिन कई विशेषज्ञ बिना तैयारी के लाए जा रहे इस कानून के गंभीर परिणाम की आशंका जता रहे हैं।


hindi newsसाख: कई मोर्चों पर जूझ रही सरकार द्वारा छवि बचाने के लिए लाए जा रहे इस कानून से अनाज की उपलब्धता, भंडारण और वित्तीय बोझ जैसी दिक्कतें सामने आ सकती हैं। पुरानी और ध्वस्त वितरण प्रणाली पर और ज्यादा बोझ डालने का परिणाम सबको पता है। इसकी खामियां जगजाहिर हैं। आज पीडीएस के तहत जारी धन का केवल एक चौथाई हिस्सा गरीबों को मिल पाता है। इस योजना के तहत दिया जाने वाला आधे से अधिक अनाज जरूरतमंदों तक नहीं पहुंच पाता है।


सवाल: कृषि क्षेत्र की बुनियादी दिक्कतों और राशन प्रणाली की खामियों को बिना दूर किए तुरत फुरत में लाए जा रहे इस कानून के राजनीतिक निहितार्थ निकालना स्वाभाविक है। कई संकटों से घिरी कांग्रेस पार्टी आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनावों में इस कानून का चुनावी लाभ लेने से चूकना नहीं चाहती। जैसाकि पूर्व के लोकसभा चुनाव में मनरेगा योजना पार्टी की खेवनहार बनी थी। ऐसे में गरीबों के कल्याण का दिखावा करते हुए केवल राजनीतिक लाभ के स्वार्थ के लिए उठाया जाने वाला कदम बड़ा मुद्दा है।


सार्वजनिक वितरण प्रणाली का अनुभव बताता है कि वास्तविक गरीबों की पहचान करना मुश्किल काम है। इस कारण करीब आधे गरीब पीडीएस प्रणाली की परिधि से बाहर हो गए हैं। उनकी जगह कई संपन्न व्यक्ति इसका लाभ ले रहे हैं। जरूरतमंदों की सही पहचान करने के लिए योजना आयोग द्वारा प्रस्तावित सामाजिक-आर्थिक सर्वे भी प्रभावी साबित नहीं होगा। यह केवल शामिल करने के लिए नई श्रेणियां बनाएगा और इस बात का दबाव डालेगा कि कई अन्य कार्यक्रमों को इसके दायरे से बाहर रखा जाए।


ऐसे में गरीबों की पहचान की ‘सार्वभौमिक’ स्कीम के बजाय अमीरों को चिन्हित करना आसान है। इससे सरकार के राजकोषीय बोझ को कम किया जा सकता है। जहां तक फर्जी राशन कार्ड का सवाल है तो उसको यूआइडी पहचान पत्र द्वारा रोका जा सकता है। मसलन यूआइडी पहचान पत्र के माध्यम से प्रत्येक पैन कार्ड धारक, प्रत्येक रजिस्टर्ड वाहन मालिक, संगठित क्षेत्र में काम करने वाले व्यक्ति की आय की जानकारी आसानी से पाई जा सकती है। इसके आधार पर फर्जी कार्डधारकों की पहचान की जा सकती है। इससे जहां सभी व्यापारी, नौकरीपेशा और संपन्न किसान गरीबी की श्रेणी से बाहर हो जाएंगे वहीं 100 प्रतिशत गरीब इसमें शामिल हो जाएंगे।


खाद्यान्न उत्पादन में अस्थिरता

अगर भारतीय खाद्य निगम [एफसीआइ] न्यूनतम समर्थन मूल्य [एमएसपी] पर देशभर में किसानों से अनाज खरीदता है तो किसान अनाज उत्पादन के लिए प्रेरित होंगे। वास्तविकता यह है कि एफसीआइ अभी कुछ राज्यों में ही संचालन कर रही है। इसकी वजह से अन्य राज्यों के किसानों को एमएसपी से कम मूल्य पर अनाज के दाम मिलते हैं।


सिक्के का दूसरा पहलू यह है कि अगर एफसीआइ ने अपने संचालन को देशभर में नहीं बढ़ाया तो जो किसान सिर्फ अपने लिए अनाज का उत्पादन करता है वह इसका उत्पादन बंद करेगा। वह इसकी जगह लाभदायक फसलें उगाने लगेगा और सस्ती दरों पर पीडीएस से अनाज खरीदेगा। इससे देश में कुल अनाज उत्पादन क्षमता ध्वस्त हो सकती है और सरकार को विदेश से अंतरराष्ट्रीय दामों पर अनाज खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है।


इस लिहाज से जब तक एफसीआइ अपना दायरा नहीं बढ़ाता तब तक अनाज वितरण कार्यक्रम का क्रियान्वयन खतरनाक हो सकता है। इसके अलावा सस्ते दामों पर उपलब्ध अनाज से निश्चित रूप से खपत बढ़ जाएगी। यहां तक कि अनाज को पशुओं को भी खाने के लिए दिए जा सकता है। सोवियत संघ में किसान पशुओं को ब्रेड खिलाते थे।


बड़ा वित्तीय बोझ

एक अनुमान के मुताबिक 50 करोड़ लक्षित लोगों [जिनमें 46 प्रतिशत ग्रामीण और 28 प्रतिशत शहरी] को हर महीने सात किलो अनाज मिलेगा। इसके लिए चार करोड़ टन अनाज की जरूरत होगी। इसके अलावा गैर प्राथमिकता समूह के 30 करोड़ लोगों को हर महीने तीन किलो अनाज के लिए अलग से एक करोड़ टन की आवश्यकता होगी। कुल मिलाकर पांच करोड़ टन अनाज का प्रबंध एफसीआइ को करना होगा।


ताजे न्यूनतम समर्थन मूल्य के मुताबिक एमएसपी और प्रस्तावित बिक्री कीमतों में 10 रुपये प्रति किलो से ज्यादा का अंतर है। इसमें मंडी चार्ज, वितरण कीमत समेत 4-5 रुपये और अधिक जोड़ने पड़ेंगे। यानी कि कुल अनाज प्रबंधन के लिए कुल मिलाकर एक लाख करोड़ रुपये की जरूरत होगी।


समय के साथ बढ़ेगा बोझ

यदि देश की आर्थिक वृद्धि दर बढ़ती जाती है तो समय के साथ गरीब आबादी की संख्या में कमी आनी चाहिए। इसके बावजूद ऐसा होना मुश्किल है क्योंकि जनसंख्या के बढ़ने से सांकेतिक रूप में वित्तीय बोझ बढ़ता जाएगा।

कीमत का एक महत्वपूर्ण पहलू सरकारी खरीद और ब्रिकी दर में अंतर होना है। समय के साथ कीमत बढ़ने से एमएसपी का बढ़ना तय है। ऐसे में राष्ट्रीय सलाहकार परिषद [एनएसी] की सलाह के अनुसार यदि अगले 10 वर्षो तक गरीबों को दिए जाने वाले अनाज की कीमतों में वृद्धि नहीं की गई तो सरकार पर वित्तीय बोझ बढ़ता जाएगा।


नकद वितरण उचित

यदि अनाज के बजाय नकद राशि का वितरण कर दिया जाए तो अनाज वितरण के मामले में दी जा रही सब्सिडी की तुलना में प्रत्येक व्यक्ति को दोगुना राशि दी जा सकती है। इसके साथ ही एफसीआइ और पीडीएस की जरूरत भी अपने आप खत्म हो जाएगी।


यह भी अहम है कि यदि यह राशि जरूरतमंद महिला के अकाउंट में भेजी जाएगी तो महिलाएं भी सशक्त होंगी और लैंगिक समानता भी बढ़ेगी।


धनराशि के प्रभावी ट्रांसफर के लिए प्रत्येक व्यक्ति के पास यूआइडी कार्ड होना चाहिए और स्थानीय बैंक, पोस्ट ऑफिस में अकाउंट होना चाहिए।


उचित दरों पर अनाज

इसके अलावा बाजार की यह भी कोशिश होनी चाहिए कि वह उचित दरों पर अनाज उपलब्ध कराए। सुदूर क्षेत्र के गांवों में व्यापारिक एकाधिकार के कारण व्यापारी द्वारा शोषण का खतरा रहता है। इस तरह के गांवों में कोआपरेटिव स्टोर खोले जाने चाहिए। मेक्सिको में इस तरह के प्रयास सफल हुए हैं।


राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के क्रियान्वयन की रणनीतियां

* एफसीआइ को निर्देश दिया जाना चाहिए कि वह एक साल के भीतर दो बड़े और दो छोटे राज्यों में सरकारी खरीद प्रणाली का व्यवस्थित तंत्र विकसित करे

* यूआइडी से प्राप्त विवरण के आधार पर दो बड़े और दो छोटे राज्यों में हर एक को कार्ड और बैंक अकाउंट दिया जाना चाहिए

* प्रयोग के आधार पर एक राज्य में पीडीएस के तहत अनाज आवंटित किया जाना चाहिए जबकि दूसरे में नकद राशि का आवंटन किया जाना चाहिए

* एक राज्य में कार्ड या कैश के विकल्प का चुनाव लोगों को देना चाहिए

* नतीजों के आकलन के आधार पर अगली रणनीति बनाई जानी चाहिए।

[डॉ. किरीट एस पारिख, चेयरमैन, इंटीग्रेटेड रिसर्च एंड एक्शन फॉर डेवलेपमेंट एवं पूर्व सदस्य योजना आयोग]


25 दिसंबर को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “अपनी राशन प्रणाली”  पढ़ने के लिए क्लिक करें.

25 दिसंबर को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “कृषि में मुनाफा, तभी बनेगी बात” पढ़ने के लिए क्लिक करें.

साभार : दैनिक जागरण 25 दिसंबर 2011 (रविवार)

नोट – मुद्दा से संबद्ध आलेख दैनिक जागरण के सभी संस्करणों में हर रविवार को प्रकाशित किए जाते हैं.


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