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सिटिजन चार्टर की हकीकत

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UPसुविधा शुल्क के बगैर काम न करने के आदी सरकारी विभागों के बाबू सिटिजन चार्टर के रूप में लागू ‘जनहित गारंटी कानून’ की आड़ में रिश्वत न देने वालों को सबक सिखाते हैं। इस कानून के तहत हर हाल में काम करने की तय समयसीमा ही इसके दुश्वारी का सबब बन रही है। मसलन जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र देने के लिए अधिकतम समय सीमा 45 दिन की है। हथेली गर्म न करने की स्थिति में सरकारी बाबू का जवाब होता है कि जुर्माना तो 45 दिन में प्रमाण पत्र न देने पर लगेगा। 45वें दिन आपको प्रमाण पत्र हर हाल में मिल जाएगा। जिन लोगों को इस प्रमाण पत्र की जल्दी जरूरत होती है, उनके पास सरकारी बाबू की जेब गरम करने के सिवा कोई रास्ता नहीं होता। ‘जनहित गारंटी कानून’ को इस साल 15 जनवरी को मुख्यमंत्री मायावती ने अपने जन्मदिन पर लागू किया था। इसके दायरे में राजस्व, नगर विकास, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य, खाद्य एवं रसद विभाग की 13 सेवाओं को रखा गया था। बाद में परिवहन और उप्र पुलिस ने इसे लागू किया। कानून को लागू करने के पीछे मंशा यही थी कि सरकारी विभागों में बाबूओं की मनमर्जी को खत्म किया जा सके। अलग-अलग सेवा के लिए अलग-अलग समय सीमा है।-स्वदेश कुमार, लखनऊ


delhiकार्यप्रणाली में दिखा सुधार

सिटिजन चार्टर लागू हुए डेढ़ महीना हो गया। सरकार के 15 विभागों की 40 सेवाओं में अभी तक करीब पौने दो लाख लोगों ने विभिन्न सेवाओं के लिए आवेदन किया। इनमें ड्राइविंग लाइसेंस, गाड़ी रजिस्ट्रेशन, जाति, जन्म व मृत्यु प्रमाण पत्र और राशनकार्ड बनवाना आदि शामिल हैं। चार्टर के तहत प्रत्येक विभाग की नागरिक सेवा में लगने वाले समय को ध्यान में रखकर एक निश्चित समयावधि दी गई है। अगर विभाग कर्मी निर्धारित समयावधि में आवेदनकर्ता का कार्य पूरा नहीं करता तो उसे 10 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से आवेदनकर्ता को जुर्माना राशि का भुगतान करना है। दिल्ली सरकार आइटी विभाग के सचिव राजेंद्र कुमार ने बताया कि सिटिजन चार्टर लागू होने से सरकारी कार्यालयों की कार्यप्रणाली में बहुत सुधार हुआ है। अब 98 फीसदी से अधिक आवेदन तय समय सीमा में पूरे हो गए, लेकिन अभी लोगों में जागरूकता नहीं है। उन्हें निश्चित समयावधि का पालन न करने वाले विभाग के अधिकारी से देरी से कार्य करने पर प्रतिदिन के हिसाब से जुर्माना मांगना चाहिए। विभाग तो ऐसे कर्मचारियों से जवाब मांगेगा ही लेकिन लोगों की सक्रियता से भी कार्यप्रणाली और अधिक सुदृढ़ बनेगी।-एसके गुप्ता, नई दिल्ली


bihar-1अभी हैं कई दिक्कतें

यहां लोकसेवा अधिकार कानून के बूते जनता को मालिक की हैसियत दी गई है। 15 अगस्त, 2011 को इस कानून के लागू होने के बाद से अभी तक 42 लाख आवेदन आए। इनमें से 23 लाख मामलों का निपटारा किया जा चुका है। सबसे अधिक आवेदन आवासीय प्रमाण पत्र के हैं। अभी तक अपील के 50 मामले भी नहीं आए हैं। बक्सर में 3 लोगों को सस्पेंड किया गया है। इस पूरी प्रक्रिया से एक डाटा बेस भी तैयार हो रहा है। हालांकि इस मामले में अभी कई तरह की दिक्कतें भी हैं। मसलन, अभी तक यहां के सभी कार्यालय कंप्यूटर से नहीं जुड़ पाए हैं।-मधुरेश, पटना


J&Kलोगों को जानकारी नहीं

बीते चार माह से राज्य में जनसेवा गारंटी अधिनियम लागू हो चुका है, लेकिन व्यापक प्रचार और जागरूकता न होने के कारण आम जनता को इसके बारे में बहुत कम जानकारी है। कश्मीर के मंडलायुक्त डा असगर समून खुद कहते हैं कि उनके पास सिर्फ एक ही शिकायत आई है और वह भी पेंशन के एक मामले की। उन्होंने बताया कि यह कानून प्रार्थी को अधिकार देता है कि उसे एक निर्धारित समय के भीतर संबधित सेवा उपलब्ध कराई जाए और ऐसा करने में नाकाम रहने वाले अधिकारियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई का पूरा प्रावधान है।-नवीन नवाज, जम्मू


uttrakhand-1नहीं दिख रहा असर

सिटिजन चार्टर राज्य में 21 जुलाई 2011 से प्रभावी हो गया है। इसके तहत 15 सेवाओं को सूचीबद्ध किया है। राज्य के 89 सरकारी विभाग इसके दायरे में आते हैं। सरकारी विभागों द्वारा निर्धारित अवधि में काम नहीं करने पर समीक्षा के लिए एसडीएम से लेकर एडीसी रैंक के अधिकारियों को नोडल अधिकारी नियुक्त किया गया है। कानून की सबसे बड़ी खामी यह है कि निर्धारित समय अवधि में सेवाएं नहीं मिलने पर संबंधित विभागाध्यक्ष, अधिकारी अथवा कर्मचारी की न तो जवाबदेही सुनिश्चित की गई है और न ही कोई सजा का प्रावधान किया गया है। इसलिए लागू होने के बाद भी सरकारी कार्य प्रणाली में सुधार नहीं है।-अनुराग अग्रवाल, चंडीगढ़


लोगों में जानकारी का अभाव

सूबे में बीते अक्टूबर के अंतिम हफ्ते से सेवा का अधिकार कानून लागू कर दिया गया है। इससे लोगों को जन सेवाएं जल्द मिलने की उम्मीद बंधी है। सरकार ने दस महकमों खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति, राजस्व, स्वास्थ्य, आवास, परिवहन, पेयजल, समाज कल्याण, शहरी विकास, विद्यालयी शिक्षा और गृह विभाग में इसे लागू कर दिया है। इन महकमों में चिन्हित जन सेवाएं प्रदान के लिए दिन तय कर दिए हैं। अलग-अलग सेवाओं के लिए एक से लेकर 30 दिन तक समय अवधि तय की गई है। निश्चित अवधि में सेवाएं नहीं मिलने पर प्रथम अपीलीय और फिर द्वितीय अपीलीय प्राधिकारी भी नामित किए गए हैं। जन सेवाओं और अन्य महकमों की सूची में समय-समय पर विस्तार किया जाएगा। इस कानून के नतीजे अभी मिलने बाकी हैं। इस कानून को लेकर लोगों के बीच जागरूकता का अभाव बड़ी समस्या है। फिलहाल सरकारी महकमों के अफसर सहमे नजर आ रहे हैं। कानून पर शीघ्र अमल को लेकर मुख्य सचिव सुभाष कुमार और मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव डीके कोटिया ने बीती दो नवंबर को मंडलायुक्तों और जिलाधिकारियों को जनसेवाएं समय पर मुहैया कराने की तैयारी और जनता में प्रचार-प्रसार के निर्देश दिए। प्रोत्साहन स्वरूप इस व्यवस्था पर जल्द अमल और बेहतर प्रदर्शन करने वाले जिलों को प्रशस्ति पत्र देने के साथ ही विकास के लिए अतिरिक्त धन मुहैया कराया जाएगा।-रविंद्र बड़थ्वाल, देहरादून


06 नवंबर को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “कानून से ज्यादा नैतिक निर्माण की जरूरत”  पढ़ने के लिए क्लिक करें.

06 नवंबर को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “सिटिजन चार्टर की खास बातें”  पढ़ने के लिए क्लिक करें.

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साभार : दैनिक जागरण 06 नवंबर 2011 (रविवार)

नोट – मुद्दा से संबद्ध आलेख दैनिक जागरण के सभी संस्करणों में हर रविवार को प्रकाशित किए जाते हैं.


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