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जरूरत बुखार के इलाज की थर्मामीटर तोड़ने की नहीं

मुद्दा
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cap जनरल: देश की आन बान और शान की प्रतीक सेना का मुखिया। साहस, ईमानदारी और भरोसे का प्रतीक। 15 लाख सैन्य जवानों और 120 करोड़ हिंदुस्तानियों का सेनानायक। दुश्मन देश को मुंहतोड़ जवाब देने की क्षमता रखने वाला जांबाज। मगर इधर बीच सेनाध्यक्ष वीके सिंह की आयु विवाद सहित सरकार के साथ उनकी तनातनी से उपजे हालात बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण हैं। यह किसी भी तरह से राष्ट्रहित में नहीं है।


जम्हूरियत: दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र। पारदर्शिता और साफगोई की मिसाल दिए जाने वाले देश में सेनाध्यक्ष और सरकार के बीच विवाद पर कोई भी चौंक सकता है। यही विवाद अगर पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में हुआ होता तो रोजमर्रा की बात मानकर कोई भी इस पर ध्यान नहीं देता। सरकार के साथ जनरल की आयु के साथ उपजे विवादों की फेहरिस्त लंबी होती जा रही है। अब जनरल द्वारा प्रधानमंत्री को लिखी चिट्ठी के लीक होने के मसले ने तूल पकड़ लिया है।


जंग: जनरल के पत्र लिखने के समयकाल एवं परिस्थितियों के चलते एक बड़ा वर्ग भले ही इसे उनकी हताशा से जोड़कर देख रहा हो, लेकिन शीर्ष सैन्य पदाधिकारी द्वारा जताई गई आशंका देश की सुरक्षा को लेकर चिंता जरूर खड़ी करती हैं। सबसे बड़ा आयातक देश होने के नाते हथियारों के सौदागर दलालों की दृष्टि (वक्र) हमेशा जनरल पर लगी रहती है। ऐसे में इन विवादों के पीछे के लोग और राजनीति को लेकर बहुत कुछ धुंधला नजर आता है। इसे साफ किया जाना बहुत जरूरी है। यह हम सबके लिए बड़ा मुद्दा है।

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-ओपी कौशिक (ले.जनरल, से.नि)
-ओपी कौशिक (ले.जनरल, से.नि)

जरूरत बुखार के इलाज की थर्मामीटर तोड़ने की नहीं

सेनाध्यक्ष जनरल वीके सिंह और सरकार के बीच विवाद को राष्ट्रीय बहस का मुद्दा बनाया जा रहा है। दरअसल ये ऐसा प्रकरण नहीं जिसमें इतना हो-हल्ला मचाया जाए। जनरल सिंह भ्रष्टाचार के मामले को 2010 से उठा रहे हैं। जब रिश्वत की पेशकश की गई तो उन्होंने इस मामले से रक्षा मंत्री को अवगत कराया। डिफेंस सर्विस रेग्यूलेशन रूल के अनुसार यदि कोई इस तरह की पेशकश करता है तो आपको इस संबंध में अपने तात्कालिक मुखिया को रिपोर्ट करनी होती है। ऐसा ही उन्होंने किया। उन्होंने इस पूरे प्रकरण से रक्षा मंत्री को आगाह किया। अब वह एक्शन लें, न लें यह उनकी मर्जी।


अगर हम देखें तो जनरल वीके सिंह पिछले पांच साल से सेना के भीतर से भ्रष्टाचार हटाने में लगे हुए हैं। इस दौरान उन्होंने पांच लेफ्टिनेंट जनरल का कोर्ट मार्शल किया है। ऐसा इससे पहले कभी नहीं हुआ। ऐसे में अब लोग उनके पीछे पड़ने लगे हैं। अब उनकी चिट्ठी को लेकर बवाल मचा हुआ है। आर्मी चीफ, एयरफोर्स चीफ व नेवी चीफ का अधिकार है कि वह तीनों सेना के संचालन में हो रही खामियों के संबंध में अपने वरिष्ठों को अवगत कराएं। जनरल ने भी यही किया। उन्होंने बताया कि ये कमियां हैं। इससे यह प्रभाव पड़ रहा है। जो चिट्ठी उन्होंने प्रधानमंत्री को भेजी वह भी रक्षा मंत्रालय के जरिए भेजी गई हैं। इसमें स्पष्ट लिखा है कि ‘टू द ऑनरेबल प्राइममिनिस्टर थ्रू डिफेंस मिनिस्टर’। उन्होंने किसी को बाइपास नहीं किया है। सेनाध्यक्ष की रिपोर्टिंग के लिए जो प्रोटोकॉल बनाया गया है, उन्होंने उसे पूरा फॉलो किया है। मैं जनरल वीके सिंह को लंबे समय से जानता हूं। वह हमसे 14-15 वर्ष जूनियर थे। वह एक ईमानदार और सिद्धांतवादी व्यक्ति हैं। मैने आज तक उन्हें दस्तूर तोड़ते नहीं देखा है। इस तरह के मसले सेना और रक्षा मंत्रालय के बीच उठते रहे हैं और उठते भी रहने चाहिए। देखा जाए तो पूरा मामला गलत तरीके से उछाला जा रहा है।  जब से सेना प्रमुख बने हैं तब से वह बिचौलियों को बीच से निकाल रहे हैं। सेना को आ रही दिक्कतों को  लेकर रक्षा मंत्रालय को तो पहले भी पत्र लिखे जाते रहे हैं। इसमें रक्षा मंत्रालय से वाद-विवाद भी होता है। जब मैं सेवारत था तब भी ऐसा होता था। बस अंतर यह था कि यह मामले बाहर नहीं आते थे। यह मामला ऐसा है नहीं, जैसा बना दिया गया है।


सेनाध्यक्ष का सीधा ताल्लुक रक्षा मंत्रालय से होता है। सुरक्षा संबंधी गंभीर मामले में प्रधानमंत्री से सीधे मिलने और बात करने का उन्हें पूरा हक है। हर छह माह में प्रधानमंत्री के साथ सैन्य अधिकारियों की बैठक किए जाने की परंपरा रही है। इसमें प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री, रक्षा राज्य मंत्री, रक्षा सचिव के अलावा सेनाध्यक्ष व सेना के वरिष्ठ अधिकारी मौजूद रहते हैं। इसमें सेनाध्यक्ष सरहदों की सुरक्षा के साथ ही सेना की जरूरतों के विषय में चर्चा करते हैं। पर अब यह बैठकें कम होने लगी हैं। ऐसे में उन्होंने सीधे प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है। यह उनका अधिकार भी है। अमेरिका और यूके में तो सेनाध्यक्ष को ऐसे मुद्दों पर पार्लियामेंट को संबोधित करने का अधिकार है।


यह बात भी लगातार उठ रही है कि आयु विवाद में मुंह की खाने के बाद जनरल ने ऐसा किया है। यहां मैं स्पष्ट करना चाहूंगा कि जनरल ने मुंह की नहीं खाई है। दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने इस पर कभी अपना निर्णय दिया ही नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने रक्षा मंत्रालय से कहा कि जनरल की आयु के संबंध में जिस प्रकार का आर्डर उन्होंने पास किया वह गलत है। अगले दिन रक्षा मंत्रालय ने यह आदेश वापस ले लिया। ऐसे में कोर्ट ने जनरल को कहा कि जब रक्षा मंत्रालय ने अपना आदेश वापस ले लिया तो वह भी अपनी शिकायत वापस ले लें। ऐसे में जनरल ने अपनी शिकायत वापस ले ली।


इसके बाद भ्रष्टाचार उजागर करने की बात करें तो इंटरव्यू के दौरान भ्रष्टाचार पर पूछे सवाल पर उन्होंने अपना अनुभव बताया। यह कहना कि उन्होंने खुद विवाद को हवा दी, बिल्कुल गलत है। डेढ़ साल पहले जब उन्हें रिश्वत की पेशकश की गई तो उन्होंने इस बारे में गृह मंत्रालय को अवगत करा दिया था। जहां तक इस चिट्ठी के सार्वजनिक होने की बात है तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है। इसे सार्वजनिक नहीं होना था, लेकिन अब इस पर हल्ला क्यों? यदि थर्मामीटर बुखार दिखा रहा है तो जरूरत बुखार का इलाज करने की है न कि थर्मामीटर को तोड़ने की।


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