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तब: सोचिए। अभी कुछ दशक पहले हमारी धरती कैसी थी! कल-कल करती नदियों की धवल धारा। विशुद्ध आबोहवा। चहुंओर हरियाली। प्रकृति की सुंदरता निहारकर ही पेट भर जाता होगा। आस-पास उछलते कूदते वन्य जीव भरी-पूरी जैव विविधता के परिचायक होते होंगे। पूरी प्रकृति में एक तारतम्यता और सामंजस्य रहा होगा। जल, जंगल, जमीन और जीव समेत हमारे ग्र्रह के सभी प्राकृतिक अंगों के बीच निश्चित और संतुलित अनुपात बरकरार रहा होगा। पानी की किल्लत जैसे शब्द लोगों ने सुने ही नहीं होंगे। दूषित हवा का तो लोगों को ख्याल ही नहीं रहा होगा। प्रदूषण क्या होता है और इसका स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर पड़ता है, ये सब बातें उस दौर के शब्दकोश में ही नहीं रही होगी। क्या उस दौर में किसी ने सोचा होगा कि कभी धरती के अस्तित्व का संकट खड़ा हो सकता है?
अब: जल संकट गहरा रहा है। अमूमन जलस्नोत बच ही नहीं रहे हैं। जो हैं भी उनका पानी दूषित हो चला है। सदानीरा और धवल धाराएं अब नीर विहीन हो चली हैं। नजर उठाकर देखिए तो हरियाली की जगह कंक्रीट के जंगल दिखाई देंगे। प्रकृति में जल, जंगल और जमीन की हिस्सेदारी कम हो रही है। पर्यावरण पर प्रदूषण का पहरा हो चुका है। ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन जैसे शब्द बोलचाल के सर्वाधिक लोकप्रिय शब्द बन चुके हैं। प्रकृति के अवयवों का अनुपात बिगड़ चुका है। कुल मिलाकर धरती के अस्तित्व पर संकट गहरा गया है।
कब: इस संकट से हम सब वाकिफ भी हैं। आखिरकार हमारे ही लालच का नतीजा तो है यह। विकास के स्वार्थ में हमने जाने-अनजाने प्राकृतिक संसाधनों का दोहन किया और करते चले जा रहे हैं। हम कभी पृथ्वी के प्रति अपने फर्ज का एहसास ही नहीं कर पाए। कभी पृथ्वी के प्रहरी बने ही नहीं। अब तो एक ही उपाय नजर आता है कि ऐसे कड़े कानून बन जाएं जिसमें सभी के लिए प्राकृतिक संसाधनों के इस्तेमाल की निश्चित मात्रा तय की गई हो। पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने पर कठोर नियम-कायदे हों। सोचो तब क्या होगा? ऐसे में आज पृथ्वी दिवस के मौके पर हम सबके लिए पृथ्वी का प्रहरी बनकर इसे बचाने की मुहिम चलाना ही सबसे बड़ा मुद्दा है।
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तकनीक की सार्थकता
आज विश्व पृथ्वी दिवस है। धरती को बचाने के लिए चार दशक पहले इसे मनाने की शुरुआत की गई थी। पिछले चार दशकों में पृथ्वी को नुकसान से बचाने की तमाम कोशिशें हुईं लेकिन अब भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। दुनिया में ऐसी कई हरी तकनीकें या तो उपलब्ध हैं या इनके विकास के प्रयास किए जा रहे हैं जिनके प्रयोग से दूषित होते पर्यावरण को बचाया जा सकता है। अभी ये तकनीक अपनी शुरुआती दौर में हैं लेकिन भविष्य में इनकी उपयोगिता ही इनका विस्तार करेगी।
सौर उर्जा
ऊर्जा के इस नवीकृत रूप का सबसे बड़ा उपभोक्ता देश स्पेन है। यहां सेविले के पास पीएस10 सोलर टावर से बिजली पैदा की जा रही है। हेलियो स्टेट कहे जाने वाले 600 बड़े चलायमान दर्पणों की सहायता से विद्युत उत्पादन किया जा रहा है। कैडिज में निर्माणाधीन स्पेन के सबसे बड़े सौर ऊर्जा केंद्र से 25 हजार घरों को रोशन किया जा सकता है। भारत में अभी इसकी हिस्सेदारी कुल ऊर्जा उत्पादन की एक फीसद से भी कम है
स्मार्ट मीटर
घरेलू बिजली के नुकसान को स्मार्ट मीटर लगाकर रोका जा सकता है। इटली के 85 फीसद घरों में ऐसे मीटर का प्रयोग किया जा रहा है। भारत में बिजली पारेषण एवं वितरण (टी एंड डी) नुकसान 25 फीसद है जबकि चीन और अमेरिका में यह आंकड़ा आठ फीसद ही है
पवन ऊर्जा
दुनिया के कई देशों में वायु ऊर्जा को बढ़ावा दिया जा रहा है। समुद्र में बड़े-बड़े टरबाइन स्थापित करने में ब्रिटेन अग्र्रणी है। एक अनुमान के मुताबिक अगले दस साल में ब्रिटेन की 30 फीसद ऊर्जा जरूरत पवन ऊर्जा से पूरी होगी। भारत में कुल ऊर्जा उत्पादन का 1.6 फीसद इस स्नोत से आता है जो दुनिया में कुल उत्पादित पवन ऊर्जा का करीब सात फीसद है। उत्पादन के आधार पर भारत केवल अमेरिका, जर्मनी, स्पेन और चीन से ही पीछे है
नाभिकीय ऊर्जा
ऊर्जा के इस भरोसेमंद रूप की वृद्धि का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 13 देशों में 53 नए रिएक्टर बनाए जा रहे हैैं। भारत, चीन, रूस और दक्षिण कोरिया इनमें प्रमुख है। अभी देश में कुल उत्पादित बिजली का करीब तीन प्रतिशत हिस्सा नाभिकीय ऊर्जा से पैदा किया जा रहा है
सोलर पैनल्स
पानी गर्म करने के लिए दुनिया के अधिकांश हिस्सों में इस तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है
पर्सनल रैपिड ट्रांजिट (निजी द्रुत यातायात)
2030 तक अधिकांश वाहन बिजली और नवीनीकृत ऊर्जा या नाभिकीय ऊर्जा से उत्पादित हाइड्रोजन से चलने वाली ईंधन बैट्रियों से चलेंगे। आगे चलकर मौजूद तकनीकों पर आधारित पर्सनल रैपिड ट्रांजिट के तहत शहरों में चालक रहित ट्रेन दिखाई दे सकती है.
लहर ऊर्जा
समुद्र की लहरों से ऊर्जा पैदा करने का काम जोरों पर है। लहरों के साथ ऊपर और नीचे होने वाले दो अलग-अलग सर्पाकार यंत्रों ने इस प्रयोग को नई दिशा दी है। हालांकि व्यावसायिक रूप अख्तियार करने में पवन ऊर्जा से वेव ऊर्जा अभी 15 साल पीछे है लेकिन ऊर्जा की बढ़ती जरूरतों के मद्देनजर इसकी उपयोगिता को नकारा नहीं जा सकता है। पुर्तगाल और स्काटलैैंड के समुद्री तट पर वेव फाम्र्स काम कर रहे है
इको एयरक्राफ्ट
रॉयल एरोनाटिकल सोसायटी द्वारा डिजायन किए गए इन विमानों के डैने उड़ते हुए पंखों का आभास कराते हैैं। यह तकनीक 25 फीसद ज्यादा कार्यकुशल है। प्रॉपफैन (उड़ते हुए पंखों वाली तकनीक) की तरफ आशा लगाए बैठी बोइंग कंपनी का दावा है कि इससे मौजूदा जेट इंजन की तुलना में 35 फीसद कम ईंधन खपत होता है
टाइडल पावर
महासागर की लहरों से भी ऊर्जा बनाने की कोशिश है। फ्रांस में ला रांस टाइडल पावर प्लांट कार्यरत है जबकि वेल्स और इंग्लैंड के समुद्री तटों पर सेवर्न बैरेज का निर्माण प्रस्तावित है
सोलर रूफ (सौर छत)
अगर आपके घर की छत को फोटो वोल्टाइक
छत में बदल दिया जाय और आप अपनी खपत से ज्यादा बिजली पैदा करें जिसे बचाकर पैसा
कमा सकें तो आप कैसा महसूस करेंगे। है न आम के आम गुठलियों के दाम वाली योजना।
सालों साल चलने वाली इस छत से आप बिजली पैदा करके कमाई भी कर सकते हैैं। कई स्थानों में इस तरह के प्रयोग हो रहे है
सौर बिजली उत्पादन बैट्री
अगर आपका छत छोटा है तो मायूस न हों। मैसाचुसेट्स की कंपनी कोणार्क ने ऐसी पारदर्शी बैट्रियां बनाई हैं जिनको खिड़कियों पर फिट करके ऊर्जा पैदा की जा सकती है
सेकंड जनरेशन बॉयोफ्युल्स
कई अध्ययनों में यह साबित किया जा चुका है कि मक्का, सोया या गन्ने की फसलों की तुलना में शैवालों से 100 गुना ज्यादा ऊर्जा पैदा की जा सकती है। कार्बन ट्रस्ट के एक अनुमान के मुताबिक साल 2030 तक दुनिया के कुल जेट विमानों में खपत होने वाले ईंधन का 12 फीसद हिस्सा इन शैवालों से मिलेगा
एलईडी बल्ब
इन लाइट इमीटिंग डायोड से परंपरागत बल्बों की तुलना में 95 फीसद बिजली बचाई जा सकती है
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22 अप्रैल को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “सीमित उपभोग की बड़ी जरूरत” पढ़ने के लिए क्लिक करें.
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