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सूचना का अधिकार
12 अक्टूबर, 2005 को सूचना का अधिकार कानून अस्तित्व में आया। इसके लागू होने के बाद माना गया था कि जनता जर्नादन तक सूचनाओं की पहुंच आसान हो जाएगी और सरकारी जवाबदेही और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में यह कानून कारगर साबित होगा। हालांकि इसके प्रयोग से कई घोटालों का भंडाफोड़ किया गया लेकिन इसका असर केवल घोटालों को सामने लाने तक ही सीमित है।
असर: कानून लागू होने के पांच साल बाद प्राइसवाटरहाउसकूपर्स ने मूल्यांकन कर देश भर में इसके प्रभाव की वास्तविक जानकारी के संबंध में एक रिपोर्ट प्रस्तुत की। इसके अनुसार इस सक्षम कानून के प्रति लोग जागरूक नहीं हैं। जहां 47 फीसदी लोगों को तय समय में वांछित जानकारी न मिलने का मलाल है वहीं अधिकारी काम बढ़ने का रोना रोते हैं।
ज्युडीशियल स्टैंडर्ड एंड अकाउंटबिलिटी बिल-2010
न्यायिक क्षेत्र में सुधार के लिए एक दिसंबर, 2010 को इसे लोकसभा में पेश किया गया। 30 दिसंबर, 2010 को राज्यसभा सभापति ने इस बिल को कार्मिक, लोक शिकायत, कानून एवं न्याय मामलों की संसदीय समिति के पास विचारार्थ भेज दिया। समिति ने 30 अगस्त को संसद के दो सदनों के पटल पर अपनी रिपोर्ट पेश की। न्यायिक क्षेत्र में सुधार के लिए प्रस्तावित इस कानून की प्रमुख खूबी जजों की नियुक्ति प्रक्रिया में बदलाव है।
पब्लिक प्रोक्योरमेंट बिल
पेंसिल से लेकर विमान तक के सरकारी खरीद समझौतों में पारदर्शिता लाने के लिए यह बिल प्रस्तावित है। इसे संसद के शीतकालीन सत्र में पेश किए जाने की संभावना है। इस बार स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा पब्लिक प्रोक्योरमेंट बिल लाने की घोषणा के बाद इसे गति मिली। फरवरी में कैबिनेट सचिव ने कंपटीशन कमीशन के पूर्व चेयरमैन विनोद धाल की अध्यक्षता में प्रोक्योरमेंट मसले पर एक विशेष समिति का गठन किया था। यह समिति अपनी सिफारिशें सौंप चुकी है।
प्रिवेंशन ऑफ मनी लांडरिंग एक्ट एंड अनलॉफुल एक्टिविटीज एक्ट में संशोधन
फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स की सिफारिशों के बाद जुलाई महीने में इस बिल में संशोधन के मसले ने तूल पकड़ा। संशोधित बिल में 28 विभिन्न रूपों वाले 156 अपराधों से निपटने का प्रावधान है। इसके अलावा इस बिल में आतंकवाद और आतंकवाद को मुहैया होने वाले वित्त से लड़ने के भी प्रावधान किए गए हैं।
व्हिसिल ब्लोअर प्रोटेक्शन बिल
पूर्व में मंजूनाथ षणमुखम, सत्येंद्र दूबे, अमित जेठवा, दत्ता पाटिल, सतीश शेट्टी, विट्ठल गीते, शशिधर मिश्रा जैसे व्हिसिल ब्लोअर्स मारे गए। इसके अलावा कई आरटीआइ कार्यकर्ताओं पर जानलेवा हमले हुए। लगातार बढ़ती इस तरह की घटनाओं के बाद एक ऐसे कानून की जरूरत महसूस की गई जो देशहित या जनहित में किसी अनियमितता या घोटाले के खिलाफ आवाज उठाने वालों को संरक्षण प्रदान करे। अगस्त 2010 में प्रस्तावित विधेयक पब्लिक इंट्रेस्ट डिसक्लोजर एंड प्रोटेक्शन टू पर्सन मेकिंग द डिस्क्लोजर बिल 2010 को कैबिनेट की स्वीकृति मिली। इस बिल में मुख्य सतर्कता आयोग (सीवीसी) को एक सिविल कोर्ट की शक्तियां दी गई है।
जन शिकायत निवारण विधेयक-2011
इसके ड्राफ्ट विधेयक को समीक्षा के लिए कानून मंत्रालय और पीएमओ में भेजा जा चुका है। प्रस्तावित विधेयक तीन मूल सिद्धांतों पर आधारित है। सिटिजन चार्टर, शिकायतों के निवारण के लिए तय समयसीमा और तय समयसीमा में सेवा मुहैया कराने में असफल रहने पर सजा का प्रावधान।
यूआइडी अथॉरिटी ऑफ इंडिया बिल 2010
विशिष्ट पहचान परियोजना (यूआइडी) के तहत देश के सभी नागरिकों की पहचान करके उन्हें प्रभावी रूप से कल्याणकारी योजनाएं मुहैया कराई जानी हैं। इसके द्वारा सरकारी योजनाओं और कार्यक्रमों की निगरानी भी की जाएगी। पिछले साल सितंबर में इस बिल को कैबिनेट की स्वीकृति मिल चुकी है। इस बिल में नेशनल आइडेंटीफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया नामक एक संवैधानिक प्राधिकरण बनाए जाने का प्रस्ताव है।
इलेक्ट्रॉनिक सर्विस डिलीवरी बिल
सरकारी दफ्तरों एवं कामकाज में इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से जनसेवाओं को मुहैया कराने को लेकर यह बिल प्रस्तावित है। इस कानून के लागू होने के बाद सभी सरकारी कार्यालयों में इलेक्ट्रानिक माध्यम में सेवा देने की अनिवार्यता हो जाएगी। बिल का ड्राफ्ट तैयार है। इस साल अप्रैल में विभिन्न मंत्रालय की राय लेने के लिए इसे उनके पास भेजे जाने के अलावा कैबिनेट में भी भेजने की चर्चा थी।
ब्राइबरी ऑफ फॉरेन पब्लिक ऑफिशियल बिल-2011
इस साल के बजट सत्र में इस विधेयक को लोकसभा में पेश किया गया। इसका मुख्य उद्देश्य भारत में घूस देने वाले विदेशी अधिकारियों को प्रत्यर्पित करके यहां लाकर सजा देना है। यह प्रावधान अब तक यहां के भ्रष्टाचार से लड़ने वाले कानूनों में शामिल नहीं था।
इलेक्टोरल रिफार्म्स एमेंडमेंट बिल
चुनाव सुधारों पर अगला आंदोलन करने की अन्ना की चेतावनी ने सरकार को अग्रिम रणनीति तैयार करने पर विवश कर दिया। लिहाजा इसी महीने में सरकार को चुनाव सुधारों पर विधेयक लाने की घोषणा करनी पड़ी। इस प्रस्तावित विधेयक में राजनीति को अपराधीकरण से मुक्त करने के लिए व्यापक चुनाव सुधारों की बात कही जा रही है। इस विधेयक को संसद के शीतकालीन सत्र में लाने का अनुमान है।
जनमत
क्या भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार की सक्रियता अन्ना का असर है?
हां: 87%
नहीं: 13%
क्या भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को अंजाम तक पहुंचाने में सरकार प्रतिबद्ध दिख रही है?
हां: 11%
नहीं: 89%
आपकी आवाज
भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में सरकार लीपापोती कर जनता की आंखों में धूल झोंक रही है। -नारायण दत्त.एडवोकेट@जीमेल.काम
मौजूदा सरकार भ्रष्टाचार से लड़ने में अक्षम है। -जेएस बेदी323@जीमेल.काम
भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार की सक्रियता अन्ना का असर तो है लेकिन यह असर सच्चा कम दिखावटी अधिक है। -गौरीशंकर1054@रीडिफमेल.काम
सरकार भ्रष्टाचार की लड़ाई को अंजाम तक पहुंचाने के लिए दिखावा कर रही है। अगर वह सचमुच गंभीर होती तो अब तक यह लड़ाई अपनी मंजिल तक पहुंच चुकी होती। -राजू09023693142@जीमेल.काम
सरकार का पूर्व का इतिहास यह बताने के लिए काफी है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को अंजाम तक पहुंचाने के प्रति यह कितनी गंभीर है। -कंचन, दिल्ली
अन्ना के असर से ही भ्रष्टाचार के प्रति सरकार की थोड़ी बहुत सक्रियता दिखी है। वर्ना इसके कानों पर कहां जूं रेंगने वाली थी। -रौनक, जम्मू
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18 सितंबर को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “दिखावे से नहीं बनेगी बात” पढ़ने के लिए क्लिक करें.
साभार : दैनिक जागरण 18 सितंबर 2011 (रविवार)
नोट – मुद्दा से संबद्ध आलेख दैनिक जागरण के सभी संस्करणों में हर रविवार को प्रकाशित किए जाते हैं.
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