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ऐसे बनता है बजट

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सामान्यत: आय और व्यय की सूची को बजट कहते हैं। बजट किसी देश, संस्था, व्यक्तिगत अथवा किसी परिवार का भी हो सकता है। यह भविष्य में किए जाने वाले खर्च का हिसाब है जिसे हम वर्तमान में बनाते हैं.

बजट में सरकार की आर्थिक नीतियों का स्पष्ट संकेत मिलता है। इसके बनने की प्रक्रिया काफी लंबी और जटिल होती है

1. सितंबर में प्रक्रिया की शुरुआत के साथ केंद्रीय वित्त मंत्रालय के बजट विभाग के पास केंद्रीय मंत्रालयों, राज्यों एवं स्वायत्त निकायों के खर्चे और आमदनी की जानकारी भेजी जाती है


2. जनवरी में विभिन्न राजनीतिक दलों, उद्योग, कृषि व श्रम संगठनों के साथ वित्त मंत्रालय बातचीत करता है। इसके बाद वित्त मंत्री अपने अधिकारियों के साथ बजट की नीतियों पर चर्चा करते हैं


3. वित्त मंत्री बजट की प्रमुख नीतियों तय करते हैं। जैसे कहां रियायत देनी है, कहां लगाम लगानी है। ब्याज दरों व मूल्य व्यवस्था पर भी दिशानिर्देश तय होते हैं


4. बजट बनाने की प्रक्रिया अति गोपनीय होती है। बजट भाषण पूरा होने के सात दिन पहले से बजट से जुड़े सभी अधिकारी और कर्मचारियों का बाहरी दुनिया से कोई संपर्क नहीं रहता है


5. बजट पेश किए जाने से दो दिन पहले प्रेस सूचना कार्यालय के अधिकारी विज्ञप्तियां बनाते हैं। संसद में बजट पेश किए जाने से 10 मिनट पहले कैबिनेट को इसका संक्षिप्त रूप दिखाया जाता है

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कर राजस्व: सरकार द्वारा लगाए गए तमाम करों व शुल्कों से प्राप्त होने वाली धनराशि को कर राजस्व कहते हैं। मसलन आयकर, कॉरपोरेट टैक्स, सेवा कर, उत्पाद शुल्क वगैरह


गैर कर राजस्व या अन्य राजस्व: सरकारी निवेश पर ब्याज व लाभांश, सरकार की अन्य सेवाओं पर प्राप्त होने वाले तमाम शुल्क आदि शामिल होते हैं


राजस्व प्राप्तियां: कर और अन्य राजस्व को मिलाकर प्राप्त होने वाली कुल धनराशि को सरकार की राजस्व प्राप्तियां कहते हैं


राजस्व खर्च: सरकारी विभागों व विभिन्न सेवाओं के संचालन पर खर्च होने वाली रकम, सब्सिडी, सरकारी कर्ज पर ब्याज, राज्य सरकारों को  अनुदान इत्यादि इसमें शामिल हैं। राजस्व खर्चों से कोई भी परिसंपत्ति या भौतिक उपलब्धि हासिल नहीं होती है


राजस्व घाटा: कुल राजस्व खर्च और राजस्व प्राप्तियों का अंतर


पूंजीगत प्राप्तियां (कैपिटल रिसीट): सरकार द्वारा आम जनता व रिजर्व बैंक से लिए जाने वाले कर्ज, विदेशी सरकारों व संस्थानों से प्राप्त होने वाले ऋण और राज्यों इत्यादि द्वारा वापस किए गए कर्ज इसमें शामिल हैं


पूंजीगत भुगतान या पूंजीगत खर्च: जमीन, मकान, मशीनरी आदि की खरीद पर सरकारी खर्च और राज्य सरकारों, केंद्र शासित प्रदेशों, सरकारी कंपनियों को दिए जाने वाले कर्ज वगैरह इसके अंतर्गत आते हैं


बजट घाटा: कुल राजस्व-पूंजीगत खर्चों और कुल राजस्व-पूंजीगत प्राप्तियों के अंतर को बजट घाटा कहा जाता है


राजकोषीय घाटा: बजट घाटे को पाटने के लिए सरकार द्वारा लिए जाने वाले कर्ज व उस पर अन्य देनदारियों  को ही राजकोषीय घाटा कहते हैं। बजट में सबसे ज्यादा इसका ही इस्तेमाल किया जाता है

इसे कुछ अलग ढंग से भी समझा जा सकता है। मान लीजिए कि किसी व्यक्ति की कुल सालाना आमदनी एक लाख रुपये है और उसका साल भर का खर्च एक लाख 20 हजार रुपये है तो उसे अपने खर्चों को पूरा करने के लिए 20 हजार रुपये का कर्ज कहीं से लेना ही पड़ेगा। इसका मतलब यही हुआ कि वह आदमी सालाना 20 हजार रुपये के घाटे के साथ अपना परिवार चला रहा है। अगर वह किसी अन्य वैध तरीके से अपनी आय नहीं बढ़ाएगा तो उसका यह घाटा बढ़ता चला जाएगा

ठीक यही बात सरकार पर भी लागू होती है। ऐसी हालत में सरकार के लिए यह जरूरी होता है कि या तो वह अपने अनावश्यक खर्चों में कटौती करे या गैर जरूरी सब्सिडी नहीं दे। साथ ही लोगों पर बगैर ज्यादा बोझ डाले तमाम स्नोतों से राजस्व बढ़ाए अथवा विभिन्न कर दरों को तर्कसंगत बनाए


अनुदान मांग: विभिन्न मंत्रालयों व सरकारी विभागों के खर्च अनुमानों को अनुदान मांग के रूप में सालाना वित्तीय वक्तव्य में शामिल किया जाता है। इसे लोकसभा में पारित करवाना पड़ता है


विनियोग विधेयक (एप्रोप्रिएशन बिल): लोकसभा में अनुदान मांगों को मंजूरी मिलने के बाद इस धनराशि को भारत की समेकित निधि से निकाला जाता है। इस निधि से तभी कोई धन निकाला जा सकता है, जब इसके लिए विनियोग विधेयक तैयार कर उसमें यह राशि शामिल की जाए और उसे संसद की मंजूरी मिल जाए


समेकित निधि: सरकार द्वारा करों, कर्जों, बैंकों व सरकारी कंपनियों के लाभांश वगैरह के जरिए जुटाई जाने वाली राशि भारत की समेकित निधि (कंसोलिडेटेड फंड) में ही डाली जाती है। संसद की मंजूरी के बगैर इसका एक पैसा भी खर्च नहीं किया जा सकता


सालाना वित्तीय वक्तव्य: बजट के कुल सात दस्तावेजों में से सबसे प्रमुख दस्तावेज को सालाना वित्तीय वक्तव्य (फाइनेंशियल स्टेटमेंट) कहते हैं। इसमें तमाम प्राप्तियों व खर्चों या आवंटन का जिक्र किया जाता है


वित्त विधेयक: नए टैक्स लगाने, मौजूदा कर ढांचे को स्वीकृत अवधि के बाद भी जारी रखने और कर ढांचे में संशोधन से संबंधित सरकारी प्रस्तावों को वित्त विधेयक के जरिए ही संसद में पेश किया जाता है ताकि उसकी मंजूरी मिल सके


राष्ट्रीय ऋण: केंद्र सरकार पर घरेलू व विदेशी कर्जदाताओं के कुल कर्ज बोझ को राष्ट्रीय ऋण कहा जाता है


सार्वजनिक ऋण: राष्ट्रीय ऋण के साथ-साथ राष्ट्रीयकृत उद्योगों और स्थानीय प्राधिकरणों के कुल कर्ज बोझ को सार्वजनिक ऋण कहा जाता है


ट्रेजरी बिल: सरकार कम अवधि वाले कर्ज ट्रेजरी बिलों के जरिए ही जुटाती है

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विदेश में प्रावधान

American flagअमेरिका

यहां का बजट ऑफिस ऑफ मैनेजमेंट एंड बजट तैयार करता है। इसके बाद विचार करने के लिए कांग्र्रेस के पास भेजा जाता है। हमेशा की तरह कांग्र्रेस इसमें कई बड़े और बेहद अहम बदलाव करती है। एक अक्टूबर से शुरू होने वाले वित्तीय वर्ष के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति जनवरी के पहले सोमवार से फरवरी के पहले सोमवार के बीच बजट कांग्रेस में पेश करता है


germanayजर्मनी

यहां की संसद (बुंदेस्टैग) द्वारा एक या दो साल के लिए बजट पारित किया जाता है। हर मंत्रालय और विभाग वित्तीय वर्ष 1 जनवरी से 31 दिसंबर के अनुसार अपने आय और व्यय का ब्यौरा तैयार करता है


canada flagकनाडा

वित्त मंत्री द्वारा बजट को हाउस ऑफ कामंस में पेश किया जाता है। यहां बजट पेश करने की कोई निश्चित तारीख नहीं है लेकिन पारंपरिक रूप से फरवरी में पेश किया जाता है। यह बजट सरकार के लिए एक तरह से विश्वासमत की तरह होता है। हाउस ऑफ कामंस में पेश किए जाने के बाद अगर इसके विरोध में ज्यादा मत पड़ जाते है तो सरकार गिर सकती है


britainब्रिटेन

सरकार के दूसरे सबसे महत्वपूर्ण अंग वित्तमंत्री (चांसलर आफ एक्सचेकर) के ऊपर बजट तैयारी का जिम्मा होता है। तैयार बजट को संसद से पारित कराना आवश्यक होता है। कभी कभी संसद इसमें बदलाव भी करती है। 6 अप्रैल से 5 अप्रैल के बीच वित्तीय वर्ष के लिए सामान्यतया बजट को मार्च में पेश किया जाता है


Pakistanपाकिस्तान

यहां वित्तीय वर्ष की शुरूआत एक जुलाई से होती है। कैबिनेट से स्वीकृत वित्त मंत्रालय द्वारा तैयार बजट प्रस्ताव को संसद में रखा जाता है


japanजापान

अगस्त के अंत तक सभी मंत्रालय व विभाग अपनी बजट मांगें वित्त मंत्री के पास भेजते हैैं। मंत्रालय का बजट ब्यूरो इनका निरीक्षण करता है। इस दौरान यह किसी भी मंत्रालय से अतिरिक्त आंकड़ों की मांग कर सकता है। दिसंबर की शुरुआत तक इस प्रक्रिया के बाद वित्त मंत्रालय बजट बनाने के दिशानिर्देश जारी करता है। जिसके आधार पर ड्राफ्ट बजट तैयार किया जाता है। वित्त मंत्रालय से हरी झंडी मिलने के बाद ड्राफ्ट बजट को विभिन्न मंत्रालयों में भेजा जाता है। कैबिनेट इस ड्राफ्ट बजट को दिसंबर के अंत तक स्वीकृत करती है। अंतिम चरण के दौरान इस ड्राफ्ट बजट को मध्य जनवरी तक ‘डाइट’ (प्रतिनिधि सभा) के समक्ष पेश किया जाता है। इसकी बजट समिति द्वारा इसे जांचने के बाद इस पर मतदान कराया जाता है। हाउस ऑफ काउंसलर्स में भी इसी प्रक्रिया को दोहराया जाता है। यहां से पारित होने के बाद यह एक अप्रैल से प्रभावी हो जाता है


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