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पहचान के खेल में तेजी से बढ़ रहे हैं खिलाड़ी

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UDIसरकारी योजनाओं का लाभ सही हाथों में पहुंचाने सहित कई मकसद की पूर्ति के लिए देश के सभी लोगों की पहचान की प्रक्रिया जोरों पर है। इस प्रक्रिया में कई खिलाड़ी अपना करतब दिखा रहे हैं। यूआइडीएआइ लोगों के बॉयोमेट्रिक्स विवरण एकत्र कर रहा है। ऐसा ही विवरण एनपीआर और कुछ राज्य भी एकत्र करने में जुटे हैं। अब एक केंद्रीय मंत्रालय भी इसमें कूदने की मंशा जता चुका है। ऐसी स्थिति में ‘ढेर जोगी मठ उजाड़’ वाली कहावत के चरितार्थ होने की आशंका सहज ही बलवती है।


यूआईडीएआई (भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण): इस जरूरत को पूरा करने के लिए ऐसी संस्था की संकल्पना की गई। नंदन नीलकेणी को इसका प्रमुख बनाया गया। इसका काम देश के प्रत्येक नागरिक को एक विशिष्ट संख्या देना तय किया गया जिसे आधार कहा गया। मौजूदा पहचान के सभी तरीकों और रूपों में इसे शीर्ष पर रखा गया। बजट 2011 में वित्तमंत्री द्वारा कल्याणकारी लाभों को नकदी के रूप में बैंक खातों में हस्तांतरित किए जाने की घोषणा के बाद यूआईडी को इस योजना के सारथी के रूप में देखा जाने लगा।


अन्य खिलाड़ी: केंद्र और राज्य स्तर पर ऐसे कुछ और विभाग हैं जो अपनी योजनाओं का लाभ सही हाथों में पहुंचाने के लिए इस तरह की योजना पर या तो काम कर रहे हैं या सोच रहे हैं।


ग्रामीण विकास मंत्रालय: केंद्र सरकार का यह मंत्रालय मनरेगा योजना से जुड़े मजदूरों के बायोमेट्रिक्स पहचान पत्र के शुरुआती परीक्षण पर विचार कर रहा है।

उड़ीसा और केरल: यह दोनों राज्य अपने यहां राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रम के लिए स्मार्ट कार्ड का उपयोग करते हैं। इससे अन्य स्कीमों के लिए लाभार्थियों की पहचान की जाती है।


यूआइडी या एनपीआर

मूल योजना के अनुसार यूआईडीएआई और एनपीआर को क्रमबद्ध तरीके से काम करना था। योजना के अनुसार राष्ट्रीय जनगणना का दायित्व निभाने वाला एनपीआर देश के प्रत्येक नागरिक का बायोमेट्रिक निशान लेगा। यह सबको एक एनपीआर कार्ड जारी करेगा और बाद में इसके द्वारा एकत्र सभी आंकड़ों को यूआईडीएआई को स्थानांतरित किया जाना था। इन आंकड़ों के आधार पर यूआईडीएआई सभी नागरिकों को आधार जारी करती। इस प्रकार सभी देशवासियों के पास एक एनपीआर कार्ड और एक आधार कार्ड होंगे।


चूंकि यूआईडीएआईएनपीआर से पहले ही तैयार हो गई और इसने सरकार से कहा कि जब तक एनपीआर तैयार नहीं हो जाता तब तक हमें बायोमेट्रिक्स पहचान एकत्र करने दी जाए। जून 2010 में सरकार इसे 10 करोड़ लोगों के बायोमेट्रिक्स पहचान मार्च 2011 तक तैयार करने की स्वीकृति दी। बाद में इसे बढ़ाकर 20 करोड़ कर दिया गया और समयसीमा मार्च 2012 तय कर दी गई। इसके लिए 3023 करोड़ रुपये का बजट निर्धारित हुआ। शेष सौ करोड़ लोगों के बायोमेट्रिक्स पहचान पत्र तैयार करने की जिम्मेदारी एनपीआर के हवाले की गई। तय यह किया गया कि एनपीआर के तैयार हो जाने के बाद यूआईडीएआईअपना काम बंद कर देगी। इसके साथ ही जितने लोगों का इसने पहचान पत्र के आंकड़े जुटा लिए हैं, एनपीआर उनको नहीं कवर करेगा।


जून 2011 में एनपीआर ने बायोमेट्रिक्स लेना शुरू किया। इसके एक महीने पहले ही यूआईडीएआई ने देश की पूरी आबादी का बायोमेट्रिक्स 17,864 करोड़ रुपये की लागत से मार्च 2017 तक तैयार करने का प्रस्ताव कर दिया।

जनमत


chart-1क्या सरकारी योजनाओं का पूरा लाभ गरीबों को मिल पाता है?


हां: 5%

नहीं: 96%


chart-2क्या सरकारी कल्याणकारी योजनाओं की रकम सीधे गरीबों के खाते में डालने का विचार उचित है?


हां: 74%

नहीं: 26%


आपकी आवाज


अगर सरकारी योजनाओं का लाभ गरीबों को मिलता तो देश में उनकी संख्या इतनी अधिक नहीं होती। -नारायणकैरो96@जीमेल.कॉम

सरकार आंकड़ों में तो दिखा देती है कि गरीबों की मदद के लिए उसने इतना खर्च किया जबकि गरीबों को तो कई सरकारी योजनाओं के बारे में पता ही नहीं है। -अल्का, कानपुर

बैंक खाते में सीधे रकम डालने के साथ लोगों को जागरूक किया जाना भी जरूरी है। -अश्विनी945@जीमेल.कॉम

सरकारी योजनाओं का अभी बहुत कम लाभ गरीबों को मिल पा रहा है। गरीबों के खाते में सीधे रकम देने का प्रयास सराहनीय है। -रायणदत्त.एडवोकेट@जीमेल.कॉम


16 अक्टूबर को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “नए डिलीवरी सिस्टम के पेंच”  पढ़ने के लिए क्लिक करें.

16 अक्टूबर को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “गांवों में बैंकों की कहानी”  पढ़ने के लिए क्लिक करें.

16 अक्टूबर को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “ऐसे में कैसे होगा गरीबों का कल्याण!”  पढ़ने के लिए क्लिक करें.

साभार : दैनिक जागरण 16 अक्टूबर 2011 (रविवार)

नोट – मुद्दा से संबद्ध आलेख दैनिक जागरण के सभी संस्करणों में हर रविवार को प्रकाशित किए जाते हैं.

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