Menu
blogid : 4582 postid : 2121

जल संकट: देश की कहानी

मुद्दा
मुद्दा
  • 442 Posts
  • 263 Comments


पानी की मांग खतरनाक दर से बढ़ रही है। दूसरा सर्वाधिक आबादी वाला यह देश 2050 तक चीन को पछाड़ते हुए पहले पायदान पर पहुंच सकता है। तब 1.6 अरब लोगों के लिए जल संकट विकराल रूप ले सकता है। जल संसाधनों का कुप्रबंधन इस देश की जलापूर्ति को बदतर करने में अहम योगदान कर रहा है। जलवायु परिवर्तन से इस संकट के कई गुना बढ़ने की आशंका है।


मांग और उपयोग: घरेलू, कृषि और औद्योगिक क्षेत्रों में हर साल कुल 829 अरब घनमीटर पानी का उपयोग किया जाता है। साल 2025 तक इस मात्रा में 40 फीसद के इजाफे का अनुमान है।


आपूर्ति: देश में हर साल औसतन चार हजार अरब घन मीटर बारिश होती है लेकिन केवल 48 फीसद बारिश का जल नदियों में पहुंचता है। भंडारण और संसाधनों की कमी के चलते इसका केवल 18 फीसद जल उपयोग हो पाता है।


table-2सतह पर उपलब्ध जल और भूजल :बारिश और नदियों के ड्रेनेज सिस्टम द्वारा सालाना 432 अरब घनमीटर भूजल का पुनर्भरण होता है जिसमें 395 अरब घनमीटर जल ही उपयोग लायक होता है। इस उपयोग लायक जल का 82 फीसद सिंचाई और कृषि कार्यों में उपयोग होता है जबकि 18 फीसद ही घरेलू और औद्योगिक उपयोग के लिए बचता है।




Tableजल प्रबंधन: देश के जल संकट का सबसे दुखद पहलू यह है कि इसे बेहतर जल प्रबंधन से दूर किया जा सकता है। जल कानून, जल संरक्षण, पानी के कुशल उपयोग, जल रीसाइकिलिंग और आधारभूत संसाधनों की ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया है। जल संकट से जूझ रहे चीन जैसे कई विकासशील देशों की तुलना में यहां भूजल के लिए कोई विशेष कानून नहीं है। कोई भी इस भूजल का दोहन कर सकता है, जबतक उसकी जमीन के नीचे पानी निकल रहा है।


………………………………………….


आदिकालीन है हमारी सह अस्तित्व की संस्कृति

सह अस्तित्व की संस्कृति से निर्वहनीय विकास के सिद्धांत का मर्म यह है कि प्रकृति के साथ रहकर मानव भी अपना विकास करे और प्राकृतिक संसाधनों का क्षय भी न हो। प्राकृतिक संसाधनों एवं पर्यावरण संरक्षण का यह नियम हम भारतीय सनातन से मनसा, वाचा और कर्मणा मानते चले आ रहे हैं।


निर्वहनीय विकास की परंपरा हमारे यहां पौराणिक काल से चली आ रही है। हमारे ऋषि-मुनि अपने आश्रम के आसपास जीव-जंतुओं से लेकर पादपों की विविध प्रजातियों का संरक्षण करते थे। हमारे महान संतों और महात्माओं  के उपदेशों में भी इसका आशय निहित था। दूसरों के लिए बलिदान करने की संकल्पना धीरे-धीरे पूर्वी दर्शनशास्त्र का एक अभिन्न हिस्सा बन गई। इस दर्शन में निहित ताकत के बूते ही भारतीय सभ्यता न केवल पांच हजार साल से आज सुरक्षित है बल्कि दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की भी कर रही है। अपनी सभ्यता के लंबे इतिहास में हमने किसी देश पर आक्रमण नहीं किया हालांकि हम पर कई बाहरी आक्रांताओं ने हमले किए लेकिन अंग्रेजों को छोड़कर किसी की भी जीवन शैली और उत्पादन प्रणाली हमारी सभ्यता को प्रभावित न कर सकी। इन्होंने पश्चिमी विज्ञान के माध्यम से हमारी सभ्यता को प्रभावित किया।


पश्चिमी विज्ञान ने हमारे एक धड़े को प्रकृति का दोहन करने और उस पर वर्चस्व स्थापित करने का पाठ पढ़ाने में कामयाबी हासिल की। अंग्र्रेजों के पहले के भारत में प्रकृति के साथ सह अस्तित्व की मान्यता थी जहां कृषि, उत्पादन प्रणाली, यातायात और सामाजिक व धार्मिक कार्यक्रमों की योजना मौसम चक्र के अनुसार बनायी जाती थी। हमारा विज्ञान प्रकृति का सम्मान करता था लेकिन आधुनिक विज्ञान ने कोयले और कच्चे तेलों को उनकी खदानों से निकालने के साथ पुलों और बांधों को बनाने, भूजल के दोहन द्वारा बेमौसमी संकर फसलें उगाने, जीएम फसलों को पैदा करने की जानकारी दी। नए ज्ञान के इस रूप को अपनाने के दो सौ साल के भीतर ही पांच सौ साल के निर्वहनीय अस्तित्व वाले इस देश को विकास का ऐसा मॉडल खोजने पर विवश होना पड़ रहा है जिसके द्वारा मौजूदा पर्यावरणीय गड़बड़ियों से उबरा जा सके।


जनमत

chart-1क्या विश्व वानिकी दिवस या विश्व जल दिवस जैसे आयोजन अपने उद्देश्य में कामयाब है?

38% हां


62% नहीं


chart-2क्या गत सप्ताह मनाए गए विश्व वानिकी और विश्व जल दिवस पर आपने कोई संकल्प लिया है ?

89% हां


11% नहीं


आप की आवाज

हमने संकल्प लिया है कि हम पेड़ जरूर लगाएंगे दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करेंगे. जहां कहीं भी हमें खुली टॉटी से व्यर्थ बहता पानी दिखेगा, हम उसे बंद करने का प्रयास करेंगे- गीति कहकशां@याहू.इन


ऐसे आयोजन केवल कागजों तक ही सीमित रह गए हैं. इसके चलते वनों की अंधाधुंधकटाई और जल के अत्याधिक दोहन पर रोक नहीं लग पा रही है. हमें खुद से इस पर विचार करना होगा- खुसरो इशाक@जीमेल.कॉम


इन दिवसों के आयोजन के प्रति सरकार या राजनेता उतनी रूचि नहीं लेते जितनी अपनी चुनावी रैलियों में दिखाते है. ऐसे में इन दिवसों का आयोजन का उद्देश्य कैसे कामयाब हो सकता है- राजू09023693142@जीमेल.कॉम


प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण को लेकर मनाए जाने वाले अंतरराष्ट्रीय दिवसों की जानकारी समाज के अंतिम आदमी तक पहुंचे, तभी इनके आयोजन का मकसद सार्थक हो पाएगा- आयुष अंश@जीमेल.कॉम


25 मार्च को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “जल है जीवन” पढ़ने के लिए क्लिक करें.


25 मार्च को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “जल जंगल और जीवन” पढ़ने के लिए क्लिक करें.


Read Hindi News


Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh