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भगवान भरोसे हो रहा है शहरी जल प्रबंधन

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-प्रो. असित के विस्वास (संस्थापक, थर्ड वल्र्ड सेंटर फॉर वाटर मैनेजमेंट, मेक्सिको)
-प्रो. असित के विस्वास (संस्थापक, थर्ड वल्र्ड सेंटर फॉर वाटर मैनेजमेंट, मेक्सिको)

जनसंख्या लगातार बढ़ रही है। शहरीकरण तेजी से जारी है। आजादी के बाद से कृषि और औद्योगिक गतिविधियां तेजी से बढ़ी हैं। इन सबके बावजूद किसी को भी कोई एक ऐसा शहर तलाशने में दिक्कत होगी जहां की टोंटी का पानी बगैर स्वास्थ्य की चिंता किए बिना सीधे तौर पर पिया जा सके। जहां का अपशिष्ट जल वातावरण में उत्सर्जित करने से पहले शोधित किया जाता हो। इसी तरह मानसून में बरसात होने के बाद सामाजिक-आर्थिक गतिविधियां ठप न पड़ जाती हों।


ये सभी समस्याएं लंबे समय से विद्यमान हैं। कम से कम पिछले तीन दशक से इनके समाधान पता हैं और देश के पास पिछले दो दशक से इन समस्याओं का हल करने के लिए वित्तीय और प्रबंधकीय साधन उपलब्ध हैं। इसके बावजूद समस्याएं बदस्तूर जारी हैं। यहां तक कि कई शहरों में तो हालात पहले से भी बदतर हो गए हैं। जहां नहीं हुए हैं वहां होते जा रहे हैं।


सरकार केंद्र, राज्य और नगरपालिका के स्तर पर हालांकि यह कह सकती है कि जल संकट के कारण सभी को 24 घंटे शुद्ध पानी की सुविधा नहीं प्रदान कर सकती। लगातार दोहराव के चलते यह गलत तथ्य ठीक लेनिन की उस प्रसिद्ध सूक्ति की तरह हो गया है जिसमें उन्होंने कहा था कि एक झूठ लगातार दोहराने से वह सच सरीखा लगने लगता है।


देश के लगभग सभी बड़े शहरों में लीकेज और चोरी के कारण करीब 50 प्रतिशत जल का नुकसान होता है। यहां तक कि दिल्ली, मुंबई या कोलकाता का औसत नागरिक हैमबर्ग या बार्सिलोना के नागरिक की तुलना में 2.5-3.0 गुना अधिक पानी खर्च करता है। जबकि वहां के नागरिक को ऐसे जल की अबाध आपूर्ति होती है जिसको टोंटी से सीधे ग्रहण किया जा सके।


भले ही एक औसत भारतीय परिवार को तीन-चार घंटे ही जल की आपूर्ति होती हो लेकिन उसको वह अपने टैंकों में संग्रहित कर उसका उपयोग करता है। हर घर के पास अपना जल शोधन तंत्र है जो निजी क्षेत्र द्वारा मुहैया कराया जाता है।


नगरपालिकाओं द्वारा जल की आपूर्ति मुफ्त या बेहद रियायती दरों पर कराई जाती है। हर घर पानी पाने के लिए बिजली पर खर्च करता है। उसके बाद जल शोधन तंत्र और टैंक की साफ-सफाई पर हर दो-तीन महीने में खर्च करता है। इस प्रकार हर परिवार का पानी पर खर्च दो-ढ़ाई गुना अधिक पड़ रहा है जबकि सही जल प्रणाली उपलब्ध होने पर इस अतिरिक्त पैसे को बचाया जा सकता था।


शहरी जल प्रबंधन रॉकेट विज्ञान नहीं है। राजनीतिक इच्छाशक्ति और जागरूक जनता की मांग पर देश में विश्वस्तरीय शहरी जल प्रबंधन तंत्र विकसित हो सकता है। ऐसा होने पर एक आम परिवार द्वारा पानी पर किए जाने वाले खर्च का भार भी वर्तमान की तुलना में आधा रह जाएगा। भले ही भारत एक उभरती हुई आर्थिक शक्ति हो लेकिन उसका शहरी जल प्रबंधन भाग्य भरोसे ही है।


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