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जल है जीवन

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water dropजल की उपलब्धता और खाद्य सुरक्षा के बीच गहरा नाता है क्योंकि सूखे का प्रत्यक्ष असर भोजन की उपलब्धता पर पड़ता है, जिससे जन-जीवन का स्वास्थ्य प्रभावित होता है। इसीलिए संयुक्त राष्ट्र ने इस साल विश्व जल दिवस की थीम ‘ जल और खाद्य सुरक्षा : हम भूखे हैं क्योंकि दुनिया प्यासी है’ घोषित की है:


विश्व जल दिवस

1992 में ब्राजील के रियो डि जेनेरियो में पर्यावरण एवं विकास पर संयुक्त राष्ट्र कांफ्रेंस (यूएनसीईडी) के ‘एजेंडा 21’ के प्रस्ताव में इस दिवस को मनाने की बात सबसे पहले कही गई


उसके बाद संयुक्त राष्ट्र महासभा ने हर साल 22 मार्च को इस दिवस को मनाने का फैसला किया। नतीजतन 1993 में पहला विश्व जल दिवस मनाया गया


सूखा

विकासशील देशों में सूखा अभी भी सबसे बड़ा कारण है जिसकी वजह से भोजन की उपलब्धता में कमी आती है


पिछली सदी में किसी भी अन्य प्राकृतिक आपदा की तुलना में सूखे की वजह से सर्वाधिक मौतें हुई हैं


सूखे की मार से प्रभावित होने के मामले में एशिया और अफ्रीका महाद्वीप का पहला स्थान है


जल एवं भोजन

फसलों, मवेशियों, मत्स्यपालन और वन उत्पादों के लिए जल बुनियादी शर्त है


1500 लीटर :  एक किग्रा गेहूं के उत्पादन के लिए जरूरी पानी की मात्रा


2-4 लीटर : आम आदमी द्वारा रोजाना पीने वाले जल की मात्रा


25 प्रतिशत : वैश्विक मछली उत्पादन में नदियों और मत्स्य पालन की हिस्सेदारी

30 प्रतिशत : दुनिया भर में कुल उत्पादन में से नष्ट होने वाले खाद्यान्न की मात्रा।


50 प्रतिशत: नष्ट होने वाले खाद्यान्न की अगर आधी मात्रा बचा ली जाए तो 1350 घन किमी पानी की होगी बचत


भोजन की जरूरत

दुनिया की वर्तमान आबादी सात अरब है। इसमें 2050 तक दो अरब आबादी और जुड़ने की संभावना है। यानी कि उस वक्त तक 70 प्रतिशत अतिरिक्त खाद्य की आवश्यकता होगी। विकासशील देशों में यह खाद्य जरूरत 100 प्रतिशत तक बढ़ने की उम्मीद है। इस तेजी से बढ़ती आबादी के लिए जल की उपलब्धता बड़ी चुनौती है


बढ़ते शहरीकरण और आय के कारण लोगों की भोजन शैली में भी परिवर्तन आता जा रहा है। विशेष रूप से मांस की खपत 2001 के 37 किलो प्रति व्यक्ति प्रति साल से बढ़कर 2050 तक 52 किलो हो जाएगी। इसी अवधि में विकासशील देशों में यह खपत 27 किलो से बढ़कर 44 किलो हो जाएगी


एक खास तथ्य यह भी है कि मवेशियों के लिए भोजन की अतिरिक्त व्यवस्था करने की जरूरत होगी। मसलन 2050 में 48 करोड़ टन मक्का के वार्षिक अतिरिक्त उत्पादन का 80 प्रतिशत हिस्सा मवेशियों के चारे के रूप में इस्तेमाल करना होगा। इसी तरह सोयाबीन के उत्पादन में 140 प्रतिशत की बढ़ोतरी की दरकार होगी


पानी का संकट

भोजन की बढ़ती जरूरतों के बीच वर्तमान में दुनिया कालगभग हर महाद्वीप पानी के संकट से जूझ रहा है और 40 प्रतिशत से भी ज्यादा लोग इस संकट से प्रभावित हैं


जल की कमी से किसान फसल की पैदावार बढ़ाने में कामयाब नहीं हो सकता। दक्षिण एशिया, पूर्व एशिया और पश्चिम एशिया में संसाधन सीमित होते जा रहे हैं और जनसंख्या बढ़ती जा रही है

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Treeपेड़ हैं मित्र

मित्र वह होता है जो हर काम में आपका साथ दे। इसी तरह वृक्ष भी हमारे जीवन के लिए अति उपयोगी हैं। इनकी जड़ों से लेकर पत्तियों तक सभी हमारे रोजाना काम में आते हैं। इनका संरक्षण करके एक तरह से हम अपने जीवन की जरूरतों के स्नोत को बचाते हैं। जंगलों का घटता रकबा और कटते पेड़ मानव अस्तित्व के लिए खतरे की घंटी है


दुनिया में

वन क्षेत्र

31 फीसद जमीन जंगलों से आच्छादित है। यानी वनों का कुल रकबा 403.30 करोड़ हेक्टेयर है। इस तरह प्रत्येक आदमी के हिस्से में 0.6 हेक्टेयर जंगल है


93 फीसदी जंगल प्राकृतिक रूप से हैं जबकि केवल सात फीसद लगाए गए हैं


रूस, ब्राजील, कनाडा, अमेरिका और चीन शीर्ष पांच सर्वाधिक वन क्षेत्र वाले देशों में शुमार हैं। कुल जंगली रकबे का आधा इन्हीं पांच देशों में है


दस देशों में वन क्षेत्र बिल्कुल नहीं है। 54 देश ऐसे हैं जहां के कुल रकबे के दस फीसद से भी कम हैं


जंगलों की कटाई

2000 से 2010 के बीच 1.30 करोड़ हेक्टेयर में फैले जंगल काटे जा चुके हैं


वन और लोग

जंगल 300 करोड़ लोगों का घर हैं


1.6 अरब से अधिक लोग अपनी आजीविका के लिए किसी न किसी रूप में वनों पर आश्रित हैं जबकि 6 करोड़ लोग पूरी तरह से इन पर निर्भर हैं


घने जंगल या उसके आस पास रहने वाले 35 करोड़ लोग अपनी आय एवं निर्वहन के लिए इन पर आश्रित


अर्थव्यवस्था

करीब 1.4 करोड़ लोगों को वन्य क्षेत्र में रोजगार मिला हुआ है।


प्राथमिक लकड़ी उत्पादों का वैश्विक कारोबार सालाना 224 अरब डॉलर है


वैश्विक स्तर पर सालाना राउंडवुड यानी प्राकृतिक रूप वाली लकड़ी का उत्पादन 340.5 करोड़ घन मीटर है


खाद्य एवं स्वास्थ्य

वनों से हमें कई ऐसे प्रोटीन, फैट, विटामिन और मिनरल्स मिलते हैं जो आमतौर पर कई मोटे अनाजों में नहीं होते। इसलिए भुखमरी और अकाल के समय इनकी उपयोगिता सहायक होती है


विकासशील देशों में रहने वाली 75-90 फीसद आबादी के लिए औषधि का एक मात्र स्नोत प्राकृतिक उत्पाद हैं


पर्यावरण

ये जैव विविधता, जल एवं मृदा संरक्षण, जलापूर्ति एवं जलवायु नियमन सुनिश्चित करते हैं


ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार ग्र्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में 20 फीसद हिस्सेदारी वनों की कटाई के चलते है


दो तिहाई प्रजातियों का आवास हैं वन


जैव ऊर्जा

लकड़ी से पैदा ऊर्जा की कुल खपत में हिस्सेदारी 7-9%, कुछ देशों में 80%


Tree देश में

वन आच्छादित रकबा 7.83 करोड़ हेक्टेयर है जो कुल भौगोलिक क्षेत्र का 23.81 फीसद है। इसमें पेड़ों से ढका हुआ 2.76 प्रतिशत रकबा भी शामिल है


2009 के मुकाबले 2011 में वनों के रकबे में 367 वर्ग किमी की कमी हुई है। इनमें से पर्वतीय और जनजातीय क्षेत्रों में क्रमश: 548 और 679 वर्ग किमी रकबा कम हुआ है


कुल वन क्षेत्र का एक चौथाई हिस्सा पूर्वोत्तर प्रदेशों में हैं। यहां भी इसी समयावधि के बीच 549 वर्ग किमी का रकबा कम हुआ है।


यहां के जंगलों में कुल 666.3 करोड़ टन कार्बन का भंडार जमा है


उत्पादन एवं खपत

वन हर साल 31.75 लाख घन मीटर लकड़ी का उत्पादन करते हैं


सालाना ईंधन के रूप में जंगली लकड़ी का इस्तेमाल 12.3 लाख टन है


घरों के निर्माण, फर्नीचर, औद्योगिक निर्माण, कृषि उपकरणों इत्यादि में सालाना 480 लाख घन मीटर लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है


चारे के लिए वनों पर आंशिक या पूर्णत: आश्रित मवेशियों की संख्या 38.49 प्रतिशत है


जलाने के लिए हर साल 21.64 करोड़ टन लकड़ी की खपत होती है। इसमें से 5.87 करोड़ टन लकड़ी जंगलों से आती है


ईंधन के रूप में लकड़ी का इस्तेमाल करने वाली कुल आबादी का 23 प्रतिशत लोग जंगली लकड़ी का इस्तेमाल करते हैं


25 मार्च को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “जल जंगल और जीवन” पढ़ने के लिए क्लिक करें.


25 मार्च को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “जल संकट: देश की कहानी” पढ़ने के लिए क्लिक करें.


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