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हम सभी धरती के अपराधी हैं

मुद्दा
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-किटायुन (केटी) रुस्तम (सह संस्थापक, सेंटर फॉर एनवायरन्मेंटल रिसर्च एंड एजुकेशन )
-किटायुन (केटी) रुस्तम (सह संस्थापक, सेंटर फॉर एनवायरन्मेंटल रिसर्च एंड एजुकेशन )

आज पृथ्वी दिवस के मौके पर कितने ऐसे लोग हैं जो खुशियां मना रहे हैं? क्या कोई मोमबत्ती जला रहा है? वास्तव में ऐसा कुछ नहीं होने जा रहा क्योंकि कितने ऐसे लोग हैं जो वास्तव में इसकी चिंता करते हैं? वैसे भी पृथ्वी की चिंता कोई मायने नहीं रखती क्योंकि कोई भी राजनीतिक दल इसका प्रतिनिधित्व नहीं करता? यहां तक कि सदियों से पृथ्वी पर किए जा रहे अत्याचार का बदला जब वह जलवायु परिवर्तन के जरिए मानवता से ले रही है, तब भी क्या हम सचेत हुए हैं? जबकि यह कहने की कोई जरूरत नहीं कि नाजुक स्थिति में पहुंच चुकी पृथ्वी हमारे अस्तित्व का आधार है।


इस तरह के बहुत सवाल किए जा सकते हैं लेकिन अहम सवाल यह है कि पृथ्वी को बचाने का समय हाथ से निकलता जा रहा है। इस बात की कम ही आशंका है कि मानव जाति को यह एहसास नहीं हो कि पृथ्वी केवल उपयोग की वस्तु नहीं है बल्कि हमारे साथ-साथ लाखों वनस्पतियों और जंतुओं का रैन-बसेरा भी है। इसके बावजूद जीवन के दूसरों रूपों को नष्ट करना हमारी दिनचर्या का हिस्सा बन चुका है। आंकड़ों पर गौर किया जाए तो हर बीस मिनट में एक प्रजाति खत्म हो रही है। फिर भी यह ऐसा बड़ा मुद्दा नहीं दिखता जिस पर संसद या मीडिया में बहस हो रही हो।


हम भ्रम के ऐसे संसार में रह रहे हैं कि पृथ्वी के विनाश में खुद को जिम्मेदार नहीं मानते। जबकि सवाल यह है कि क्या आप घर में नहीं रहते? इसके लिए लकड़ी, स्टील और सीमेंट कहां से आया? यही सवाल भोजन, बिजली, कंप्यूटर के उपयोग के संबंध में भी उठता है? निश्चितरूप से हमारे उपयोग में आने वाली हर चीज के लिए पृथ्वी का दोहन किया जा रहा है।


हम सभी पृथ्वी के अपराधी हैं। इस सच को स्वीकार करना सही दिशा में पहला कदम होगा। हम अभी भी सुधार कर सकते हैं। ऐसे में पृथ्वी दिवस के मौके पर हमको अपने जीने के ढंग पर पुनर्विचार करने की जरूरत है। हमें अपने कान को जमीन से सटाकर इसकी स्पंदन और भाषा को महसूस करना चाहिए। हमको संसाधनों के प्रति शिक्षित होने की जरूरत है ताकि निर्वहनीय तरीके से उनका उपयोग किया जा सके। हमें अपनी जरूरतों में कटौती करके और कूड़ा व प्रदूषण को खत्म करने की जरूरत है। हमें स्वस्थ जीवन जीने के लिए प्रकृति के करीब जाकर उससे सीखना चाहिए। हमें पृथ्वी को बचाने के लिए घर या ऑफिस में निजी और सामुदायिक स्तर पर जबानी जमाखर्च को बंद करके काम शुरू कर देना चाहिए।


लेखिका किटायुन (केटी) रुस्तम सह संस्थापक, सेंटर फॉर एनवायरन्मेंटल रिसर्च एंड एजुकेशन

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पृथ्वी दिवस की कहानी

इसके जनक की जुबानी

हर साल 22 अप्रैल को धरती को बचाने के प्रति लोगों में जागरुकता  पैदा करने के लिए यह दिवस आयोजित किया जाता है। यह दिन एक ऐसी शख्सियत की दृढ़ इच्छाशक्ति के लिए भी जाना जाता है जिन्होंने ठान लिया कि हमें अपने ग्र्रह (धरती) के साथ किए जा रहे व्यवहार में बदलाव लाना है। यह हस्ती थे अमेरिका के पूर्व सीनेटर गेलार्ड  नेल्सन। आइए, उन्हीं के शब्दों में इस दिवस की शुरुआत के बारे में जानते हैं।


‘‘वास्तव में पृथ्वी दिवस का विचार मेरे दिमाग में 1962  में आया और सात साल तक मुझे परेशान करता रहा। मुझे यह बात परेशान करती थी कि पर्यावरण संरक्षण हमारे राजनीतिक एजेंडे में शामिल नहींहै। नवंबर, 1962  में मैंने इस विचार से राष्ट्रपति केनेडी  को अवगत कराने और मुद्दे को उठाने के लिए उनको राष्ट्रीय संरक्षण यात्रा करने के लिए मनाने की सोची। राष्ट्रपति केनेडी को यह पहल पसंद आई। सितंबर, 1963  में राष्ट्रपति ने ग्यारह प्रांतों की अपनी पांच दिवसीय संरक्षण यात्रा शुरू  की। हालांकि कई कारणों से इसके बाद भी यह मुद्दा राष्ट्रीय एजेंडा नहीं बन सका। पूरे देश में पर्यावरण में होने वाले नुकसान को स्पष्ट देखा जा सकता था। लोग पर्यावरण संबंधी मुद्दों पर चिंतित थे लेकिन राजनीतिज्ञों के कानों पर जूं नहीं रेंग रही थी। 1969  की गर्मियों के दौरान वियतनाम युद्ध के खिलाफ प्रदर्शन कालेजों के कैंपस तक पहुंच चुका था। यहीं मेरे जेहन में यह ख्याल कौंधा, क्यों न पर्यावरण को हो रहे नुकसान के विरोध के लिए व्यापक जमीनी आधार तैयार किया जाए? सितंबर,1969 में  सिएटल  में एक जनसभा में मैंने घोषित किया कि 1970  की वसंत ऋतु में पर्यावरण मुद्दे पर राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक प्रदर्शन किया जाएगा। भागीदार बनने के लिए सबका आह्वान किया। खबर फैलते देर नहीं लगी। जन-जागरण शुरू हो चुका था। मै अपने मिशन की कामयाबी की ओर बढ़ रहा था। अंतत: 22  अप्रैल, 1970  को दो करोड़ के विशाल जन समुदाय के बीच प्रकृति को बचाने के लिए पहला पृथ्वी दिवस मनाया गया। ’’


22 अप्रैल को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “आओ ! बनें पृथ्वी के प्रहरी” पढ़ने के लिए क्लिक करें.

22 अप्रैल को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “सीमित उपभोग की बड़ी जरूरत” पढ़ने के लिए क्लिक करें.

22 अप्रैल को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख “प्रकृति मानव विलगाव से पैदा हुए हालात” पढ़ने के लिए क्लिक करें.


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