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अमर्यादित नेताओं का किया जाए तिरस्कार

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राजनीति में ऊलजुलूल लोगों के आ जाने से सियासत की भाषा में हल्कापन आ गया है। ये सभी राजनीतिक दलों और समाज सेवा करने वालों के लिए चिंता का विषय होना चाहिए। जिस तरह के अगंभीर और बगैर पढ़े-लिखे लोग राजनीति में आ रहे हैं, उससे सियासत की भाषा में शालीनता की बेहद कमी आ गई है। ऐसे अमर्यादित नेताओं को देशवासियों को तिरस्कृत कर देना चाहिए।


सार्वजनिक जीवन में भाषा पहली चीज है जो प्रभाव डालती है। नेतृत्व की जैसी भाषा होती है, उससे नीचे के लोग सीख लेते हैं। यह सिर्फ एक दल या संगठन की बात नहीं, बल्कि राजनीति पूरे सामाजिक ढांचे पर प्रभाव डालती है। आम लोग उनकी तरफ देखते हैं और जैसा उनका आचरण होता है, उससे प्रभावित भी होते हैं। भाषा सभ्य और संयमित हो ये राजनीति व समाजसेवा की पहली और अनिवार्य शर्त है। इसकी कमी सबके लिए गंभीर चिंता का विषय है।


देशवासियों को अपने आस-पास रहने वाले ऐसे नेताओं को तिरस्कृत करना चाहिए, जो अमर्यादित व असंयमित बयानबाजी करते हों। दुर्भाग्य से बड़े राजनीतिक दलों में भी कुछ नेता ऐसे हैं, जो पद या कद की गरिमा और संवेदनशीलता ही नहीं समझते। राजनीति में आलोचना बेहद जरूरी है। लोकतंत्र की यह खूबसूरती भी है। मगर गंभीर विमर्श और जनता व समाज की भलाई उसका उद्देश्य होना चाहिए। मगर जब वे भी ओछी और भद्दी बयानबाजी पर उतर आते हैं तो इसका दुष्प्रभाव पूरे समाज पर पड़ता है। तमाम हल्के लोग सियासत के मैदान में उतर आए हैं।


बाबा रामदेव का ही उदाहरण लीजिए। वह राजनीति में हैं। वह कहते हैं कि नरेंद्र मोदी को लालकृष्ण आडवाणी और सुषमा स्वराज को आशीर्वाद देना चाहिए। माताओं का काम है कि संतानों को आगे बढ़ाना। यह कैसी सोच है कि सुषमा स्वराज को मोदी की माता बता दिया। साथ ही इस सोच पर भी धिक्कार है कि स्त्री को आगे बढ़ने के बजाय पुरुषों को ही राह देनी चाहिए।

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सभी राजनेताओं पर अहम जिम्मेदारी


लोकतंत्र के चार स्तंभ हैं। विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और मीडिया। सभी का महत्व है। इससे सबकी यह जिम्मेदारी और जवाबदेही भी है कि उनका आचरण इसके अनुकूल हो। लोकतंत्र में जनता का प्रत्यक्ष संबंध राजनेताओं से सर्वाधिक होता है लिहाजा उनपर इसकी सबसे ज्यादा जिम्मेदारी बनती है। उन्हें इसका निर्वहन करना ही होगा।


राजनीति समाज का वह अंग है जो लोकप्रिय भी है और अलोकप्रिय भी। जनता की इच्छा और भावना के अनुरूप ढला तो लोकप्रिय, चूक हुई तो मिनटों में घृणा के पात्र भी हो सकते हैैं। यही कारण है कि राजनीति और राजनेता समाज का सबसे संवेदनशील हिस्सा है। पिछले कुछ वर्षों में राजनीतिक लोगों के बीच बयानबाजी पर विवाद कुछ ज्यादा होता रहा है। कुछ जानबूझकर तो कुछ अनजाने ऐसा बयान देते रहे है जो सभ्य समाज और साफ सुथरी राजनीति में अस्वीकार्य है। कुछ लोगों को यह भ्रम भी हो सकता है कि सनसनी बनाकर वह जनता के बीच पैठ बनाने में सक्षम है। ऐसे लोग किसी भी दल में हो सकते है। मैं किसी का नाम नही लेना चाहता हूं लेकिन यह जरूर कहूंगा कि जनता देख रही है। आप को उनकी अपेक्षाओं पर खरा उतरना ही होगा। सनसनीखेज बयान कुछ कारणों से आपको खबरों मे बनाए रख सकता है लेकिन खड़े कठघरे में होंगे। आचरण और भाषा पर संयम की उम्मीद तो हर किसी से की जाती है लेकिन बड़ी जिम्मेदारी राजनीतिकों की है।


14अप्रैल  को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख ‘लोकतांत्रिक सामंतवाद की यह परिणति है’ पढ़ने के लिए क्लिक करें.

14अप्रैल  को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख ‘नेता बदले हैं तभी बदली है जुबान’ पढ़ने के लिए क्लिक करें.


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