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हमारी जीवनधारा से जुड़ी लगभग सभी बड़ी नदियां किसी न किसी समस्या से ग्रसित हैं। वह या तो भयानक प्रदूषण का शिकार हैं या उनमें गैर बरसाती मौसम में पानी नहीं रहता। नतीजतन साल के अधिकांश दिन वह सूखी रहती हैं।
यद्यपि इन समस्याओं के निदान के लिए सरकारी प्रयास किए गए। तमाम समितियां, प्राधिकरण बनाये गए। गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित किया। उसको प्रदूषण मुक्त करने के लिए प्राधिकरण गठित किया गया। जिन राज्यों से होकर यह नदी गुजरती है उनके मुख्यमंत्रियों को इनका सदस्य बनाया गया। लेकिन केंद्र और राज्यों के बीच तारतम्यता के अभाव में नतीजा सिफर रहा। गैरसरकारी संगठनों, सामाजिक, धार्मिक आंदोलनों ने भी नदियों को स्वच्छ करने के प्रयास किए लेकिन हर स्तर पर करोड़ो-अरबों रुपये फूंकने के बाद भी नतीजा नकारात्मक ही रहा।
समाधान : जीवनदायिनी नदियों को जीवन देने के लिए अभी तक जितने भी प्रयास हुए हैं उनके निष्फल होने की प्रमुख वजह यह थी कि इनके प्रमुख लाभार्थी आम आदमी को इस अभियान से नहीं जोड़ा गया। जबकि नदियों के संरक्षण के लिए किए जाने वाले सभी निर्णयों में उनके प्रयासों और सहभागिता को शामिल किया जाना अनिवार्य है। इस संदर्भ में हमको सक्रिय नागरिक बनने की भी जरूरत है क्योंकि हम सभी को अपने आप से पूछना चाहिए कि क्या हम
बगैर नदियों के रह सकते हैं? क्या हम प्रदूषित नदियों के साथ जी सकते हैं? इसलिए हम सभी को जल धर्म की शुरुआत करनी चाहिए। इस धर्म में आस्था प्रकट करते हुए अज्ञानता के अंधकार को मिटाते हुए हमें नदियों को बचाने के लिए लोगों में यथासंभव जागरुकता फैलाने की कोशिश करनी चाहिए।
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कालिंदी के लिए बने काल
दिल्ली पर पिछले सालों में बढ़ रहे विकास और भवन निर्माण के दबाव ने यमुना को सिकोड़ दिया है। यमुना की सूखती धरा पर कई ऐसी परियोजनाएं व रिहायशी कालोनियों ने कब्जा कर लिया, जिससे नदी सिकुड़ती गई। इनमें से कुछ हैं…: ’सीआरपीएफ प्रशिक्षण केंद्र, वजीराबाद ’सोनिया विहार जल प्रशोधन संयंत्र (वाटर ट्रीटमेंट प्लांट) ’राजीव नगर ’श्रीराम कालोनी ङ्क्तयमुना से सटे निचले इलाकों में लोगों के बसने का दौर अंग्र्रेजी हुकूमत के समय शुरू हुआ। सबसे पहले यमुना के पूर्वी हिस्से में लोग बसने शुरू हुए। ये ऐसा इलाका था जहां पहले बाढ़ आती थी। उससे पहले दिल्ली के आठों ऐतिहासिक शहर यमुना के पश्चिमी छोर के आगे नहीं बढ़े थे
ङ्क्तआजादी के बाद यमुना के इन इलाकों में पहली बसावट आपातकाल (1975-77) के दौरान तब देखी गई जब दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) ने अवैध रूप से रह रहे एक लाख परिवारों को जबरन नदी किनारे बसाया ङ्क्त1982 में दिल्ली को एशियाई खेलों की मेजबानी मिली तो इसके पूर्वी छोर पर त्रिलोकपुरी, खिचड़ीपुर और कल्याणपुरी अस्तित्व में आए। पश्चिमी किनारे पर इंद्रप्रस्थ इंडोर स्टेडियम बना। 1990 तक पूर्वी दिल्ली का लक्ष्मी नगर, पटपड़गंज, मयूर विहार और नोएडा इसके किनारे पर बसे। ङ्क्तसत्तर के दशक तक यमुना की लहरें जबर्दस्त हिलोरें मारती थीं। 1978 में बाढ़ ने वजीराबाद को चपेट में ले लिया। ङ्क्तकभी यह लाल किले के पास से गुजरती थी लेकिन बाद में नदी ने रास्ता बदल लिया। जब अंग्र्रेज आए तो उन्होंने इसकी सहायक ‘साहिबी नदी’ से छेड़छाड़ की। आज इसे नजफगढ़ नाला के नाम से जाना जाता है।
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