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बरकरार रहे भरोसा

मुद्दा
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आपदा से निपटने में सरकार के लचर प्रबंधन ने देश भर के तीर्थयात्रियों के भरोसे को बुरी तरह दरकाया है। जरूरत इस भरोसे को लौटाने की है, जो अभी भी सरकार की मंशा में नहीं दिखता है। सरकार की नजर उस नुकसान तक नहीं पहुंच पा रही है, जो आस्था की चढ़ाई चढ़कर उत्तराखंड के चारों धामों में नतमस्तक होने वाले लाखों-करोड़ों श्रद्धालुओं के भरोसे के दरकने की है। चंद करोड़ की चंद इमारतें तो शायद केंद्र से मिलने वाली मदद और देश भर से आने वाली इमदाद से जल्द बन जाएं, पर खोए हुए भरोसे को लौटाने में अभी एक लंबा वक्त लगेगा। उसके लिए जरूरत है सरकार की दूरदर्शिता व दृढ़ इच्छा शक्ति की, अथक प्रयासों की, ढांचे के पुनर्निंर्माण के तेज रफ्तार की। पारिस्थितिकी के साथ भौतिक विकास के संतुलन की। इसके लिए जल्द कदम उठाने होंगे। सवाल एक लाख से ज्यादा लोगों की रोजी-रोटी का है। करोड़ों लोगों की आस्था का है। इस देवभूमि की सैकड़ों वर्ष से अर्जित साख का है। भावी पीढ़ी के सुरक्षित भविष्य का है।


पलायन की पीड़ा

पहाड़ों से पलायन करने की प्रवृत्ति पहले से ही तेज है। इस आपदा के बाद स्थानीय लोगों का भरोसा और दरका है। लिहाजा ऐसे लोगों को माटी से जुड़े रहने के लिए कई कदम उठाने होंगे तेज पुनर्वास: फौरी तौर पर शेल्टर बनाने होंगे और उसके बाद पक्के घर बनाकर देने होंगे। टाटा समूह व कुछ अन्य संगठन पीड़ितों के लिए भवन निर्माण करने को आगे आए हैैं। गांवों को बसाने व भवन निर्माण में इस बात का ध्यान रखना होगा कि उनके निर्माण में उच्च कोटि की आपदा व भूकंपरोधी तकनीक का इस्तेमाल हो और वे खतरे की जद से बाहर बसाएं-बनाए जाएं।


आधारभूत संरचना: टूटी सड़कों, ध्वस्त व क्षतिग्रस्त पुलों, स्कूलों, अस्पतालों के पुनर्निर्माण में तेजी लाई जाए। इन क्षेत्रों के स्कूलों व अस्पतालों में पर्याप्त स्टाफ व आवश्यक उपकरण मुहैया करवाए जाएं। क्षेत्र में संचार सुविधाओं का विस्तार किया जाए। कृषि भूमि को जोत योग्य बनाने के लिए आधुनिक तकनीक अपनाई जाएं और इनके उत्पादों के विपणन के लिए आधाारभूत ढांचा तैयार किया जाए। इस प्रक्रिया की सतत निगरानी की भी जरूरत है।


आसान ऋण प्रक्रिया: प्रभावितों की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए उन्हें स्थानीय पारिस्थितिकी के अनुरूप लघु उद्यम स्थापित करने के लिए प्रेरित किया जाए और इन्हें इसके लिए बैैंकों से आसान व सस्ते ऋण उपलब्ध कराए जाने चाहिए। राजकीय सेवाओं में प्राथमिकता : प्रभावित क्षेत्रों के लोगों को राज्य की सेवाओं में प्राथमिकता दी जाए और कुछ प्रतिशत स्थान आरक्षित किए जाएं, लेकिन शर्त यह हो कि उनकी सेवाएं इन्हीं जिलों के लिए होंगी।

……………..


चल पड़ी जिंदगी

दो साल पहले जापान में सुनामी और भूकंप के चलते देश का उत्तर-पूर्वी तट पूरी तरह से तबाह हो गया था। फुकुशिमा-डाइची परमाणु संयंत्र आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हो गया था। उससे विकिरण भी शुरू हुआ था। उस प्राकृतिक आपदा में करीब 20 हजार लोग मारे गए। एक लाख लोग विकिरण से बचने के लिए पलायन कर गए। ऐसा लगता था कि भयानक तबाही से उसकी कमर टूट गई है लेकिन जापानियों की अदम्य जिजीविषा के चलते महज दो साल के भीतर ही जिंदगी फिर से चल पड़ी है :


आकलन

23 मिलियन टने सड़कों, मकानों, जहाजों, नौकाओं और गाड़ियों का मलबा हटाया गया

50 अरब डॉलरे पुर्नसंरचना के लिए पास सरकारी बजट। यह हिरोशिमा और नागासाकी पर हुए परमाणु हमले के बाद सबसे बड़ा बजट है

225 अरब डॉलरे राहत और पुनर्निर्माण के लिए बजट

73 प्रतिशते प्रभावित क्षेत्रों में कृषि कार्य शुरू


बढ़ती रफ्तार

† जापानी सकल घरेलू उत्पाद के आंकड़े बताते हैं कि अर्थव्यवस्था पटरी पर लौटना शुरू हो चुकी है। आपदा के बाद के 12 महीने की प्रगति बताती है कि पांच साल के भीतर ही पुनर्निर्माण का काम पूरा हो जाएगा


† निर्माण सेक्टर पर भरपूर ध्यान दिया जा रहा है इसके चलते 2007 के बाद एक बार फिर जापान में इस क्षेत्र में उछाल गई है। लोगों को रोजगार मिल रहा है और अर्थव्यवस्था की हालत सुधर रही है।


राहत

† आपदा के तत्काल बाद प्रधानमंत्री ने अपने ऑफिस में आपातकाल हेडक्वार्टर का गठन किया ताकि सरकारी प्रयासों के बीच समन्वय स्थापित किया जा सके

† विशेषज्ञों का एक सलाहकारी पैनल गठित किया गया। उसने आपदा के तीन महीने के भीतर ही पुनर्निर्माण की योजना प्रस्तुत कर दी। सरकार ने उस पर अमल किया


† सरकार ने जरूरी चीजों के संरक्षण के लिए अपील तो जारी नहीं की लेकिन आमतौर पर जापानियों ने संजीदगी का परिचय देते हुए उपयोगी चीजों का संरक्षण किया। जन्मदिन पार्टियां रद की गईं

† इतनी बड़ी तबाही के बावजूद दंगे की कोई घटना नहीं घटी। उसके पीछे जापानियों की दो खूबियों को माना जाता है – धैर्य और राहत कार्यों पर भरोसा


प्रोत्साहन

सरकारी प्रयासों के अलावा गैर सरकारी स्तर पर भी भरपूर प्रयास किए गए। युवा उद्यमियों को सोशल बिजनेस शुरू करने के लिए टोकियो में प्रशिक्षण दिया जाता है। आपदा के बाद वहां जाकर बिजनेस के इच्छुक उद्यमियों के लिए  फेलोशिप कार्यक्रम के जरिये प्रोत्साहित किया जा रहा है ताकि उन जगहों पर व्यापारिक गतिविधियां शुरू हों। इस तरह के कई गैरसरकारी संगठन चलाए जा रहे हैं


7 जुलाई  को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख ‘अब सधे कदम की दरकार‘ पढ़ने के लिए क्लिक करें.


7 जुलाई को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख ‘सृजन का संकल्‍प‘ पढ़ने के लिए क्लिक करें.


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