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बड़ी चुनौती की आहट हैं साइबर अफवाहें
डिजिटल और मोबाइल नेटवर्क के जरिए हाल ही में बेंगलूर में अफवाह फैलाकर देश में साइबर युद्ध जैसे हालात पैदा करने की कोशिश की गई। आजाद भारत ने शायद पहली बार इस तरह के मोबाइल और साइबर आतंकवाद का सामना किया है। यह संभवतया पहली बार है कि इस तरह की हरकत का इतने बड़े पैमाने पर असर देखने को मिला। इससे देश को कुछ सीखने की जरूरत है।
इससे पहले अरब स्प्रिंग क्रांति ने कुछ सीख दी थी लेकिन बेंगलूर घटनाक्रम से उपजी भयानक स्थितियां बताती हैं कि यदि इन पर गौर नहीं किया गया तो राष्ट्र की एकता, अखंडता और सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है।
इस घटना के बाद सरकार ने एसएमएस भेजने की संख्या 15 दिनों तक सीमित कर दी है। ऐसा प्रारंभिक तौर पर इसलिए किया गया ताकि देश के साइबर सुरक्षा नेटवर्क को सुरक्षित रखा जाए और मोबाइल नेटवर्क के दुरुपयोग को रोका गया। तकनीकी दृष्टि से कहा जाए तो यह प्रतिबंध गलत नहीं है। यह कानूनी दृष्टि से भी उचित है क्योंकि देश की एकता और अखंडता को सुरक्षित रखने के लिए इस तरह के कदम उठाए जा सकते हैं। वास्तव में 26/11 मुंबई हमलों के बाद सरकार को निगरानी के लिए व्यापक शक्तियां मिलीं हैं।
आज सोशल मीडिया को गंभीरता से लेने की जरूरत है। यह साइबर आतंक फैलाने का कारगर हथियार हो सकता है। सोशल मीडिया वेबसाइटों को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके प्लेटफॉर्म को आपराधिक गतिविधियों के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सके। देशों को साइबर सुरक्षा रणनीतियां ही नहीं बनानी चाहिए बल्कि साइबर सेना भी बनानी चाहिए। साइबर डोमेन में संप्रभुता की रक्षा के लिए साइबर योद्धा भी होने चाहिए। पेंटागन ने युद्ध के लिहाज से साइबर को पृथ्वी, जल, सागर और वायु के बाद पांचवां डोमेन (क्षेत्र) बनाया है।’
क्या है कानून
इंफार्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट, 2000 को भारतीय साइबर कानून का जनक कहा जाता है। मुंबई आतंकी हमले के बाद इसमें संशोधन करके इंफार्मेशन टेक्नोलॉजी (संशोधन) एक्ट, 2008 लागू किया गया। इसके जरिए सरकार को इंटरसेप्शन, ब्लॉकिंग, डिक्रिप्शन और मॉनीटरिंग का अधिकार दिया गया।
इंफार्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट, 2000 के सेक्शन 2(1)(डब्ल्यू) के तहत सभी सोशल मीडिया सर्विस प्रदाता केवल मध्यवर्ती संस्थाएं हैं
इस एक्ट के सेक्शन 79 के मुताबिक ये संस्थाएं कानून के दायरे में ही अपनी सेवाएं प्रदान करेंगी
इंफार्मेशन टेक्नोलॉजी नियम, 2011 के अनुसार ये संस्थाएं अपने नियम एवं सेवा शर्तों में यूजरों को बताएंगी कि कानून का उल्लंघन करने वाली सूचनाओं को प्रकाशित या प्रसारित नहीं करें। इसके बावजूद यदि वे ऐसा करते हैं तो प्रभावित पार्टी या सरकार की आपत्ति के बाद सेवा प्रदाता को 36 घंटे के भीतर इन आपत्तिजनक सूचनाओं को हटाना ही होगा।
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मुझे लगता है कि समाज में चेंज लाने के लिए अब सोशल मीडिया को ज्यादा अहम भूमिका निभानी होगी। पहले मैं अपने बेटे की सलाह पर ट्विटर पर आया। शुरू में कई उलटे-पुलटे सवालों का सामना करना पड़ा। बाद में युवाओं का माइंडसेट और उनकी आक्रामकता समझ में आने लगी। फिर उनसे कई बेहतरीन सुझाव भी मिले, बातें हुईं। युवाओं की सोच और उनके तेवर का सही ढंग से उपयोग किया जाय तो उसका लाभ मिल सकता है। आज हम अपनी युवा शक्ति का सही ढंग से उपयोग नहीं कर पा रहे हैं।
– एसवाई कुरैशी (पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त)
भारत को आतंकवाद के खिलाफ अगली बड़ी लड़ाई इंटरनेट पर लड़नी पड़ सकती है। यदि कोई गलत, अस्वीकार्य और अनैतिक सामग्र्री पाकिस्तान की तरफ से आ रही है तो यह भारतीय नागरिकों की जिम्मेदारी बनती है कि उस सामग्र्री की सच्चाई पता करें। इस स्थिति में यदि कुछ गलत होता है तो निगरानी करने वालों को दोषी माना जाना चाहिए
-अंकित फाड़िया (न्यूयार्क में भारतीय मूल के साइबर सुरक्षा सलाहकार)
सोशल नेटवर्क में एक गुमनाम व्यक्ति द्वारा इसके गोपनीय इस्तेमाल की आशंका काफी अधिक है। पंजीकरण या स्वामित्व की कोई प्रक्रिया नहीं है। इसलिए दोषी को पकड़ना कठिन है। ताजे प्रकरण से यह डर सताने लगा है कि इससे सूचना और अभिव्यक्ति की आजादी खतरे में पड़ जाएगी
-एन भास्कर राव (मीडिया कमेंटेटर)
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जनमत
क्या सोशल मीडिया से संवाद का दायरा बढ़ा है ?
82% हां
18 % नहीं
क्या सोशल मीडिया दोधारी तलवार बन चुका है ?
83% हां
17% नहीं
आप की आवाज
सोशल मीडिया ने निश्चितरूप से लोगों के बीच संवाद का दायरा बढ़ाया है. आज लोग बिना किसी हिचकिचाहट के किसी भी मसले पर अपनी राय देने में सक्षम है– हेमंत.कश्यप 10@याहू.कॉम
सोशल मीडिया के लिए बने नियमों का सही तरीके से क्रियांवयन होना और इसके सकारात्मक इस्तेमाल की जानकारी का अभाव इसे दो धारी तलवार बनाने में मुख्य भूमिका अदा कर रही है– अजय. मनकामेश्वर@जीमेल. कॉम
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