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लोकतांत्रिक सामंतवाद की यह परिणति है

मुद्दा
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हम नए-नए मोबाइल फोन तो पसंद करते हैं परंतु सामाजिक बदलाव या समाज में नयापन लाने से डरते हैं। मसला सिर्फ किसी एक नेता के एक टिप्पणी का नहीं है, बल्कि देश में कुछ ऐसा माहौल सा बन गया है जिसके तहत आज के नेताओं ने अपने आप को आम जनता की कठिनाइयों से बहुत दूर कर लिया है। लगता है वे लोगों की परेशानियों के ऊपर गौर करने की जरूरत ही नहीं समझते और यह मानकर चलते हैं कि  उनकी ऊटपटांग बातों से उनके दोबारा चुने जाने पर कोई संकट नहीं आएगा।


नेताओं द्वारा आम लोगों के खिलाफ बयानबाजी किए जाने के मसलों के दो पहलू समझ में आते हैं। पहला यह कि सामंतवाद और रूढ़िवाद परस्पर हमारे लोकतंत्र के हिस्से रहे हैं। चाहे हमारे दिमाग में लोकतंत्र की बातें कितनी भी ठूसी जाएं, दोनों चीजें एक डरावने सपने की तरह हमारे इर्द-गिर्द मंडराती रहती हैं। हमारी आधुनिकता पश्चिमी देशों से थोड़ा जुदा है। हम नए-नए मोबाइल फोन तो पसंद करते हैं परंतु सामाजिक बदलाव या समाज में नयापन लाने से डरते हैं। उसका विरोध भी करते हैं। राजनीति में इस सोच की गहरी छाप है। हमारे नेताओं ने यह मान लिया है कि वह लोकतंत्र की प्रणाली द्वारा आधुनिक जमींदार बन सकते हैं। सामंतवाद की विशेषता मालिक और दास के बीच के संबंध में पायी जाती थी। यह भगवान और इंसान के बीच के रिश्ते जैसा मामला था। मालिक को इस बात की फिक्र नहीं थी कि वह दास को मनुष्य समझने का कष्ट भी करे। इतना ही काफी था कि दास को मालिक ने अपने टुकड़ों पर पलने की अनुमति दी थी। जब से भारत स्वतंत्र हुआ, गणतंत्र और सामंतवाद का यह खेल चलता ही आया है। हां, यह सच है कि अलग-अलग समय पर इस भावना में उतार-चढ़ाव होता रहता है, परंतु यह कभी भी पूरी तरह से हमारे बीच से गायब नहीं होती है। गौर करने की बात यह है कि कुछ कारणवश 21वीं सदी में यह भावना और बलवती हुई है। एक साधारण आदमी भी देखकर समझ सकता है कि कैसे नेतागण अलग-अलग तरीकों से अपने आप को आम जनता से दूर और बेहतर दर्शाने की कोशिश करते हैं। इस देश के शहर-कस्बों में जरूरी एम्बुलेंस से ज्यादा नेताओं की लालबत्ती गाड़ियों के सायरन सुने जा सकते हैं। जब हम ऐसी स्थिति से गुजर रहे हैं जहां लोकतंत्र का वास्तविक रूप सामंतवादी है तो नेताओं का जनता की आशाओं पर पानी फेरना स्वाभाविक ही दिखता है।


ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती। इस मुद्दे का दूसरा पहलू यह है कि अगर हमारे नेता सामंतवादी स्वभाव के हैं तो इसमें जनता का बहुत योगदान है। शायद हम उन्हीं नेताओं को पसंद करते और चुनते भी हैं जो हमसे अलग दिखें। हमारे अंदर सामंतवाद और रूढ़िवाद से ऐसा लगाव है जिससे हमारी मानसिकता ‘मास्टर-स्लेव’ वाली हो गई है।


हम ऐसे लोगों को अपना नेता मानने को तैयार हैं जो शोषण और उत्पीड़न में खास तरह से माहिर हैं। हम नेताओं के गुणों की गणना उनका अपने बिरादरी से जुड़ा होने से करते हैं, न कि उनकी लोकतांत्रिक सोच से। दुख की बात यह है की हम लोकतांत्रिक विचारों से डरते हैं क्योंकि सच्चे लोकतंत्र के अंतर्गत जाति-बिरादरी के लिए कोई जगह नहीं है।


बयानवीर

‘… हम उसको कहां से पानी देंगे? क्या बांध को पेशाब करके भरें?

=महाराष्ट्र में सूखे से पीड़ित एक किसान बांध से जल छोड़े जाने की मांग को लेकर भूख हड़ताल पर बैठा है। उससे खफा महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री अजीत पवार ने यह टिप्पणी की


‘दिल्ली में विरोध जताने वाली महिलाएं पहले शृंगार करके डिस्को जाती हैं और फिर इंडिया गेट पर नाराजगी जताने पहुंच जाती हैं।’

=दिल्ली दुष्कर्म कांड के बाद हो रहे प्रदर्शनों पर कांग्रेस सांसद और राष्ट्रपति के पुत्र अभिजीत मुखर्जी


‘फास्ट फूड के उपभोग से दुष्कर्म की घटनाएं बढ़ रही हैं। चाऊमीन की वजह से हारमोन असंतुलित हो जाते हैं। इस कारण इस तरह की घटनाएं हो रही हैं। ’

=जितेंद्र छत्तर, खाप पंचायत नेता


‘अभी तुम्हें राजनीति में आए सिर्फ चार दिन ही हुए हैं और आप राजनीतिक विशेषज्ञ बन गई हो। अभी तो टीवी पर ठुमके लगाती थीं, आज चुनावी विश्लेषक बन गई।’

=कांग्रेस संसद सदस्य संजय निरुपम भाजपा नेता स्मृति ईरानी से


वाह क्या गर्लफ्रेंड है। क्या आपने कभी 50 करोड़ की गर्लफ्रेंड देखी है?

=हिमाचल प्रदेश में चुनावी रैली के दौरान नरेंद्र मोदी की सुनंदा पुष्कर (शशि थरूर की महिला मित्र) पर टिप्पणी


केवल उच्च वर्ग की महिलाएं ही जिंदगी में तरक्की कर सकती हैं। तुम ग्रामीण महिलाओं को कभी मौका नहीं मिलेगा क्योंकि तुम उनकी तरह आकर्षक नहीं हो

=बाराबंकी की एक आम सभा में मुलायम सिंह यादव


मुख्यमंत्री ने हम लोगों को विधानसभा में बताया कि सरकार दुष्कर्म पीड़िता को मुआवजे के रूप में धनराशि देगी। तो यह बताइए कि आपकी क्या फीस है? यदि आपके साथ दुष्कर्म होता है तो आपकी क्या फीस होगी?

=माकपा नेता अनीसुर रहमान की पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के खिलाफ टिप्पणी


अरविंद केजरीवाल राखी सावंत की तरह हैं। दोनों ही पर्दाफाश करने की कोशिश करते हैं लेकिन उनमें कोई दम नहीं होता

=कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह


गुड्डी बुढ़िया हो गई लेकिन उम्र बढ़ने के साथ उनमें अक्ल नहीं आई

=जया बच्चन के महाराष्ट्र में हिंदी बोलने के आग्रह पर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना प्रमुख राज ठाकरे की टिप्पणी


समय बीतने के साथ-साथ जीत की खुशी धुंधली होती जाती है। यह ठीक उसी तरह है कि जैसे-जैसे पत्नी बूढ़ी होती जाती है उसका आकर्षण कम होता जाता है।

=टी-20 चैंपियनशिप में पाकिस्तान पर भारत की जीत के बाद केंद्रीय कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल


महिला आरक्षण बिल का लाभ केवल शहरी परकटी औरतों (छोटे बालों वाली महिलाओं) को मिलेगा।

=शरद यादव (जदयू नेता)


दुष्कर्म की घटनाओं को रोकने के लिए लड़कियों की शादी जल्दी कर देनी चाहिए।

=ओमप्रकाश चौटाला  (हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री)


ध्यान से सुनो बहन, यह गंभीर मामला है। यह कोई फिल्मी विषय नहीं है।’

=राज्यसभा में असम की नस्लीय हिंसा के बारे में बहस के दौरान सुशील कुमारे शिंदे की जया बच्चन पर टिप्पणी।


कुछ महिलाएं लिपस्टिक व पाउडर लगा कर मुंबई की गलियों में उतर आई हैं और राजनेताओं व लोकतंत्र के बारे में अपशब्द बोल रही हैं। यही सब आतंकवादी कश्मीर में कर रहे हैं।

=26/11 आतंकी हमले के बाद भाजपा नेता मुख्तार अब्बास नकवी की टिप्पणी।


बेनी के बोल

केंद्रीय इस्पात मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा अपनी बयानबाजी से कई बार विवाद खड़ा कर चुके हैं। हाल ही में समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव पर निशाना साधते हुए उनके संबंध आतंकियों से बताए। इस पर मुलायम सिंह यादव ने पलटवार करते हुए कहा कि मुसलमानों के लिए काम करने, उनके हित के लिए लड़ने के बदले में कोई मुझे कुछ भी कहे फर्क नहीं पड़ता है। बेनी के इस बयान पर सपा बौखला गई। छोटे से बड़े सभी नेताओं के निशाने पर बेनी आ गये हैं। वैसे बेनी जब भी बोलते हैं विवाद ही होता है। उनके द्वारा दिए गए प्रमुख विवादित बयान इस प्रकार हैं।


अफजल को फांसी नहीं उम्रकैद की सजा होनी चाहिए। (बाद में मामला बिगड़ता देख अपने ऐसे किसी बयान से इन्कार किया)

महंगाई पर हमेशा यही चिल्लाते हैं…दाल महंगी हो गई, आटा महंगा हो गया, चावल महंगा हो गया, सब्जी महंगी हो गई… जितना महंगा होगा किसान को उतना फायदा होगा… हम तो खुश हैं इस महंगाई से।


सलमान खुर्शीद का बचाव करते-करते केंद्रीय इस्पात मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा यह कह गए कि यदि यह रकम 71 करोड़ होती तो हम भी गंभीर होते। उनके मुताबिक एक केंद्रीय मंत्री के लिए 71 लाख रुपये की रकम बड़ी छोटी होती है। इसे घोटाला नहीं कहा जाना चाहिए। सलमान खुर्शीद जैसे नेता 71 लाख रुपये का घपला नहीं कर सकते।

19 अगस्त, 2012 को बेनी ने कहा था कि मुलायम सिंह पगला गए है सठिया गए है। इनका कभी जिंदगी में सपना पूरा नहीं होगा दिल्ली में सरकार बनाने का।


9 अगस्त, 2012 को बेनी ने कहा था कि अन्ना हजारे का शनीचर उतर गया है और अब वो बाबा रामदेव पर चढ़ गया है। ये बेकार के लोग हैं, इन्हें बस कुछ काम चाहिए।

पिछले साल यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान बेनी ने कहा था कि गांधी परिवार के लोग सीएम बनने के लिए नहीं, बल्कि पीएम बनने के लिए पैदा होते हैं।

बेनी ने अन्ना हजारे को 1965 के भारत-पाक युद्ध का भगोड़ा सिपाही बताया था।


14अप्रैल  को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख ‘अमर्यादित नेताओं का किया जाए तिरस्कार’ पढ़ने के लिए क्लिक करें.

14अप्रैल  को प्रकाशित मुद्दा से संबद्ध आलेख ‘नेता बदले हैं तभी बदली है जुबान’ पढ़ने के लिए क्लिक करें.


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