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हमें न तो चाइना बनने के ख्वाब पालने चाहिए और न ही हम अमेरिका-यूरोप बन सकते हैं। जिसे हम लोकतंत्र की कमियां मानते हैं वो हमारे अपने सोच की गरीबी है|
यह गौर करने की बात है कि हमारे देश में ज्यादातर लोग जो लोकतंत्र से नाखुश हैं वो मध्यम और ऊपरी वर्ग के हैं। कईबार यह सुनने में आता है कि लोकतंत्र भारत जैसे देश के लिए उपयुक्त नहीं है और यहां होने वाले चुनावों का कोई मतलब नहीं है। इसके साथ-साथ आंकड़े यह भी बताते हैं कि गांवों और शहरों में रहने वाली इस देश की गरीब जनता संपन्न तबके के मुकाबले ज्यादा वोट डालती है। इसका सीधा सा मतलब है कि जहां अमीरों का लोकतंत्र में भरोसा कम होता जा रहा है वहीं शासन की इस प्रणाली में गरीबों का विश्वास बना ही नहीं बल्कि बढ़ता जा रहा है।
एक नजरिए से तो यह सही है। इस देश के लोकतंत्र में एक प्रकार का खोखलापन है क्योंकि हमारी आधुनिकता, जिसका एक भाग लोकतंत्र भी है एक तकनीकी आधुनिकता है। यानी हमारे पास कई तरह के मोबाइल फोन और नए नए एयरपोर्ट हैं लेकिन अभी भी कई गावों में खाप पंचायतों की तूती बोलती है। हालांकि मध्यम वर्ग की निराशा इन बातों से नहीं है (काश होती!)। इसके कारण कुछ और ही हैं।
लोकतंत्र का सही मायने ‘लोक’ शब्द से है। लोक का रिश्ता है ‘आम’ यानी की सार्वजानिक मामलों से। आजादी के कुछ 40-50 साल बाद तक यही सोच देश में कायम थी और राष्ट्रीय कल्पना का आधारशिला भी थी। इसे कभी कभी ‘नेहरुवियन डिस्कोर्स’ कहते है। आज निजीकरण का जमाना है। इस दौर में लोकतंत्र का मतलब भी कुछ बदल सा गया है। अब इस सोच ने जोर पकड़ ली है कि लोकतंत्र के तौर-तरीके एक पुराने दौर का प्रतीक हैं और अगर कोई काम सही ढंग और तत्परता से करवाना तो इसे प्राइवेट सेक्टर (निजी क्षेत्र) ही कर सकता है। जब हमें लोकतंत्र से कोई लाभ नहीं दिखता तो इसे नाकाम मान लिया जाता है। इसमें लोकतंत्र की कमी नहीं है। यह इस बात का प्रतीक है कि हम इस सोच से पूरी तरह प्रभावित हैं जीवन की सभी खुशियां निजीकरण के आंगन में हैं। परन्तु चाहे हमारे लोकतंत्र की दशा कितनी भी बुरी हो, गरीबों को अच्छी तरह मालूम है कि उनके पास और कोई विकल्प नहीं है। वो तो ना ही प्राइवेट अस्पताल जा सकते हैं और ना ही बिजली-पानी की समस्याओं को प्राइवेट कॉलोनी की दीवारों के बाहर भगा सकते हैं। हमें याद रखना चाहिए कि एक सफल लोकतंत्र उसे कहते हैं जिसके अंतर्गत देश के सबसे कमजोर वर्गों को आदर से जीने का हक मिलता है।
लोकतंत्र को नाकाम मानने में दो और कारणों का जिक्र करना जरूरी है। इसमें से पहले को ‘चाइना सिंड्रोम’ नाम दे सकते हैं। यह एक ऐसी सोच है जिसकी हर सांस हिंदुस्तान को चाइना बनाने की ख्वाहिश में ली जाती है। अंग्रेजी राज की तानाशाही हमने भले ही समाप्त कर दी लेकिन तानाशाही और सत्तावाद से हमें अभी भी लगाव है। खरी बात यह है कि जब गरीब देशों में तानाशाही फैलती है तो इससे गरीबों का पेट नहीं भरता है, सिर्फ लोगों की बोली बंद होती है। अंत में वैश्वीकरण का मामला आता है। हम अक्सर सोचते है कि जब हमारा देश भारत एक ‘ग्लोबल पॉवर’ बन गया है तो हमारे लोकतंत्र की तुलना पश्चिमी देशों से करनी चाहिए। यह एक खोखला सपना है। हमें ना तो चाइना बनने के ख्वाब पालने चाहिए और ना ही हम अमेरिका-यूरोप बन सकते हैं। जिसे हम लोकतंत्र की कमियां मानते हैं वो हमारे अपने सोच की गरीबी है। हां, एक बात जो कटु सत्य है कि दुनिया के कई अभागे देशों का इतिहास इस बात की गवाही देता है कि लोकतंत्र को मिटाना काफी आसान है और इसका पुनर्निमाण बहुत कठिन।
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कितना सच कितना छलावा
लोकतंत्र’ देखने, सुनने, समझने और महसूस करने में जितना आदर्श और प्रेरक लगता है, उतना है नहीं। कभी-कभी तो लगता है कि लोकतंत्र महज दिखावा जैसा शब्द बनकर रह गया है। कहने को तो दुनिया के अधिकांश देशों में लोकतंत्र कायम है पर क्या वहां के लोग सच्चे लोकतांत्रिक मायनों को जी पा रहे हैं? इस सच की तह में जाने के लिए इकोनॉमिस्ट इंटेलीजेंस यूनिट हर साल लोकतंत्र सूचकांक तैयार करती है। आइए, लोकतंत्र सूचकांक द्वारा देशों में लोकतांत्रिक प्रणाली की स्थितियों पर नजर डालते हैं:
प्रवृत्ति
वैश्विक लोकतंत्रीकरण में तेजी 1974 के दौरान हुई। 1989 में बर्लिन दीवार का ढहना इस क्षेत्र के लिए प्रभावकारी घटना थी। 20वीं सदी के आठवें और नवें दशक में 30 से अधिक देशों ने एकाधिकारवाद से लोकतांत्रिक राजनीतिक प्रणाली को अपनाया। हाल के वर्षों में दुनिया भर में लोकतंत्रीकरण की प्रक्रियाउलट चुकी है। दशकों लंबी समयावधि के बीच लोकतंत्रीकरण में आई इस रुकावट को इसीलिए ‘लोकतांत्रिक मंदी’ का नाम दिया गया। कुछ हद तक 2008 के बाद छाए आर्थिक संकट ने इस समस्या को और गंभीर किया है।
इससे प्रशासन, राजनीतिक भागीदारी और मीडिया आजादी सहित लोकतंत्र से जुड़े और उसे प्रभावित करने वाले कई क्षेत्रों का क्षरण हुआ है।
लोकतंत्र सूचकांक
इकोनॉमिस्ट इंटेलीजेंस यूनिट (ईआइयू) हर साल वैश्विक लोकतंत्र सूचकांक जारी करती है। 2011 के सूचकांक में दुनिया के 167 देश शामिल हैं। पांच अलग-अलग श्रेणियों में यह सूचकांक 60 सूचकों पर आधारित होता है।
तरीका: ईआइयू का लोकतंत्र सूचकांक विभिन्न देशों द्वा्ररा पांच श्रेणियों के 60 कारकों में अर्जित स्कोर के आधार पर तैयार होता है। चुनावी प्रक्रिया और विविधता, नागरिक स्वतंत्रता, सरकार का कामकाज, राजनीतिक भागीदारी और राजनीतिक संस्कृति सहित इन पांचों श्रेणियों में प्रत्येक देश को 0 से 10 स्कोर दिए जाते हैं। प्रत्येक श्रेणी को चार अलग-अलग पैमाने पर आंका जाता है। इनमें क्या राष्ट्रीय चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष होते हैं, वोटरों की सुरक्षा, विदेशी शक्तियों का सरकार पर प्रभाव और नीतियों को लागू करने में सिविल सेवा की क्षमता शामिल हैं।
शासन प्रणाली
इस प्रकार से प्रत्येक देश को मिले उसके कुल अंकों के आधार पर वहां की शासन प्रणाली की तस्वीर पेश की जाती है।
पूर्ण लोकतंत्र: 8-10 स्कोर वाले देशों को इस श्रेणी में रखा जाता है। इन देशों में प्राथमिक राजनीतिक स्वतंत्रता और नागरिक आजादी की सम्मानजनक स्थिति होती है। लोकतंत्र को पुष्पित और पल्लवित करने के लिए प्रभावी राजनीतिक संस्कृति होती है। दोषपूर्ण लोकतंत्र: 6-7.9 स्कोर वाले देश इस श्रेणी में शामिल हैं। लोकतंत्र के कई पहलुओं में महत्वपूर्ण कमजोरियां होती हैं।
मिश्रित शासन: 4-5.9 स्कोर वाले देश इस श्रेणी के तहत आते हैं। गैर निष्पक्ष चुनाव राजनीतिक संस्कृति, सरकारी कार्यप्रणाली और राजनीतिक भागीदारी जैसे क्षेत्रों में दोषपूर्ण लोकतंत्र से कहीं ज्यादा गंभीर खामियां होती हैं। भ्रष्टाचार सर्वत्र होता है।
सत्तावादी प्रणाली:4 से कम स्कोर वाले देश इस श्रेणी के तहत आते हैं। यहां राजनीतिक विविधता का अभाव होता है। प्रत्यक्ष तौर पर तानाशाही कायम होती है।
देशों की स्थिति
शासन प्रणाली | कुल देश | कुल देशों का प्रतिशत | दुनिया की आबादी का प्रतिशत |
पूर्ण लोकतंत्र | 25 | 15.0 | 11.3 |
दोषपूर्ण लोकतंत्र | 53 | 31.7 | 37.1 |
मिश्रित | 37 | 22.2 | 14.0 |
सत्तावादी | 52 | 31.1 | 37.6 |
(सूचकांक में 167 देशों को शामिल किया गया है। इसलिए दुनिया की कुल आबादी का आशय इन देशों की कुल आबादी से है।)
शीर्ष दस देशों का स्कोर
देश/रैंक | कुल स्कोर | चुनावी प्रक्रिया और विविधता | सरकारी कार्यप्रणाली | राजनीतिक भागीदारी | राजनीतिक संस्कृति | नागरिक आजादी |
नार्वे/1 | 9.80 | 10.00 | 9.64 | 10.00 | 09.38 | 10.00 |
आइसलैंड/2 | 9.65 | 10.00 | 9.64 | 08.89 | 10.00 | 09.71 |
डेनमार्क/3 | 9.52 | 10.00 | 9.64 | 08.89 | 09.38 | 09.71 |
स्वीडन/4 | 9.50 | 09.58 | 9.64 | 08.89 | 09.38 | 10.00 |
न्यूजीलैंड/5 | 9.26 | 10.00 | 9.29 | 08.89 | 08.13 | 10.00 |
ऑस्ट्रेलिया/6 | 9.22 | 10.00 | 8.93 | 07.78 | 09.38 | 10.00 |
स्विट्जरलैंड/7 | 9.09 | 09.58 | 9.29 | 07.78 | 09.38 | 09.41 |
कनाडा/8 | 9.08 | 09.58 | 9.29 | 07.78 | 08.75 | 10.00 |
फिनलैंड/9 | 9.06 | 10.00 | 9.64 | 07.22 | 08.75 | 09.71 |
नीदरलैंड्स/10 | 8.99 | 09.58 | 8.93 | 08.89 | 08.13 | 09.41 |
भारत/39 | 7.30 | 09.58 | 7.50 | 05.00 | 05.00 | 09.41 |
यहां खड़े हैं हम
साल 2011 के लोकतंत्र सूचकांक में हमारे देश भारत को 39वें पायदान पर जगह मिली है। हम लोग भले ही देश में लोकतंत्र कायम होने की अनुभूति करते हुए उसकी कीर्तिगाथा गाते रहें, लेकिन इस सूचकांक में हमें पूर्ण लोकतंत्र नहीं माना गया है। पूर्ण लोकतंत्र के तहत 25 देश ही शामिल हैं जबकि हम कुल 7.30 स्कोर के साथ दोषपूर्ण लोकतंत्र वाली श्रेणी में शामिल हैं। देश में राजनीतिक भागीदारी, सरकारी कार्यप्रणाली और राजनीतिक संस्कृति की दशा को बेहद खराब बताया गया है। लिहाजा इन क्षेत्रों के लिए इसे बहुत कम स्कोर दिया गया है।
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