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शांति को लेकर कितना गंभीर है पड़ोस

मुद्दा
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-प्रो उमा सिंह पाकिस्तान मामलों की विशेषज्ञ
-प्रो उमा सिंह पाकिस्तान मामलों की विशेषज्ञ

पड़ोस में यह संदेश जाना चाहिए कि वहां के अवाम के प्रति भारत के मन में कोई विद्वेष नहीं है, इससे ही भारत विरोधी पाकिस्तानी सेना के गेमप्लान को विफल किया जा सकता है।


पाकिस्तान द्वारा हमारे जवानों के साथ की गई बर्बर हरकत से द्विपक्षीय शांति प्रक्रिया को आगे बढ़ाने की उसकी गंभीरता पर सवाल खड़ा हो गया है। ऐसे में भारत को भी अपनी पाकिस्तान नीति का नए सिरे से मूल्यांकन करते हुए उसी अनुसार सैन्य और कूटनीतिक कदम उठाने चाहिए।


पिछले दस साल से नियंत्रण रेखा पर जारी संघर्ष विराम को खतरा पहुंचना सबके लिए दुखद है। संघर्ष विराम न केवल आपसी विश्वास बहाली के उपायों का एक अहम हिस्सा है बल्कि इसने कश्मीर से ध्यान हटाकर दोनों देशों के बीच कारोबार और आर्थिक संबंधों को बढ़ावा दिया। ऐसे में इस मसले पर भारत को कैसे प्रतिक्रिया करनी चाहिए? इस समय भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पाकिस्तानी राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी को आपस में पाकिस्तान के दोहरे रवैए पर खुलकर बात करनी चाहिए। अफगानिस्तान के निर्णायक मोड़ पर पहुंचने के साथ ही पश्चिमी देशों की फिर अफगान समझौते को भारत-पाकिस्तान संबंधों से जोड़ने की कोशिश होगी। पिछले कुछ महीनों से कश्मीर मसले पर भारत के साथ नरम रुख अख्तियार करने के चलते पाकिस्तान को घरेलू मोर्चे पर तीव्र विरोध झेलना पड़ा है। जिसके चलते ही पिछले महीने आननफानन में इस्लामाबाद को हुर्रियत नेताओं से बातचीत करनी पड़ी। इस्लामाबाद द्वारा की जाने वाली ऐसी विरोधात्मक गतिविधियों को भारत द्वारा हतोत्साहित किया जाना चाहिए। आज कूटनीतिक विश्लेषकों के सामने यही सबसे बड़ा सवाल है कि पुंछ में हमारे जवानों के साथ हुई इस घटना की प्रतिक्रिया में युद्ध जैसे उन्माद पैदाकर क्या हमें पाकिस्तान के साथ अपने कूटनीतिक संबंधों की बलि चढ़ा देनी चाहिए? दोनों सरकारें और सेनाएं अपने-अपने बयानों की सच्चाई को लेकर अडिग दिखने की कोशिश कर रही हैं।


खात्मे की तरफ बढ़ रहा अफगानिस्तान मसला पाकिस्तान फौज की हौसला अफजाई कर सकता है। यह स्थिति भारत और पाकिस्तान दोनों के लिए मुश्किल खड़ी करने वाली है। अमेरिका लगातार पाकिस्तानी सेना के साथ पीगें बढ़ा रहा है। ऐसे में इस अमानवीय घटना और पाकिस्तानी सेना की आक्रामकता को दक्षिण एशिया और अफगानिस्तान के वृहद सुरक्षा माहौल के तहत देखा जाना चाहिए। पाकिस्तान के पास निभाने के लिए एक अहम भूमिका है इस समय अमेरिका को उनकी सबसे अधिक जरूरत है। अमेरिका प्रायोजित प्रत्यक्ष भूमिका के परिणामस्वरूप जम्मू-कश्मीर मसले पर पाकिस्तान ज्यादा दृढ़ता दिखा सकता है। पाकिस्तानी सेना मानती है कि वह काबुल की अफगान सरकार में तालिबान को स्थापित करने की भूमिका निभा रही है। अफगानिस्तान में शांति बहाली को लेकर पाकिस्तान की अहम भूमिका की बात से इसे एक बार फिर इसे अपनी महत्ता का अहसास हो चला है। तालिबान को सरकार में लाने संबंधी समझौते को लेकर पाकिस्तानी सेना की भूमिका एक बार फिर अहम हो चुकी है।


इन सब घटनाओं से भारत भ्रमित नहीं हुआ है क्योंकि वह जानता है कि इससे आतंकवाद में वृद्धि की कीमत चुकानी होगी। ऐसे में पाकिस्तान के साथ शांति प्रक्रिया को लेकर भारत का रुख बहुत कुछ इस पर निर्भर करता है कि पाकिस्तान इस बर्बर घटना पर खेद व्यक्त करे। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि पाकिस्तान के साथ वार्ता के लिए भारत काफी कुछ दाव पर लगा चुका है।


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नियंत्रण रेखा


अमन और जंग के बीच की बारीक रेखा


दोनों देशों को अलग करने वाली नियंत्रण रेखा को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच कई मतभेद उभरते रहे हैं। अमन और जंग के बीच मौजूद इस बारीक रेखा पर पेश है एक नजर:


विवादों की रेखा


772 किमी लंबी नियंत्रण रेखा (एलओसी) एक ऐसी रेखा है जो वर्तमान में भारत और पाकिस्तान के बीच वस्तुत: सीमा रेखा की तरह जानी जाती है।

नियंत्रण: भारतीय नियंत्रण के तहत आने वाला क्षेत्र जम्मू-कश्मीर है, जबकि पाकिस्तान के नियंत्रण वाले इलाकों में गिलगित, बाल्टिस्तान  और गुलाम कश्मीर शामिल हैं।


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शिमला समझौता


संयुक्त राष्ट्र द्वारा मूलरूप से परिभाषित संघर्ष विराम रेखा को 1972 में दोनों देशों के बीच हुए शिमला समझौते में नियंत्रण रेखा नाम दिया गया।


घुसपैठ की रोकथाम


पाकिस्तान की तरफ से आतंकियों की घुसपैठ पर रोक लगाने के लिए भारत ने 550 किमी इस रेखा पर कंटीले तारों की बाड़ लगा रखी है।


गश्त की दिक्कत


पूरी नियंत्रण रेखा पर कई गहरी घाटियां और नदी की धाराओं के चलते यह बहुत दुर्गम है। लिहाजा चौकसी के लिए गश्त करना अत्यंत कठिन कार्य है। रात और दिन में नियंत्रण रेखा की 40 हजार जवान चौकसी करते हैं। पूरी नियंत्रण रेखा पर हर 500 मीटर पर एक पर्यवेक्षण पोस्ट तैयार किया गया है, हालांकि यह दूरी वहां के भूभाग के आधार पर भी निर्भर करती है।



विरोध दर्ज करने का तरीका


इस तरह की घटनाओं के बाद विरोध दर्ज कराने के लिए दोनों देशों ने पर्याप्त व्यवस्था सुनिश्चित की है। हॉटलाइन, फ्लैग मीटिंग, डॉयरेक्टर जनरल ऑफ मिलिट्री ऑपरेशंस (डीजीएमओ) की मीटिंग और दोनों देशों के सीमा सुरक्षा बलों के डायरेक्टर जनरल मुलाकातों के जरिए इस मुद्दे को उठाते हैं



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