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पिछली बार जब अक्षय कुमार और जॉन अब्राहम एक साथ पर्दे पर आए थे तो लोग हंसते-हंसते लोट-पोट हो उठे थे लेकिन एक ही जादू हर बार चले यह तो मुमकिन नहीं और अब तो फिल्मकारों को समझ ही लेना चाहिए कि अब हिन्दी दर्शक फूहड़ और अश्लील कॉमेडी पर हंसते नहीं हैं. “देसी ब्वॉयज” नामक नई फिल्म में आपको आज के जमाने का एक ऐसा सच देखने को मिलेगा जिसे आप सच मानने से इंकार कर देंगे.
फिल्म का नाम: देसी ब्वॉयज
मुख्य कलाकार: अक्षय कुमार, जॉन अब्राहम, दीपिका पादुकोण, चित्रांगदा सिंह, ओमी वैद्य, संजय दत्त
निर्देशक: रोहित धवन
निर्माता: विजय आहूजा, कृषिका लुल्ला और ज्योति देशपांडे
संगीत निर्देशक: प्रीतम चक्रवर्ती
रेटिंग: **
फिल्म की कहानी
यह दो दोस्तों निक (जॉन अब्राहम) और जेरी (अक्षय कुमार) की कहानी है. निक एक अच्छे बैंक में काम करता है और जेरी सिक्योरिटी गार्ड है. दोनों अच्छे दोस्त हैं. मस्त जिंदगी जी रहे हैं. उनकी प्रेमिकाएं भी हैं. तभी बाजार में मंदी आती है. मंदी आने के साथ सब कुछ बिखरने और टूटने लगता है – प्रेम, दोस्ती और आदतें. दोनों की नौकरी भी चली जाती हैं और जिंदगी इन पर भारी होने लगती है. मजबूरी में वे पुरूष एस्कॉर्ट का काम स्वीकार करते हैं, लेकिन अपनी नैतिकता के दबाव में कुछ रूल बनाते हैं. लेकिन तभी निक की प्रेमिका राधिका (दीपिका पादुकोण) को उनकी करतूतों का पता चलता है तो वह स्वाभाविक तौर पर नाराज होती है और नारी अस्मिता और दर्प से जुड़े कुछ सवाल भी पूछ बैठती है. दूसरी नायिका तान्या(चित्रांगदा सिंह) बारह सालों के बाद उस लड़के से मिलती है, जिस पर कॉलेज में उसका दिल आया था. तब वह मोटी थी और जेरी ने उस पर ध्यान नहीं दिया था. और लड़का है जेरी (अक्षय कुमार).
फिल्म की समीक्षा
पुरूषों का अंग प्रदर्शन, स्ट्रिपटीज, पोल डांस, लंदन, ट्रिनिटी कॉलेज, नायिकाओं के लिए डिजायनर कपड़े, दो-तीन गाने और संजय दत्त का आयटम अपीयरेंस.. देसी ब्वॉयज में यह सब है. बस कहानी नहीं है, लेकिन इमोशनल पंच हैं. मां-बेटा, बाप-बेटी, दोस्त, टीचर-स्टूडेंट के अनोखे संबंधों के साथ “जब जीरो दिया मेरे भारत ने” सरीखा राष्ट्रप्रेम भी है. लेकिन कॉमेडी फिल्मों में अगर दो चार इमोशनल पंच ना हों तो वह पर्दे पर सिर्फ एक मजाक बन कर रह जाती हैं और इस फिल्म के साथ भी वही हुआ है. सचमुच रोहित धवन अपनी पहली फिल्म में फोकस नहीं कर पाए हैं कि उन्हें क्या और किस रूप में कहना है?
अक्षय कुमार और जॉन अब्राहम आकर्षक दिखते हैं. उनके बीच जय-वीरू जैसी दोस्ती है. नाचते-गाते, घूंसा मारते, कसरती बदन दिखाते और एक्शन दृश्यों में वे अच्छे लगते हैं, लेकिन यह सब टुकड़ों-टुकड़ों में ही भाता है. ऐसी फिल्मों में नायिकाएं सिर्फ शोपीस होती हैं. इस काम को दीपिका पादुकोण और चित्रांगदा सिंह ने बखूबी निभाया है. चित्रांगदा सिंह पहली कमर्शियल फिल्म के जोश में हैं. चित्रांगदा और अक्षय कुमार की जोड़ी कमाल की लगती है.
संजय दत्त अपने आयटम अपीयरेंस और संवादों से कुछ दर्शकों को अवश्य लुभाएंगे. संजय दत्त वैसे भी छोटे दृश्यों को करने के लिए मशहूर हैं और इस फिल्म में भी उन्होंने कुछ समय के लिए दर्शकों को अपनी ओर खींच लिया.
प्रीतम का संगीत यूं तो इन दिनों सबके सिर चढ़ रहा है पर इस फिल्म में प्रीतम भी कुछ ऐसा नहीं कर पाए हैं जिसे दर्शक हॉल के बाहर याद रख सकें. हां, फिल्म का टाइटल ट्रैक जरूर लोगों को नाचने का मौका देता है.
कुल मिलाजुला कर देखा जाए तो डेविड धवन के बेटे रोहित धवन ने शायद अपने पिता की फिल्मों को ध्यान से नहीं देखा वरना वह अपनी फिल्म में अश्लील कॉमेडी करने से बचते. साथ ही पुरुष वेश्याओं का कॉंसेप्ट अभी भारत में उस स्तर पर नहीं है जहां उस पर फिल्म बनाई जा सकें.
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