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हिन्दी सिनेमा जगत के लिए हाल ही में एक बड़ी खबर यह आई कि ‘लाइफ ऑफ पाई’ जिसमें भारतीय मूल के कलाकारों ने काम किया था उसे ऑस्कर में कई खिताबों और पुरस्कारों से नवाजा गया. लेकिन लगता है भारतीय निर्देशकों और फिल्मकारों का ऑस्कर के प्रति कोई लोभ नहीं है तभी तो बाजारवाद में फंसा भारतीय सिनेमा जगत लगातार बेतुकी मसाला फिल्में बनाने में लगा हुआ है. ऐसी ही एक बेतुकी और मसालेदार फिल्म इस सप्ताह रिलीज हुई. ‘आई, मी और मैं’ में फिल्म के नाम के अनुरूप ही सिर्फ कलाकारों का ध्यान रखा गया है और इसमें मानों दर्शकों को तो पूरी तरह भुला दिया गया है.
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फिल्म की कहानी
फिल्म की कहानी एक म्यूजिक प्रोड्यूसर ईशान (जॉन अब्राहम) की है जो सिर्फ अपने लिए जीता है लेकिन इस जीने में कहीं भी कुछ प्रोडक्टिव नहीं है. बेफिक्री इसके रग-रग में समाई है. नशे के अलावा ईशान लड़कियों से फ्लर्ट करने की एक बेहद बुरी आदत का शिकार है. वह अपनी लिव-इन पार्टनर अनुष्का (चित्रांगदा सिंह) के साथ रहता है. अनुष्का एक टॉप प्रोफेशनल है लेकिन ईशान के प्यार में इस कदर पागल है कि उसे अपनी खास बात नजर ही नहीं आती. कमिटमेंट के नाम पर धोखा खाने के बाद अनुष्का उससे अलग हो जाती है और तभी ईशान के जीवन में दूसरी लड़की गौरी (Prachi Desai) आती हैं. गौरी एक बेहद बातूनी लड़की है. गौरी धीरे-धीरे ईशान को पूरी तरह बदल देती है. इसी समय ईशान को पता चलता है कि अनुष्का प्रेगनेंट है. अब ईशान के पास दो रास्ते हैं और उसे कोई एक रास्ता चुनना है. या तो ईशान अनुष्का के पास जाकर अपने पुराने प्यार का साथ दे या फिर खुद को सुधारने वाली गौरी का साथ देकर आगे की जिंदगी गुजारे.
फिल्म समीक्षा
फिल्म के शीर्षक को निर्देशक और अभिनेताओं ने पूरी फिल्म में चरितार्थ किया है. उन्होंने सिर्फ आई, मी और मैं की बात की है. दर्शकों का बिल्कुल ख्याल नहीं रखा गया है. जॉन अब्राहम और चित्रांगदा सिंह के पास क्रमश: ‘जिस्म’ और ‘हजारों ख्वाहिशें ऐसी’ जैसे ही एक्सप्रेशंस हैं जिनके दम पर वे आज भी अभिनय की दुनिया में जमे हुए हैं. हालांकि यहां चित्रागंदा सिंह का अभिनय इतना दमदार था कि वह फिल्म के लीड हीरो को भी पछाड़ते हुए नजर आईं. चित्रांगदा सिंह ने ना सिर्फ बोल्ड दृश्यों में जान फूंकी बल्कि उन्होंने भावनात्मक दृश्यों को भी नई जान दी. हालांकि जॉन अब्राहम और प्राची देसाई ने अपने नाम के अनुरूप अभिनय नहीं किया जो दर्शकों को थोड़ा परेशान करने वाला होगा.
फिल्म का संगीत बेहतरीन है. फिल्म का संगीत जितना बेहतरीन है उतना ही बेकार फिल्म का निर्देशन और फिल्म की पटकथा है. स्क्रिप्ट राइटर देविका भगत अगर खुद इस फिल्म की पटकथा पढ़ेंगी तो शायद फिर से इस पर काम करने की सोचेंगी.
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