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आज समाज में नैतिकता का स्तर बहुत गिर चुका है. आज प्यार और वासना के घेरे में यह समाज पूरी तरह जकड़ चुका है. समाज में ऐसे कई उदाहरण देखने को मिलेंगे जो आपको गिरती नैतिकता का एक चेहरा दिखाएंगे. और इस समाज को आइना बनाया है सिनेमा ने. सिनेमा ने समाज के हर पहलू को अपनी फिल्मों में उतारा है तो भला वह इसके बुरे पक्ष को कैसे छोड़ दें. हाल के समय में ऐसी कई फिल्में आई हैं जो समाज के डार्क साइड को दिखाती हैं. और इसी कड़ी में अब एक नया नाम हैं “लंका”. कुछ दिन पहले आई फिल्म “साहब, बीवी और गैंगेस्टर” को आप इस फिल्म से जोड़ कर देख सकते हैं लेकिन कुछ समय के लिए.
लंका कहानी आज के रावण और विभीषण की है. फिल्म में सारे किरदारों को आज के युग के अनुरूप फिल्माया गया है, बस सीता कुछ बदली नजर आएगी. यह अपनी लड़ाई लड़ने की हिम्मत रखती है. मनोज वाजपेयी और टिया अभिनीत इस फिल्म को एक खास क्लास के लिए ही बनाया गया है.
फिल्म: लंका
कलाकार: मनोज बाजपेयी, अर्जन बाजवा, टिया बाजपेयी, यशपाल शर्मा
निर्देशक: मकबूल खान
निर्माता: विक्रम भट्ट
संगीत: तोषी और शारिब साबरी
रेटिंग: ** (औसत)
फिल्म की कहानी
जैसा कि फिल्म के पोस्टर से ही साफ हो रहा है कि फिल्म की कहानी एक लड़की और एक दबंग आदमी की है जो उस लड़की को अपनी हवस शांत करने का माध्यम बनाता है. फिल्म में जसवंत सिसोदिया (मनोज वाजपेयी) बिजनौर शहर के सबसे ताकतवर इंसान के रूप में दिखाए गए हैं. वह पैसे और ताकत के नशे में चूर हैं और किसी भी हद तक गिर सकते हैं. इसी दौरान उनका दिल आता है डॉक्टर अंशु (टिया) पर. अंशु एक पढ़ी लिखी डॉक्टर है लेकिन फिर भी वह भाई साहब के झूठे प्यार में फंस कर उनकी रखैल बनकर रह जाती है. एक पढ़ी लिखी डॉक्टर होने के बाद भी उनका ऐसा असहाय किरदार समझ से परे है.
जसवंत सिसोदिया अंशु की जिंदगी बर्बाद कर देते हैं और उसे एक रखैल की तरह रखते हैं. इसी दौरान फिल्म में एंट्री होती है भाई साहब के तथाकथित छोटे भाई की. अर्जन जसवंत सिसोदिया का खास है लेकिन जैसे ही वह अंशु से मिलता है वह उसकी तरफ खिंचा चला जाता है और जसवंत सिसोदिया के खिलाफ हो जाता है. यहीं से कहानी मोड़ लेती हैं और अंशु के बचने का रास्ता खुलता है. अब कहानी आगे किस मोड़ पर जाती है यह तो आपको फिल्म देखकर ही मालूम होगा.
फिल्म की समीक्षा
निर्देशक मकबूल खान पहली बार किसी फिल्म का निर्देशन कर रहे हैं. उन्होंने इस फिल्म में कलाकारों से तो बेहतर काम लिया है पर फिल्म की नायिका का डॉक्टर होकर भी असहाय का रोल करना दर्शकों को खलेगा. आखिर एक पढ़ी लिखी डॉक्टर इतनी असहाय कैसे हो सकती है? कहानी के अंत में रोमांच और पकड़ खत्म हो जाती है.
मनोज वाजपेयी ने एक बार फिर साबित किया है कि वह हर रोल में हिट और फिट हैं. मनोज वाजपेयी ने इससे पहले हाल ही में राजनीति और आरक्षण जैसी फिल्मों में दमदार रोल किया है और इस फिल्म में भी उनका अभिनय देख दिल खुश हो गया है. टिया वाजपेयी की यह दूसरी फिल्म है और इस फिल्म में भी वह पहली फिल्म हॉंटेड की तरह एक असहाय लड़की के रूप में नजर आई हैं. फिल्म में उन्होंने बोल्ड दृश्यों को बहुत अच्छी तरह से निभाया है. अर्जन बाजवा की यह पहली फिल्म है पर उन्होंने अपने डायलॉग से सबको प्रभावित किया है.
फिल्म का संगीत हार्ड म्यूजिक पर आधारित है जिसे सुनकर दिल में तो कुछ होता नहीं है पर हां सर में दर्द जरूर होता है.
कुल मिला-जुलाकर अगर आप लीक से हटकर फिल्में देखने के शौकीन हैं तो यह फिल्म आपके लिए बहुत अच्छी है. फिल्म में मनोज वाजपेयी का अभिनय प्लस प्वॉइंट है.
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