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Chashme Baddoor Review in Hindi: सिर्फ डरना नहीं हंसना भी जरूरी है

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लंबे इंतजार के बाद आज आखिरकार पर्दे पर उतर ही आई कॉमेडी फिल्म चश्मेबद्दूर. नाम और कहानी 1981 में प्रदर्शित चश्मेबद्दूर की ही है लेकिन निर्देशक डेविड धवन ने इस कहानी को एक नया और फ्रेश चेहरा देने की कोशिश की है. इस फिल्म में नए चेहरों के साथ पाकिस्तानी गायक अली जाफर (Ali Zafar) भी हैं. इससे पहले अली जाफर मेरे ब्रदर की दुल्हन फिल्म में भी कॉमेडी करते नजर आए थे.


चश्मेबद्दूर के साथ-साथ इस सप्ताह हॉरर फिल्म राइज ऑफ द जॉम्बी भी रिलीज हुई है. आइए आपको बताएं इन दोनों फिल्मों को दर्शकों का कैसा रिस्पॉंस मिल सकता है और सफल होने की कितनी संभावनाएं हैं.


चश्मे बद्दूर  (Chashme Baddoor Movie review in Hindi)

बैनर: वायकॉम 18 मोशन पिक्चर्स

निर्देशक: डेविड धवन

संगीत: साजिद-वाजिद

कलाकार: अली जफर, सिद्धार्थ, द्वियेन्दु शर्मा, तापसी पन्नू, ऋषि कपूर, अनुपम खेर

रेटिंग: ***


सई परांजपे ने आज से 32 साल पहले चश्मेबद्दूर नाम से फिल्म बनाई थी जिसे आज भी लोग याद करते हैं. इस बार समान विषय के साथ डेविड धवन नए चेहरे में चश्मेबद्दूर को लेकर आ रहे हैं. भले ही दोस्त अच्छे हों लेकिन इतने शरारती होते हैं जिनकी शरारत का खामियाजा आपको उठाना पड़ता है.


डेविड धवन (David Dhawan) की इस नई फिल्म चश्मेबदूर की कहानी भी ऐसे ही एक लड़के की है जो बहुत शर्मीला और प्यार के मामले में कच्चा है. वह एक लड़की से प्यार कर बैठा है लेकिन उसके दो दोस्त जलन के मारे इस प्यार को तोड़ने की कोशिश में लगे हुए हैं. सिद्धार्थ (Ali Zafar), जय (सिद्धार्थ) और ओमी (द्विव्येंदु) गोवा में एक साथ रहते हैं. सिद्धार्थ बेहद सीधा-सादा है, लेकिन उसके दोस्त हर लड़की को अपना दिल दे बैठते हैं. उनके पड़ोस में सीमा (तापसी) नाम की लड़की रहने आती है. ओमी और जय सीमा पर लाइन मारते हैं लेकिन सीमा का दिल आ जाता है सिद्धार्थ पर. दोनों दोस्त सिद्धार्थ से जलन रखने लगते हैं और इस जलन में वह सीमा और सिद्धार्थ को अलग करने की क्या-क्या हास्यास्पद कोशिशें करते हैं यही है चश्मेबद्दूर (Chashme Baddoor Movie review in Hindi) की कहानी.


अभिनय: फिल्म की कहानी बहुत मजेदार है लेकिन कुछ जगह अभिनय पक्ष कमजोर नजर आता है. अली जाफर पहले भी कॉमेडी में अपने जलवे बिखेर चुके हैं वहीं सिद्धार्थ इससे पहले रंग दे बसंती और स्ट्राइकर जैसी गंभीर फिल्में कर चुके हैं. इसके अलावा दिव्येंदू शर्मा को भी प्यार का पंचनामा फिल्म के बाद कॉमेडी रोल में पहचान मिल चुकी है. तीनों मेल कलाकारों का अभिनय देखने लायक है लेकिन नई हिरोइन ताप्सी की एक्टिंग में अपरिपक्वता साफ नजर आती है. डेविड धवन की फिल्मों के असली नायक डायलॉग होते हैं और इस फिल्म के डायलॉग भी सुनने लायक हैं. दिव्येंदू का किरदार इस फिल्म में एक शायर है जिसमें वह खूब फबे हैं.


क्यों देखें: फिल्म की कहानी भले ही पुरानी को लेकिन तड़का नया और ताजा है. अगर कॉमेडी फिल्में देखना पसंद करते हैं तो यह फिल्म एक अच्छा चुनाव हो सकती है.


क्यों ना देखें: अगर हंसी-मजाक से एलर्जी हो तो

राइज ऑफ द जॉम्बी की कहानी (Rise of the Zombie)


बैनर: केनी मीडिया, बीएसआई एंटरटेनमेंट

निर्देशक: देवकी सिंह

कलाकार: ल्यूक केनी, कीर्ति कुल्हारी, अश्विन मुश्रान, बेंजामिन गिलानी

रेटिंग: **1/2


जिन लोगों को जॉम्बीज के बारे में नहीं पता सबसे पहले तो हम उन्हें इसका मतलब बता देते हैं. ज़ॉम्बी का अर्थ है चलती-फिरती लाश, यानि एक शैतान. यह ना मरे होते हैं और ना ही जिन्दा होते हैं. यह इंसानों के मांस को ही अपना आहार बनाते हैं. भारत की पहली जॉम्बी फिल्म राइज ऑफ जॉम्बी कल ही रिलीज होने वाली है. इस फिल्म में यह भी दिखाया गया है कि जॉम्बी का उदय कैसे हुआ. नील पारकर एक वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर है, वह अपने काम में इतना ज्यादा डूबा है कि अपनी आम जिन्दगी से वह पूरी तरह दूर हो गया है. उसके करीबी लोग उसे छोड़कर चले गए हैं. उसकी गर्लफ्रेंड ने उसका साथ छोड़ दिया है. नील सब कुछ छोड़ एकांत में प्रकृति के करीब चला जाता है. इस एकांतवास में उसके साथ कुछ ऐसा घटता है जो उसकी जिन्दगी को पूरी तरह बदलकर रख देता है. यहां उसका सामना अजीबोगरीब प्राणियों से होता है.


अभिनय: फिल्म के ज्यादातर किरदार विदेशी हैं,ल्यूक केनी का अभिनय काबिल-ए-तारीफ है. यूं तो भारत में हॉरर फिल्में बनती रही हैं. लेकिन यह फिल्म वाकई देखने लायक है.


क्यों देखें: भारत में पहली बार ऐसी फिल्म बनी है जिसमें जॉम्बीज को फिल्माया गया है.


क्यों ना देखें: जॉम्बी जैसी फिल्में कई बार देख चुके हों और दोबारा ऐसा ना देखना चाहें.


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