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एक पुरानी कहावत है कि हर चीज को बाजार में बेचने के लिए उसे अश्लील बनाना जरूरी नहीं होता है. जहां हिन्दी सिनेमा में कॉमेडी और रोमांस के तड़के के नाम से फिल्में बाजार में बेची जा रही हैं वहीं दूसरी तरफ ‘मद्रास कैफे’ एक ऐसी फिल्म है जिसमे ना तो कॉमेडी है और ना ही रोमांस फिर भी फिल्म समीक्षकों की नजर में सुपरहिट है. ‘मद्रास कैफे’ बॉलीवुड की पहली ऐसी थ्रिलर फिल्म बन गई है जिसमें थ्रिलर फिल्म के नाम पर दर्शकों को प्रेम कहानी नहीं दिखाई गई है.
फिल्म रिव्यू: मद्रास कैफे
डायरेक्टर: शुजीत सिरकर
एक्टर: जॉन अब्राहम, नरगिस फखरी, प्रकाश बेलावाड़ी, राशी खन्ना, अजय रत्नम, सिदार्थ बसु, पीयूष पांडे
स्क्रिप्ट: सोमनाथ डे, शुभेंदु भट्टाचार्य
डायलॉग: जूही चतुर्वेदी
म्यूजिक: शांतनु मोइत्रा
सिनेमेटोग्राफी: कमलजीत नेगी
अवधि: 130 मिनट
स्टार: ****
‘मद्रास कैफे’ फिल्म का ट्रेलर रिलीज होते ही फिल्म विवादों से घिर गई थी. फिल्म को बॉक्स ऑफिस पर नहीं रिलीज करने की मांग उठने लगी पर फिल्म निर्माता और अभिनेता जॉन अब्राहम ने वादा किया था कि ‘मद्रास कैफे’ में ऐसा कुछ भी नहीं दिखाया गया है जिससे किसी की भावना को आघात पहुंचे.
आज फिल्म बॉक्स ऑफिस पर रिलीज हुई जिसे देखने के बाद दर्शकों और फिल्म समीक्षकों का दावा है कि फिल्म ‘मद्रास कैफे’ में ऐसे सीन नहीं हैं जो किसी एक विशेष वर्ग की भावना को आघात पहुचाएं बल्कि फिल्म की कहानी काफी जोरदार है और इसके निर्देशन में किसी भी तरह की कमी नहीं रखी गई है. फिल्म की कहानी श्रीलंका में छिड़े गृह युद्ध से शुरू होती है जिसमें हजारों बेगुनाह तमिलों और सिंहलियों की जान ली गई. इसके बाद तमिलों का एक छोर भारत से जुड़ता है इसलिए देर सबेर भारत की सरकार भी इस युद्ध का एक हिस्सा बन जाती है.
तमिल विद्रोही गुरिल्ला ग्रुप एलटीएफ टाइगर्स को कमजोर करने के लिए गुप्त ऑपरेशन चलाने का फैसला होता है और इसके लिए भारतीय सेना के मेजर विक्रम को वहां भेजा जाता है. विक्रम (जॉन अब्राहम) को श्रीलंका के उत्तरी हिस्से में स्थित जाफना और दूसरी जगहों पर एक दूसरे ही सच से भिड़ना पड़ता है. इसी दौरान ऐसी खबर मिलती है कि विक्रम एक गुप्त ऑपरेशन में मारा गया पर वास्तव में ऐसा होता नहीं है. फिल्म के दूसरे हाफ में विक्रम एक विदेशी रिपोर्टर जया (नरगिस फाखरी) और दूसरे कुछ साथियों की मदद से अंदरूनी चुनौतियों से जूझते हुए गुप्त ऑपरेशन को अंतिम रूप देने की कोशिश करता है. इसी दौरान उन्हें इस बात का पता चलता है कि इसके पीछे राजनेताओं की चालें हैं.
फिल्म निर्देशन: फिल्म ‘मद्रास कैफे’ के निर्देशक शुजीत सिरकर इस फिल्म से पहले ‘विकी डोनर’ फिल्म निर्देशित कर चुके हैं जिसमें एक बेहतर कॉमेडी दिखाई गई थी इसलिए दर्शकों को ऐसा लगा कि फिल्म ‘मद्रास कैफे’ में कहीं थ्रिलर के नाम पर कॉमेडी ना दिखाई जाए. पर ऐसा हुआ नहीं. फिल्म ‘मद्रास कैफे’ के निर्देशन में किसी भी तरह की कमी नहीं नजर आती है. फिल्म ‘मद्रास कैफे’ के कुछ सीन को देखने के बाद ऐसा लगता है कि फिल्म की कहानी दर्शकों को भ्रमित कर रही है पर ऐसा नहीं है. दरअसल 130 मिनट की फिल्म में श्रीलंका में छिड़े गृह युद्ध की पूरी की कहानी को समेटने की कोशिश की गई है. फिल्म ‘मद्रास कैफे’ को निर्देशित करते हुए इस बात का पूरा ख्याल रखा गया है कि दर्शकों को थ्रिलर फिल्म के नाम पर कुछ और ना दिखाया जाए जैसा आमतौर पर बॉलीवुड की फिल्मों में दिखाया जाता है.
क्यों देखें: यदि आपको थ्रिलर फिल्म पसंद है तो !
क्यों ना देखें: यदि आप फिल्म को देखते समय किसी प्रेम कहानी के दिखाए जाने की उम्मीद रखते हैं तो !
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Web Title: madras cafe movie review
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