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Paan Singh Tomar: Movie Review
इंसान चाहे लाख अच्छे काम करे पर उसका इतना नाम नहीं होता जितना एक गलत काम करने से उसका नाम हो जाता है. यह हमारे समाज की कड़वी सच्चाई है कि यहां आपके अच्छे कामों को कोई इतनी जल्दी प्रोत्साहित नहीं करता जितना आपके गलत कामों के लिए आपको कोसता है. समाज की इसी बुराई को सिनेमा के माध्यम से इस बार फिल्म “पान सिंह तोमर” में दिखाने की कोशिश की गई है. साथ ही यह फिल्म एथलीटों के जीवन की कड़वी सच्चाई को भी सबके सामने रखती है जहां भारतीय एथलीट सुविधाओं के अभाव में जीवन बसर कर रहे हैं. यह फिल्म देखकर अगर आप खुद या अपने बच्चों को एथलीट बनाने का विचार कर रहे हैं तो हो सकता है कि आप अपने फैसले पर पुन: विचार करने लगें.
मुख्य कलाकार: इरफान खान, माही गिल, विपिन शर्मा, इमरान हसनी, नवाजुद्दीन सिद्दकी, राहुल शर्मा
निर्देशक: तिग्मांशु धूलिया
तकनीकी टीम: यूटीवी मोशन पिक्चर्स, संदीप नाथ, मानवेंद्र और कौशर मुनीर
फिल्म की कहानी
कहानी मध्य प्रदेश के एक छोटे से शहर से ताल्लुक रखने वाले पान सिंह तोमर (इरफान खान) के ईर्द-गिर्द घूमती है. उसने राष्ट्रीय खेलों में लगातार सात साल तक बाधा दौड़ में विजय हासिल की और अगले एक दशक तक कोई भी उसके रिकॉर्ड को नहीं तोड़ सका. पान सिंह तोमर एक एथलीट होने के साथ एक फौजी भी है. उसे सच बोलने से डर नहीं लगता और देश को अपनी मां की तरह पूजता है, लेकिन सेना की नौकरी में अनुशासन की बहुत अहमियत है. वह एथलीट बनता है और धावक के रूप में देश के लिए मेडल जीतता है. नौकरी खत्म करने के बाद जब वह गांव आता है, तो परिवार के लोगों द्वारा ही सताया जाता है और एक दिन वह हथियार उठा लेता है. फिर पुलिस से मुठभेड़ और अंत में मौत…
फिल्म समीक्षा
कहने वाले कह गए हैं कि जो जैसा करेगा, वह वैसा भरेगा… पान सिंह के परिवार के लोगों ने जो किया, उन्हें उसका फल मिला और जो पान सिंह ने किया उन्हें भी उसका फल मिला. यानी दोनों को ही मौत नसीब हुई, वह भी गोली खाकर… तिग्मांशु धूलिया की फिल्म पान सिंह तोमर की कहानी यही है, लेकिन उन्होंने एक और सवाल इसके जरिए उठाया है कि आखिर हमारा सिस्टम कब सही होगा? जब जिले का अधिकारी कलक्टर और गांव का अधिकारी थानेदार ही अपने दायित्व से मुंह मोड़ लें, तो वक्त के साथ न जाने कितने पान सिंह तोमर पैदा होते रहेंगे और उन्हीं की तरह मर जाएंगे.
इरफान खान अच्छे अभिनेता हैं. पान सिंह की भूमिका को उन्होंने जीवंत किया है. पान सिंह की पत्नी के किरदार में माही गिल ने भी अपनी अभिनय क्षमता का परिचय दिया है. हालांकि इस फिल्म में भी माही गिल ने बेहतरीन बोल्ड दृश्य दिए हैं.
विषय के हिसाब से गीत-संगीत को ज्यादा तरजीह नहीं मिली है, फिर भी गीत देखो हवा जोर से भड़की.. कैलाश खेर की आवाज में अच्छा बना है. फिल्म बायोस्कोपिक है पर हार्ड सिनेमा देखने वालों को यह फिल्म बहुत पसंद आएगी.
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