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दुनिया की भीड़ में सुकून देती यह प्रेम कहानी (पार्ट-1)

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इस दुनिया में खरबों लोग हैं और हर किसी व्यक्ति की अपनी प्रेम कहानी है पर कुछ प्रेम कहानियां ऐसी होती हैं जो दिल को सुकून दे जाती हैं. उन्हीं प्रेम कहानियों में से एक है साजन फर्नांडिस और इला की प्रेम कहानी.

जहां मुंबई में लोगों की भीड़ सुकून भरी सांस लेने तक का समय नहीं देती वहीं फर्नांडिस और इला की प्रेम कहानी दुनिया से अलग प्रेम की दुनिया में खो जाने के लिए मजबूर करती है. फिल्म ‘द लंच बॉक्स’ की प्रेम कहानी कुछ ऐसी ही है. साजन फर्नांडिस (इरफान खान) और इला (निमरत कौर) का अभिनय इतना शानदार है कि जिसे देखने के बाद दर्शकों को यह यकीन हो जाता है कि आज भी दुनिया में प्रेम नाम की जगह है.


इसी लेख का पार्ट-2 पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें


फिल्म समीक्षा: द लंच बॉक्स

कलाकार: इरफान, निमरत कौर, नवाजुद्दीन सिद्दीकी

निर्देशक और लेखक: रीतेश बत्रा

निर्माता: अनुराग कश्यप, करन जौहर, सिद्धार्थ रॉय कपूर

रेटिंग: **** ½

कहां से आया था वो ‘लुटेरा’


lunch box movie

‘द लंच बॉक्स’की प्रेम कहानी

फिल्म लंच बॉक्स के बारे में यह कहना गलत ना होगा कि खुद को नए सिरे से समझने और बीते वक्त के अंधेरे में घिरे जालों को साफ करने जैसी यह प्रेम कहानी है. फिल्म लंच बॉक्स की कहानी कहने को तो किसी भी आम आदमी की हो सकती है पर जैसी फिल्म की शुरुआत होती है और जैसा अंत उसे देख ऐसा लगता है मानो बॉलीवुड फिर से एक बार हिन्दी सिनेमा की तरफ मुड़ रहा हो.

कहानी शुरू होती है साजन फर्नांडिस (इरफान खान) से जो कि मुंबई में एक एकाउंटेंट है और दशकों से एक सरकारी दफ्तर में काम कर रहा है. साजन फर्नांडिस की जिंदगी कुछ उदास सी है. दफ्तर में आंकड़े चेक करना, लंच ब्रेक में होटल का खाना खाना और छुट्टी के बाद लोकल ट्रेन पकड़ने से पहले सिगरेट पी लेना बस यही साजन फर्नांडिस की जिंदगी है.

साजन फर्नांडिस की जिंदगी कुछ-कुछ इसी तरह की रफ्तार में चलती रहती है. अचानक एक दिन एक दिन डिब्बे वाला उसकी टेबल पर खाने का ऐसा डिब्बा रख जाता है जिसका स्वाद चखने के बाद साजन को हर दिन उसी डिब्बे का इंतजार बेकरारी से रहने लगता है. दरअसल साजन को गलती से लंच बॉक्स इला भेजा करती थी. इस सरल सी प्रेम कहानी में असलम मियां (नवाज़ुद्दीन सिद्दकी) की एंट्री मजेदार होती है जो किरदार काफी मजेदार है. अपने मकसद को पूरा करने के लिए असलम मियां कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार है.

पहली ही नौकरी में लड़की से प्यार करने लगा !!


साजन और इला लंच बॉक्स के जरिए एक-दूसरे को पत्र भेजा करते थे और हर शाम साजन से आने वाले पत्र को पढ़ कर इला कुछ वक्त के लिए अपनी सारी टेंशन भूल जाया करती थी. कुछ समय बाद इला को लगता है अब साजन से मिल लेना चाहिए. एक दिन शाम को इला और साजन आपस में मिलने का फैसला करते है. यहां पहुंचकर साजन को अपनी बढ़ती उम्र और इला की खूबसूरती और कम उम्र का एहसास होता है जिस कारण साजन इला से मिले बिना घर वापस लौट जाने का फैसला लेता है.

निर्देशन: सरल सी प्रेम कहानी में प्रेम और दर्द की भावनाओं को सही तरीके से भरने के लिए फिल्म निर्देशक रीतेश बत्रा की तारीफ करनी ही होगी. रीतेश का फिल्म निर्देशन तो तारीफ योगय है ही पर साथ ही उनके निर्देशन में चार चांद लगाने का काम इरफान खान और निमरत कौर ने किया है.


क्यों देखें: यदि तेज रफ्तार वाली फिल्में पसंद ना हों.

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असलम का साथ तब दिया जब वो फुटपाथ पर था !!

रोमांस नाम का तड़का लगाना जरूरी नहीं


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