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कुछ समय पहले आई “देल्ही बेली” को जिस तरह से समाज ने अपना लिया और फिल्म को अच्छा खासा कारोबार दिया उससे भारत में भी एडल्ट फिल्में बनाने के लिए फिल्मकार प्रेरित हो गए. “मर्डर 2”, “नॉट ए लव स्टोरी” जैसी हॉट फिल्मों ने इससे आगे की सोचने की कोशिश की जिसमें वह सफल भी दिखीं. और अब निर्देशक अनुराग कश्यप एक बेहद हॉट और एडल्ट टाइप फिल्म लेकर बॉक्स ऑफिस पर हाजिर हैं. वैसे इस समय बॉक्स ऑफिस पर सलमान खान की “बॉडीगार्ड” को छोड़ बहुत कम ही लोग होंगे जो इसे देखने जाएंगे पर विदेशों में बहुत नाम कमा चुकी अनुराग कश्यप की फिल्म “दैट गर्ल इन येलो बूट्स” को दर्शक जरूर मिलेंगे.
फिल्म का नाम: दैट गर्ल इन येलो बूट्स
मुख्य कलाकार: कल्कि कोचलिन, नसीरुद्दीन शाह, दिव्या जगदल.
निर्देशक: अनुराग कश्यप
संगीत निर्देशक: नरेन चंदावरकर
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फिल्म की कहानी
फिल्म की कहानी ब्रिटेन से आई रूथ के आसपास घूमती है जो भारत अपने पिता को ढूंढ़ने के लिए आती है. उसे यकीन है कि उसके पिता मुंबई या पुणे में हैं. सिर्फ एक चिट्ठी के सहारे पिता की तलाश में भटकती रूथ सतह के नीचे की मुंबई का दर्शन करा जाती है. अपने पिता को ढूंढ़ते हुए उसके वीजा की डेट निकल जाती है पर वह अपने पिता को वापस ढूंढे बिना नहीं जाने का फैसला करती है. ऐसी हालत में रूथ का बॉयफ्रेंड प्रशांत (प्रशांत प्रकाश) और एक लोकल गुण्डा उसका फायदा उठाते हैं.
अपने पिता को ढूंढ़ने के लिए रूथ मुंबई के अनैतिक संगठनों की मदद लेने की सोचती है और एक मसाज पॉर्लर में काम करने लगती है. वह स्थानीय गुण्डों से खुद को बचाते हुए अपने पिता की खोज करती है. लेकिन अपने ही बॉयफ्रेंड के नशा सेवन और गलत हरकतों की वजह से वह खुद को असहाय समझने लगती है. तभी उसकी जिंदगी में एक और किरदार आता है नसरुद्दीन खान जो हर दिन उससे मसाज करवाता है. रुथ की नजर में मुंबई गंदी, गलीज, भ्रष्ट और अनैतिक है. अब रूथ अपने पिता को ढूंढ पाती है या नहीं यह जानने के लिए फिल्म देखना ही बेहतर है.
फिल्म की समीक्षा
हिंदी फिल्मों में अपराध और अंडरवर्ल्ड की फिल्मों में भी हम मुंबई को इस रूप में नहीं देख पाए हैं. मुंबई के सतह की कहानी को अनुराग कश्यप ने बहुत ही साहसी ढंग से परोसने की कोशिश की है. फिल्म में सेक्स का भरपूर तड़का लगाया गया है.
अगर आप कथित सभ्य और शालीन दर्शक हैं तो आप को उबकाई आ सकती है. अनुराग कश्यप ने शिल्प और कथ्य दोनों स्तरों पर कुछ नया रचने की कोशिश की है. उन्हें कल्कि समेत अपने सभी कलाकारों का भरपूर सहयोग मिला है. फिल्म देखते समय भ्रम हो सकता है कि कहीं हम कोई स्टिंग ऑपरेशन तो नहीं देख रहे हैं. भाव और संबंध की विकृति संवेदनाओं को छलनी करती है. अपने किरदारों से निर्देशक का रूखा व्यवहार तकलीफ देता है. अनुराग कश्यप मुंबई की तंग गलियों और बाजारों में चल रहे सेक्स और अपराध के बीच रूथ की भावनात्मक खोज को नया अर्थ दे जाते हैं.
फिल्म में कल्कि कोचलिन ने साबित किया है कि वह लीक से हटकर किरदार निभाने में कितनी सक्षम हैं. अपने पति की फिल्म में उन्होंने जमकर एक्सपोज भी किया है जो एक साहस का काम माना जा सकता है. नसरुद्दीन शाह ने अपनी क्लास बनाए रखी है. बेहतरीन अदाकारी के जादूगर नसरुद्दीन शाह ने इस फिल्म में भी अपना जादू बिखेरा है. फिल्म का संगीत कुछ खास नहीं है.
देट गर्ल इन येलो बूट्स एडल्ट फिल्म है. इसके विषय और फिल्म में उसके निरूपण पर यहां अधिक चर्चा नहीं की जा सकती, क्योंकि पूरा कंटेंट एडल्ट है. बेहतर है कि एडल्ट दर्शक इसे स्वयं देखें और हिंदी सिनेमा के साहस से परिचित हों.
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