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विश्वरूपम की कहानी

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पिछले काफी दिनों से भारत में एक ऐसी चीज को लेकर बहस चल  रही है जिसकी स्वतंत्रता हमें संविधान ने दी है. अभिनेता कमल हसन की मेगा बजट फिल्म विश्वरूपम (Vishwaroopam) को कुछ बेतुके विवादों के कारण कई जगह रिलीज होने से रोका जा रहा है. इस फिल्म में कमल हसन (Kamal Hassan) एक्टर, डायरेक्टर और प्रोड्यूसर हैं. फिल्म पर मुस्लिम विरोधी भावनाएं भड़काने का आरोप लगा है.  लेकिन तमाम-विरोधों के बाद आज यह फिल्म हिन्दी में कई राज्यों में रिलीज हुई. इस फिल्म को देखने वाले अधिकतर लोगों का मानना है कि फिल्म में कुछ भी गलत नहीं है. कई जानकर मानते हैं कि अगर इस फिल्म में मुस्लिमों का चित्रण गलत तरीके से किया गया है तो देश की अधिकतर फिल्मों को तो रिलीज ही नहीं होने देना चाहिए.

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Vishwaroopam Story: विश्वरूपम की कहानी

विश्वनाथ अलियास विज (कमल हसन) एक कत्थक टीचर है जो अपनी न्यूक्लियर ऑन्कोलॉजिस्ट पत्नी निरुपमा (पूजा कुमार)के साथ न्यू यार्क में रहता है. दोनों के बीच एज गैप होने की वजह से उनकी अंडरस्टैंडिंग अच्छी नहीं है. उनकी पत्‍‌नी निरूपमा (पूजा कुमार) जिंदगी से कुछ ज्यादा पाने की कोशिश में अपने बॉस दीपंकर चटर्जी पर प्रेम पाश फेंकती है. निर्दोष पति को धोखा देने के अपराधबोध से बचने के लिए उनकी कमजोरियों की जानकारी हासिल करने के उद्देश्य से वह एक जासूस (अतुल तिवारी) की मदद लेती है. जासूस अतिरिक्त उत्साह में फंसता और मारा जाता है.


जब विश्वनाथ की पत्नी उसके पीछे जासूस लगाती है तब उसे पता चलता है कि उसके पति का एक पास्ट भी है. ओमारभाई (राहुल बोस) एक आतंकवादी संगठन चलाते हैं जो ओसामा बिन लादेन के लिए काम करता है. एक समय ओमार और विश्वानाथ दोनों ही आतंकी ट्रेनिग करते थे. जहां ओमार आतंकवादी बन जाता है वहीं विश्वानाथ देश की सुरक्षा के लिए कार्य करता है. अंत में क्या विश्वनाथ ओमार की प्लानिंग को फेल कर पाएगा या नहीं यही फिल्म की कहानी है.

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Vishwaroopam Review: फिल्म समीक्षा

आतंकवाद की पृष्टभूमि पर बनी इस फिल्म का एक भाग अभी भी लोग नहीं देख पा रहे हैं और वह आज की नौजवान युवतियों की आगे जाने की लालसा और उसके लिए इस्तेमाल किए गए रास्ते. एक युवा पत्नी अपने बॉस पर डोरे डालती है और जब उसे लगता है कि वह खुद गलत कर रही है तो वह अपने पति में बुराई ढूंढने की कोशिश करती है. वहीं फिल्म समीक्षकों की नजर में फिल्म में एक तरह से अवश्य इस्लाम की कट्टर धारणाओं पर हल्की चोट करती है. यह फिल्म तालिबान के कैंप की छवि पेश करती है, जिसमें दिखाया गया है इस्लाम की रूढि़यों का पालन करने के साथ इस्लाम के नाम पर वे किस तरह के कुकृत्य में शामिल हैं और कैसा समाज रच रहे हैं.


कमल हसन अपनी फिल्मों में निरंतर भेष और रूप बदलते रहते हैं. इस मायने में वे बहुरूपिया कलाकार हैं. हर नई फिल्म में वे अपने सामने नए लुक और कैरेक्टर की चुनौती रखते हैं और उन्हें अपने अनुभवों एवं योग्यता से पर्दे पर जीवंत करते हैं.

कमल हसन का उद्देश्य संदेश देने से अधिक इस पृष्ठभूमि में दर्शकों का मनोरंजन करना है. वे इस उद्देश्य में सफल रहे हैं.  कमल हसन हमेशा की तरह खुद का विस्तार करते नजर आते हैं. सहयोगी भूमिकाओं में पूजा कुमार, शेखर कपूर और राहुल बोस ने अपने किरदारों के साथ न्याय किया है. उनके लिए अधिक गुंजाइश नहीं थी.


कला जगत से जुड़े अधिकतर लोगों का मानना है कि फिल्म में विवाद जैसा कुछ नहीं है. यह एक शानदार फिल्म है जिसमें कमल हसन की बेहतरीन कला देखने को मिली है.


फिल्म को रेटिंग: **** (4/5)


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