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कामेडी के नाम पर एरर हाउसफुल

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HouseFullमुख्य कलाकार : अक्षय कुमार, रितेश देशमुख, अर्जुन रामपाल, दीपिका पादुकोन, लारा  दत्ता, जिया खान, रणधीर कपूर आदि।

निर्देशक : साजिद  खान

तकनीकी टीम : कथा-निर्माता- साजिद नाडियाडवाला, पटकथा-मिलाप झावेरी, साजिद  खान, विभा सिंह, संवाद-अन्विता दत्त गुप्तन, गीत-समीर, अमिताभ भट्टाचार्य, संगीत-शंकर एहसान लाय

** दो स्टार


सचमुच थोड़ी ऐसे या वैसे और जैसे-तैसे साजिद  खान ने हाउसफुल का निर्देशन किया है। आजकल शीर्षक का फिल्म की थीम से ताल्लुक रखना भी गैर-जरूरी हो गया है। फिल्म की शुरुआत में साजिद  खान ने आठवें और नौवें दशक के कुछ पापुलर निर्देशकों का उल्लेख किया है और अपनी फिल्म उन्हें समर्पित की है।

इस बहाने साजिद  खान ने एंटरटेनर  डायरेक्टर की पंगत में शामिल होने की कोशिश कर ली है। फिल्म की बात करें तो हाउसफुल कुछ दृश्यों में गुदगुदी करती है, लेकिन जब तक आप हंसें, तब तक दृश्य गिर जाते हैं। इसे स्क्रीनप्ले  की कमजोरी कहें या दृश्यों में घटनाक्रमों  का समान गति से आगे नहीं बढ़ना, और इस वजह से इंटरेस्ट लेवल एक सा नहीं रहता।

दो दोस्त, दो बहनें और एक भाई,  दो लड़कियां, एक पिता, एक दादी और एक करोड़पतियों की बीवी़, कामेडी आफ एरर हंसने-हंसाने का अच्छा फार्मूला है, लेकिन उसमें भी  लाजिकल  सिक्वेंस  रहते हैं। हाउसफुल में कामेडी के नाम पर एरर  है। सारी सुविधाओं (एक्टरों की उपलब्धता और शूटिंग के लिए पर्याप्त धन) के बावजूद लेखक-निर्देशक ने कल्पना का सहारा नहीं लिया है। कुछ नया करने की कोशिश भी नहीं है। साजिद खान को विश्वास है कि उनकी फूहड़ कामेडी को दर्शक मिल जाएंगे। आजकल ऐसी गलतफहमियां  दमदार होती जा रही हैं, क्योंकि बेचारे दर्शक मनोरंजन की कटौती और कमी के इस दौर में साधारण मनोरंजन से ही खुद को तृप्त करने की कोशिश करते हैं।

हाउसफुल में आधे दर्जन से ज्यादा कलाकारों की जमघट है। उन्होंने मेहनत की है और बेजान दृश्यों और संवादों में अपनी प्रतिभा से जान डालने की कोशिश की है। अक्षय कुमार और रितेश  देशमुख  की जोड़ी कई दृश्यों में प्रभावशाली रही है। उनके बीच की टाइमिंग  से सीन जानदार बने हैं। अर्जुन रामपाल एक अलग अंदाज में आते हैं। हीरोइनों में लारा  दत्ता निश्चित ही सहज और नैचुरल  हैं। हंसाने लायक दृश्यों के लिए आवश्यक एनर्जी  का वह सदुपयोग करती हैं। दीपिका अपने प्रयास में अटकती नजर आती हैं। सिर्फ निर्देशक के भरोसे रहने पर यह दिक्कत आती है। जिंदगी के तजुर्बो से एक्टिंग में निखार आता है। भले ही आप रुलाएं या हंसाएं, फिल्में देख कर या डायरेक्टर की बात सुन कर यह नहीं होता। सीन समझ जाने पर भी जरूरी एक्सप्रेशन चेहरे पर तभी आएंगे, जब उनका एक्सपीरिएंस  या एक्सपोजर  हो। यही दिक्कत जिया खान की भी रही है। इसी फिल्म में बोमन  ईरानी और लिलेट  दूबे के अभिनय से भी हम इसे समझ सकते हैं। वे सीमित स्पेस  में ही कुछ कर जाते हैं।

कपड़े पहना रहे हों या कपड़े उतार रहे हों, दोनों ही प्रक्रियाओं में साजिद खान के एस्थेटिक सेंस और सीन में संगति नहीं बैठती। कलाकारों की प्रतिभा और उनसे मिले भरपूर सहयोग का भी वे समुचित उपयोग नहीं कर पाते। यही वजह है कि अंतिम प्रभाव में हाउसफुल सिर्फ टाइमपास प्रतीत होती है।

फिल्म का क्लाइमेक्स फूहड़ तरीके से सोचा और फिल्मांकित किया गया है। हंसी के समंदर में सारे चरित्र गड्डमड्ड हो गए हैं। अपनी तो जैसे-तैसे गीत का फिल्मांकन  और नृत्य संयोजन रोचक और आकर्षक नहीं है।

– अजय ब्रह्मात्मज

Source: Jagran CineMaza


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