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देश भर में गणेश चतुर्थी की धूम है और त्योहारों के इस समय शिव- पुत्र सबके दिलों पर राज कर रहे हैं. ऐसे में महाराष्ट्र के अष्टविनायक मंदिरों की सजावट और भक्तों के मन में उनके प्रति श्रद्धा देखते ही बनती है. इन आठ मंदिरों में भगवान गणेश अलग-अलग अवतार में वास करते है. यह सभी मंदिर अपने आप में बहुत ही भव्य और गणेश जी को समर्पित लगते हैं.
श्री गणेश को मंगलमूर्ति के रुप में सर्वप्रथम पूजा जाता है. एक कथा के अनुसार भगवान ब्रह्मा ने भविष्यवाणी की थी कि हर युग में भगवान श्री गणेश अलग-अलग रुप में अवतरित होंगे. कृतयुग में विनायक, त्रेतायुग में मयूरेश्वर, द्वापरयुग में गजानन और धूम्रकेतु के नाम से कलयुग में अवतार लेंगे. इसी पौराणिक महत्व से जुड़ी है महाराष्ट्र में अष्टविनायक यात्रा. विनायक भगवान गणेश का ही एक नाम है. महाराष्ट्र में पुणे के समीप अष्टविनायक के 8 पवित्र मंदिर 20 से 110 किलोमीटर के क्षेत्र में स्थित हैं. एक सबसे चौकाने वाली बात यह है कि इनमें विराजित गणेश की प्रतिमाएं स्वयंभू मानी जाती हैं यानी यह स्वयं प्रकट हुई हैं. यह मानव निर्मित न होकर प्राकृतिक हैं. हर प्रतिमा का स्वरुप एक-दूसरे से अलग है.
इस क्रम में सबसे पहले मोरगांव स्थित मोरेश्वर इसके बाद क्रमश: सिद्धटेक में सिद्धिविनायक, पाली स्थित बल्लालेश्वर, महाड स्थित वरदविनायक, थेऊर स्थित चिंतामणी, लेण्याद्री स्थित गिरिजात्मज, ओझर स्थित विघ्रेश्वर, रांजणगांव स्थित महागणपति की यात्रा की जाती है.तो आइए चलते हैं अष्टविनायक के सफर पर:
मोरगांव –श्री मयूरेश्वर
मयूरेश्वर या मोरेश्वर का मंदिर मोरगांव में करहा नदी के किनारे स्थित है. यह महाराष्ट्र के पुणे में बारामती तालुका में स्थित है. यह क्षेत्र भूस्वानंद के नाम से भी जाना जाता है जिसका अर्थ होता है सुख समृद्ध भूमि. इस क्षेत्र का मोर के समान आकार लिए हुए है. साथ ही यह भी कहा जाता है कि प्राचीन समय में यहां बडी संख्या में मोर पाए जाते थे, इसी कारण इस क्षेत्र का नाम मोरगांव प्रसिद्ध हुआ.
सिद्धटेक – श्री सिद्धिविनायक
सिद्धटेक महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले की करजत तहसील में भीम नदी के किनारे स्थित एक छोटा सा गांव है. सिद्धटेक में अष्टविनायक में से एक सिद्धविनायक को परम शक्तिमान माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि यहां सिद्धटेक पर्वत था, जहां पर विष्णु ने तप द्वारा सिद्धि प्राप्त की थी. पूरे भारत में यह मंदिर गणेश का सबसे ज्यादा प्रसिद्ध मंदिर है जहां आए दिन लोगों का तांता लगा रहता है दर्शन के लिए.
थेऊर –श्री चिंतामणी
चिंतामणी गणेश का मंदिर महाराष्ट्र के पुणे जिले के हवेली तालुका में थेऊर नामक गांव में है. यह गांव मुलमुथा नदी के किनारे स्थित है. यहां गणेश चिंतामणी के नाम से प्रसिद्ध है जिसका अर्थ है कि यह गणेश सारी चिंताओं को हर लेते हैं और मन को शांति प्रदान करते हैं.
ओझर –श्री विघ्नेश्वर
विघ्रेश्वर अष्टविनायक का मंदिर कुकदेश्वर नदी के किनारे ओझर नामक स्थान पर स्थित है. विघ्रेश्वर दैत्य को मारने के कारण ही इनका नाम विघ्रेश्वर विनायक हुआ. ऐसा माना जाता है कि तब से यहां भगवान श्री गणेश सभी विघ्रों को नष्ट करने वाले माने जाते हैं.
लेण्याद्री –श्री गिरिजात्मज
गिरिजात्मज अष्टविनायक मंदिर उत्तरी पुणे के लेण्याद्री गांव में स्थित है. यह कुकदी नदी के किनारे बसा है. गणेश पुराण अनुसार इस स्थान का जीरनापुर या लेखन पर्वत था. गिरिजात्मज का अर्थ बताया गया है माता पार्वती के पुत्र. गिरिजा माता पार्वती का ही एक नाम है और आत्मज का अर्थ होता है पुत्र. अष्टविनायक में यह एकमात्र मंदिर है. जो ऊंची पहाड़ी पर बुद्ध गुफा मंदिर में स्थित है.
पाली –श्री बल्लालेश्वर
अष्टविनायक गणेश में बल्लालेश्वर गणेश ही एकमात्र ऐसे गणेश माने जाते हैं, जिनका नाम भक्त के नाम पर प्रसिद्ध है. यहां गणेश की प्रतिमा को ब्राह्मण की वेशभूषा पहनाई जाती है.
महड –श्री वरदविनायक
वरदविनायक गणेश का मंदिर महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के कोल्हापुर तालुका में एक सुंदर पर्वतीय गांव महाड में है. भक्तों की ऐसी श्रद्धा है कि यहां वरदविनायक गणेश अपने नाम के समान ही सारी कामनाओं को पूरा होने का वरदान देते हैं.
रांजणगांव –श्री महागणपति
महागणपति को अष्टविनायक में सबसे दिव्य और शक्तिशाली स्वरुप माना जाता है. यह अष्टभुजा, दशभुजा या द्वादशभुजा वाले माने जाते हैं. त्रिपुरासुर दैत्य को मारने के लिए गणपति ने यह रुप धारण किया. इसलिए इनका नाम त्रिपुरवेद महागणपति नाम से प्रसिद्ध हुआ.
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