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जैन धर्म अपनी सादगी के लिए तो प्रसिद्ध है ही इसके साथ ही इसने भारत के पर्यटक सौन्दर्य में बहुत सारी धरोहर दी है. वैसे भी जब किसी धर्म से इतने सारे लोग जुड़ते हैं तो उस धर्म का विस्तार होना ही होता है. जैन धर्म में भी ऐसी कई धरोहर हैं जो पर्यटन की दृष्टि से बेहद रोचक हैं. दिलवाड़ा के जैन मंदिर भी उन्हीं में से एक हैं.
दिलवाड़ा मंदिर पाँच मंदिरों का एक समूह है. ये सिरोही जिले के माउंट आबू नगर में स्थित हैं. इतिहास के लिहाज से यह मंदिर बहुत पुराने हैं. इसकी एक चीज जो सबसे खूबसूरत है वह है मंदिरों के लगभग 48 स्तम्भों में नृत्यांगनाओं की बनी आकृतियां जो सबको अपनी और आकर्षित करती हैं. दिलवाड़ा के मंदिर और मूर्तियां मंदिर निर्माण कला का उत्तम उदाहरण हैं.
विमल वसाही यहां का सबसे पुराना मंदिर है, जिसे प्रथम जैन तीर्थंकर आदिनाथ को समर्पित किया गया है. इस मंदिर की मुख्य विशेषता इसकी छत है जो 11 समृद्ध पच्चीकारी वाले संकेन्द्रित वलयों में बनाई गई है.
मंदिर की केन्द्रीय छत में भव्य पच्चीकारी की गई है और यह एक सजावटी केन्द्रीय पेंडेंट के रूप में दिखाई देती है. गुम्बद का पेंडेंट नीचे की ओर संकरा होता हुआ एक बिंदु या बूंद बनाता है जो कमल के फूल की तरह दिखाई देता है. यह कार्य का एक अद्भुत नमूना है. यह दैवीय भव्यता को नीचे आकर मानवीय आकांक्षाओं को पूरा करने का प्रतीक है. छत पर 16 विद्या की देवियों (ज्ञान की देवियों) की मूर्तियां अंकित की गई हैं.
यहां के मंदिर लूना वासाही, वास्तुपाला और तेजपाला प्रमुख हैं , जिन्हें गुजरात के वाघेला तत्कालीन शासकों के मंत्रियों के नाम पर नाम दिया गया है. बाहर से सादे और शालीन होने के बावजूद इन सभी मंदिरों की अंदरुनी सजावट कोमल पच्चीकारी से ढकी हुई हैं. इसकी खासियत इसकी चमकदार बारीकी और संगमरमर की कोमलता से की गई शिल्पकारी है और यह इतनी उत्कृष्ट है कि इसमें संगमरमर लगभग पारदर्शी बन जाता है.
दिलवाड़ा के मंदिर दस्तकारी के सर्वोत्तम उदाहरणों में से एक हैं. यहां की पच्चीकारी इतनी जीवंत और पत्थर के एक खण्ड से इतनी बारीकी से बनाए गए आकार दर्शाती है कि यह लगभग सजीव हो उठती है. यह मंदिर पर्यटकों का स्वर्ग है और श्रद्धालुओं के लिए अध्यात्म का केन्द्र है.
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