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दशहरा एक ऐसा पर्व है जिसे एक ही दिन मनाया जाता है लेकिन इस एक पर्व की विविधता उत्तर से दक्षिण तक अलग-अलग है. देश के कोने-कोने में यह विभिन्न तरीकों से मनाया जाता है, लेकिन जोश और उल्लास कहीं भी कम नहीं रहता .
हिमाचल प्रदेश में कुल्लू का दशहरा बहुत प्रसिद्ध है. हिमाचल प्रदेश में स्थित कुल्लू का दशहरा पूरे देश में प्रसिद्ध है. इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि जब पूरे देश में दशहरा समाप्त हो जाता है, तब यहां के दशहरे की शुरुआत होती है. अन्य स्थानों की ही भांति यहाँ भी एक सप्ताह पहले ही इस पर्व की तैयारी आरंभ हो जाती है. स्त्रियाँ और पुरुष सभी सुंदर वस्त्रों से सज्जित होकर तुरही, बिगुल, ढोल, नगाड़े, बाँसुरी आदि-आदि जिसके पास जो वाद्य होता है, उसे लेकर बाहर निकलते हैं. पहाड़ी लोग अपने ग्रामीण देवता का धूम धाम से जुलूस निकाल कर पूजन करते हैं. साथ ही वे अपने मुख्य देवता रघुनाथ जी की भी पूजा करते हैं. इस जुलूस में प्रशिक्षित नर्तक नटी नृत्य करते हैं. इस प्रकार जुलूस बनाकर नगर के मुख्य भागों से होते हुए नगर परिक्रमा करते हैं और कुल्लू नगर में देवता रघुनाथजी की वंदना से दशहरे के उत्सव का आरंभ करते हैं. दशमी के दिन इस उत्सव की शोभा निराली होती है.
पंजाब
पंजाब में दशहरा नवरात्रि के नौ दिन का उपवास रखकर मनाते हैं. इस दौरान यहां आगंतुकों का स्वागत पारंपरिक मिठाई और उपहारों से किया जाता है. यहां भी रावण-दहन के आयोजन होते हैं व मैदानों में मेले लगते हैं.
बस्तर की मां दंतेश्वरी
बस्तर में दशहरे के मुख्य कारण को राम की रावण पर विजय ना मानकर, लोग इसे मां दंतेश्वरी की आराधना को समर्पित एक पर्व मानते हैं. दंतेश्वरी माता बस्तर अंचल के निवासियों की आराध्य देवी हैं, जो दुर्गा का ही रूप हैं. यहां दशहरा श्रावण मास की अमावस से आश्विन मास की शुक्ल त्रयोदशीतक चलता है.
बंगाल में यह पर्व दुर्गा पूजा के रूप में ही मनाया जाता है. यह बंगालियों का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है. यह पूरे बंगाल में पांच दिनों के लिए मनाया जाता है. यहां देवी दुर्गा को भव्य सुशोभित पंडालों विराजमान करते हैं.
इसके साथ अन्य देवी-देवताओं की भी कई मूर्तियां बनाई जाती हैं. त्योहार के दौरान शहर में छोटे-मोटे स्टाल भी मिठाइयों से भरे रहते हैं. यहां षष्ठी के दिन दुर्गा देवी का बोधन, आमंत्रण एवं प्राण प्रतिष्ठा आदि का आयोजन किया जाता है. उसके उपरांत सप्तमी, अष्टमी एवं नवमी के दिन प्रातः और सायंकाल दुर्गा की पूजा में व्यतीत होते हैं. दशमी के दिन विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है. प्रसाद चढ़ाया जाता है और प्रसाद वितरण किया जाता है. पुरुष आपस में आलिंगन करते हैं, जिसे कोलाकुली कहते हैं. स्त्रियां देवी के माथे पर सिंदूर चढ़ाती हैं व देवी को अश्रुपूरित विदाई देती हैं. इसके साथ ही वे आपस में भी सिंदूर लगाती हैं व सिंदूर से खेलती हैं. इस दिन यहां नीलकंठ पक्षी को देखना बहुत ही शुभ माना जाता है. इसके बाद देवी प्रतिमाओं को बड़े-बड़े ट्रकों में भर कर विसर्जन के लिए ले जाया जाता है. विसर्जन की यह यात्रा भी बड़ी शोभनीय और दर्शनीय होती है.
दक्षिण का उल्लास
तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश एवं कर्नाटक में दशहरा नौ दिनों तक चलता है जिसमें तीन देवियां लक्ष्मी, सरस्वती और दुर्गा की पूजा करते हैं. पहले तीन दिन लक्ष्मी-धन और समृद्धि की देवी का पूजन होता है. अगले तीन दिन सरस्वती-कला और विद्या की देवी की अर्चना की जाती है और अंतिम दिन देवी दुर्गा-शक्ति की देवी की स्तुति की जाती है. पूजन स्थल को अच्छी तरह फूलों और दीपकों से सजाया जाता है. लोग एक दूसरे को मिठाइयां व कपड़े देते हैं. यहां दशहरा बच्चों के लिए शिक्षा या कला संबंधी नया कार्य सीखने के लिए शुभ समय होता है. कर्नाटक में मैसूर का दशहरा विशेष उल्लेखनीय है. मैसूर में दशहरे के समय पूरे शहर की गलियों को रोशनी से सज्जित किया जाता है और हाथियों का श्रृंगार कर पूरे शहर में एक भव्य जुलूस निकाला जाता है. इस समय प्रसिद्ध मैसूर महल को दीपमालिकाओं से दुलहन की तरह सजाया जाता है. इसके साथ शहर में लोग टार्च लाइट के संग नृत्य और संगीत की शोभा यात्रा का आनंद लेते हैं. इन द्रविड़ प्रदेशों में रावण-दहन का आयोजन नहीं किया जाता है
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गुजरात का गरबा
गुजरात में मिट्टी सुशोभित रंगीन घड़ा देवी का प्रतीक माना जाता है और इसको कुंवारी लड़कियां सिर पर रखकर एक लोकप्रिय नृत्य करती हैं जिसे गरबा कहा जाता है. गरबा नृत्य इस पर्व की शान है. पुरुष एवं स्त्रियां दो छोटे रंगीन डंडों को संगीत की लय पर आपस में बजाते हुए घूम-घूम कर नृत्य करते हैं. इस अवसर पर भक्ति, फिल्म तथा पारंपरिक लोक-संगीत सभी का समायोजन होता है. पूजा और आरती के बाद डांडिया रास का आयोजन पूरी रात होता रहता है. नवरात्रि में सोने और गहनों की खरीद को शुभ माना जाता है.
इस तरह यह एक त्यौहार पूरे देश को बांध कर रखता है और हमें आपस में मिलकर रहना सिखाता है. नवरात्र से लेकर दिवाली तक का समय जैसे पूरे देश के लिए आध्यात्म को पाने का समय होता है, चारों और भक्तिमय वातावरण दिल को खुश करने वाला होता है.
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