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राजपथ पर स्थित इंडिया गेट का निर्माण प्रथम विश्व युद्ध और अफगान युद्ध में मारे गए 90000 भारतीय सैनिकों की याद में कराया गया था. 160 फीट ऊंचा इंडिया गेट दिल्ली का पहला दरवाजा माना जाता है. जिन सैनिकों की याद में यह बनाया गया था उनके नाम इस इमारत पर खुदे हुए हैं. इसके अंदर अखंड अमर जवान ज्योति भी जलती रहती है. इसकी नींव 1921 में ड्यूक ऑफ कनॉट ने रखी थी और इसे कुछ साल बाद तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इर्विन ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया था. अमर जवान ज्योति की स्थापना 1971 के भारत-पाक युद्ध में भाग लेने वाले सैनिकों की याद में की गई थी. इंडिया गेट दिल्ली की महत्वपूर्ण इमारत है. दिल्ली आने वाले पर्यटक यहां अवश्य आते हैं. साथ ही यह आम दिल्लीवासियों के लिए पिकनिक की जगह भी है. इंडिया गेट पर जाकर कुछ देर रुकें अवश्य.
हुमायूँ का मकबरा
हुमायूँ का मकबरा इमारत परिसर मुगल वास्तुकला से प्रेरित मकबरा स्मारक है. यह नई दिल्ली के पुराने किले के पास है. यहां मुख्य इमारत मुगल सम्राट हुमायूँ का मकबरा है और इसमें हुमायूँ की कब्र सहित कई अन्य राजसी लोगों की भी कब्रें हैं. हुमायूँ का मकबरा विश्व धरोहर घोषित है साथ ही भारत में मुगल वास्तुकला का प्रथम उदाहरण है. इसी मकबरे के डिजाइन को आधार बना बाद में ताजमहल का निर्माण हुआ था. यह मकबरा हुमायूँ की विधवा बेगम हमीदा बानो बेगम के काल में बना था.
अगर आप दिल्ली आए हैं तो आपकी यात्रा तब तक पूरी नहीं हो सकती जब तक आप चांदनी चौक न जाएं. यह दिल्ली के थोक व्यापार का प्रमुख केंद्र है. पुराने समय में तुर्की, चीन और हॉलैंड के व्यापारी यहां व्यापार करने आते थे. यह मुगल काल में प्रमुख व्यवसायिक केंद्र था. इसका डिजाइन शाहजहां की पुत्री जहांआरा बेगम ने बनाया था. यहां की गलियां संकरी हैं. तंग गलियां, पुराने रिक्शे और हजारों दुकानें चांदनी चौक की यही पहचान है. यह गलियां जितनी दिन में व्यस्त होती हैं उतनी ही चमक यहां रात को भी रहती है.
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