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“अहिंसा परमो धर्मः” को साकार करता जैन धर्म

Jagran Yatra
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भारत में धर्म की अधिकता को देख आप अंदाजा  ही नही लगा पाएंगे कि क्या यह किसी एक धर्म का हो सकता है. हिंदू, मुसलमान से लेकर पंजाबी-इसाई कई धर्म हैं. इन्हीं धर्मों में से एक है जैनधर्म. जैनधर्म भारत के सबसे प्राचीनतम और प्रभावकारी धर्मों में से एक है. मानवजाति की सेवा और सादगी भरा जीवन को मूल उद्देश्य मानकर जैन धर्म ने अपना प्रचार किया और देखते ही देखते असंख्य अनुयायी बन गए. ‘जैन’ उन्हें कहते हैं जो ‘जिन’ के अनुयायी हों. ‘जिन’ शब्द ‘जि’ धातु से बना है. ‘जि’ का अर्थ होता है जीतना. ‘जिन’ का मतलब हुआ  जीतने वाला. जिन्होंने अपने मन को जीत लिया, अपनी वाणी को जीत लिया और अपनी काया को जीत लिया, वे हैं ‘जिन’. जैन धर्म अर्थात ‘जिन’ भगवान्‌ का धर्म. इस धर्म में भगवान महावीर को सर्वोपरि माना जाता है.


mahaviraवस्त्र-हीन बदन, शुद्ध शाकाहारी भोजन और निर्मल वाणी एक जैन-अनुयायी की पहली पहचान होती है. यहां तक कि जैन-धर्म के अन्य लोग भी शुद्ध शाकाहारी होते हैं तथा अपने धर्म के प्रति बड़े सचेत रहते हैं.


संस्कृति के साथ जैन-धर्म ने कुछ बेहतरीन कलात्मक रचनाओं का निर्माण कर पर्यटक स्थल और मंदिरों भी बनाए हैं. ऐसे मंदिरों में आपको कुशल कारगरी के साथ शांति का भी अनुभव होता है तो आइए आपको लेकर चलते हैं ऐसी ही कुछ जगहों पर.


पालिताना जैन मंदिर: गुजरात के शतरुंजया पहाड़ पर पालिताना जैन मंदिर स्थित है. 863  मंदिरों वाले शतरुंजया पहाड़ पर स्थित पालिताना जैन मंदिर जैन धर्म के 24 तीर्थंकर भगवान को समर्पित है. पालिताना के इन जैन मंदिरों को टक्स भी कहा जाता है. संगमरमर एवं प्लास्टर से बने हुए इन मंदिरों को देखने पर उनकी सुंदरता हमारे समक्ष प्रकट होती है. इन मंदिरों के दर्शन के लिए गए सभी श्रद्धालुओं को संध्या होने से पहले दर्शन करके पहाड़ से नीचे उतरना पड़ता है. ऐसा मानना  है कि रात को भगवान विश्राम करते हैं. इसलिए रात के समय मंदिर बंद रहता है. . यहां के जैन मंदिरों में मुख्य रूप से अदिनाथ, कुमारपाल, विमलशाह, समप्रतिराजा, चौमुख बहुत सुंदर एवं आकर्षक मंदिर हैं.


digambar-jain-temple-indexदिगंबर जैन लाल मंदिर: दिल्ली के चांदनी चौक पर एक दिगंबर जैन मंदिर है, जो जैन मतावलंबियों की आस्था का एक प्रमुख केंद्र है. जैन मतावलंबियों के दिल्ली स्थित 170 मंदिरों में से एक इस मंदिर में श्रद्घालुओं की संख्या सबसे ज्यादा रहती है. अंतरराष्ट्रीय ख्याति वाले इस मंदिर का निर्माण तत्कालीन मुगल बादशाह शाहजहां के फौजी अफसर ने करवाया था. इस मंदिर की एक खासियत है कि यहां के मंदिरों में बिना पुजारी के ही स्वयं पूजा की जाती है और पूजा की सामग्री आदि मामलों में उन्हें सहयोग के लिए एक व्यक्ति होता है, जिसे व्यास कहते हैं. इस मंदिर में सबसे प्राचीन वेदी पर भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा स्थापित की गई है. मंदिर में चारो दिशा की ओर मुंह किए चार मूर्तियां स्थापित की गई हैं ताकि  बाहर से आने वाले श्रद्घालुओं को भी दर्शन मिल सके.


दिलवाड़ा जैन मंदिर: यह सिरोही जिले के माउंट आबू में स्थित है और भारतवर्ष में अपने बेहतरीन निर्माण-कला के लिए प्रसिद्ध है. पांच मंदिरों के इस समूह में दो विशाल मंदिर है और तीन उनके अनुपूरक मंदिर है. सभी मंदिरों का शिल्प सौंदर्य एक से बढ़कर एक है. दिवारों पर की गई नक्काशी अदभुत है. इन मंदिरों में विमल वासाही मंदिर प्रथम तीर्थंकर को समर्पित है. दिलवाड़ा मंदिर समूह के पांच श्वेताम्बर मंदिरों के साथ ही यहां भगवान कुंथुनाथ का दिगंबर जैन मंदिर भी है. दिलवाड़ा के मंदिर सुंदरता और उत्कृष्टता के साथ भारतीय शिल्पकला का एक अनूठा उपहार हैं.


गोपाचल पर्वत: ग्वालियर किले के अंचल में गोपाचल पर्वत है, जहां प्राचीन जैन मूर्ति समूह का अद्वितीय स्थान है. इस मंदिर को पर्वत को तरासकर बनाया गया है. गोपाचल पर्वत सृष्टि को अहिंसा तथा हिंदू धर्म में आई बलिप्रथा को ख़त्म करने का सन्देश देता है. यहां रूढ़ियों तथा आडम्बरों में सुधारक जैन धर्म के तीर्थंकरों की मूर्तियां उकेरी गईं हैं. जैन मूर्तियों की दृष्टि से ग्वालियर दुर्ग जैन तीर्थ है, इसलिए इस पहाड़ी को जैन गढ़ कहा जाता है.

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