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पालमपुर हिमाचल प्रदेश की मनोरम वादियों में बसा एक छोटा सा पर्वतीय स्थल है। हिमाचल प्रदेश की इस छोटी सी सैरगाह को धौलाधार पर्वतमाला के साये में फैली कांगड़ा घाटी का सुंदरतम स्थान कहा जाता है। समुद्र तल से 1205 मीटर की ऊंचाई पर स्थित पालमपुर सर्दी हो या गर्मी, हर मौसम में सैलानियों को आकर्षित करता है। कहते हैं पालमपुर के नाम की उत्पत्ति स्थानीय बोली के ‘पुलम’ शब्द से हुई थी। जिसका अर्थ ”पर्याप्त जल” होता है। वास्तव में इस क्षेत्र में जल की कोई कमी नही है। हर ओर जल के सोते, झरने या नदियां मौजूद हैं। शायद इसीलिए यहां की हवाओं में शीतलता के साथ नमी भी है। हवाओं की यह नमी और पहाड़ी ढलानों पर खुलकर पड़ती सूर्य की किरणों का मिला-जुला रूप यहां की जलवायु को एक विशिष्टता प्रदान करता है। एक ऐसी विशिष्टता जो चाय की खेती के अनुकूल है। इस क्षेत्र की यह खासियत भांप कर 1849 में डा. जमसन ने यहां पहली बार चाय की खेती की थी। कुछ दशकों में ही कांगड़ा घाटी की चाय विश्व प्रसिद्ध हो गई.
खूबसूरत नजारे
आज पालमपुर शहर बड़े-बड़े चाय बागानों के मध्य ही बसा है। यहां आने वाले पर्यटकों के लिए सबसे बड़ा आकर्षण ये हरे-भरे चाय के बागान हैं। पैदल घूमते हुए मार्ग के दोनों और दूर-दूर तक चाय के झाड़ीनुमा पौधे और उनमें पत्तियां चुनते लोग एक सुंदर दृश्य प्रस्तुत करते है। कमर पर लंबी टोकरी बांधे ये लोग अपने काम में व्यस्त रहते है। कुछ पर्यटक भी इन बागानों के मध्य घूमते पहुंच जाते है। जो अपने आप में अलग ही अनुभव होता है। पालमपुर में ‘न्युगल खड’ नामक स्थान एक पिकनिक स्पॉट के समान है। यह स्थान पहाड़ के छोर पर एक खड़ी चट्टान पर स्थित है। जहां से बादला जलधारा और धौलाधार की 15000 फुट से ऊंची पर्वत श्रंखलाओं का खूबसूरत नजारा दिखाई पड़ता है। इस स्थान से हर दिशा में प्राकृतिक सुषमा का साम्राज्य देखने को मिलता है। यहां पर्यटन विभाग का न्युगल कैफे भी है। दूर ही करीब 5 शताब्दी पुराना बांदला माता मंदिर और विंध्यवासिनी मंदिर भी दर्शनीय है। चाय बागानों के अतिरिक्त चीड़ व देवदार के जंगल भी पालमपुर की हरीतिमा में अपना योगदान देते हैं।
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