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सांची, जिसे प्राचीन समय में काकणाव तथा बोटा श्री पर्वत के नाम से जाना जाता था, मध्य प्रदेश राज्य में स्थित है. यह ऐतिहासिक तथा पुरातात्विक महत्व वाला एक धार्मिक स्थान है. सांची अपने स्तूपों, एक चट्टान से बने अशोक स्तंभ, मंदिरों, मठों तथा तीसरी शताब्दी बी.सी. से 12वीं शताब्दी ए.डी. के बीच लिखे गए शिला लेखों की संपदा के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है.
इस स्तूप को घेरे हुए कई तोरण भी बने हैं. यह प्रेम, शांति, विश्वास और साहस के प्रतीक हैं. सांची का महान मुख्य स्तूप मूलतः मौर्य सम्राट अशोक महान ने बनवाया था. इसके केन्द्र में एक अर्धगोलाकार ईंट का बना हुआ ढ़ांचा है , जिसमें भगवान बुद्ध के कुछ अवशेष रखे हैं. इसके शिखर पर स्मारक को दिए गए ऊंचे सम्मान का प्रतीक रूपी एक छत्र है.
सांची के स्तूप अपने प्रवेश द्वार के लिए प्रसिद्ध हैं जिनमें बुद्ध के जीवन से ली गई घटनाओं और उनके पिछले जन्म की बातों का सजीव चित्रण है. जातक कथाओं में इन्हें बोधिसत्व के नाम से वर्णित किया गया है. यहां गौतम बुद्ध को संकेतों द्वारा निरुपित किया गया है जैसे कि पहिया, जो उनकी शिक्षाओं को दर्शाता है.
सांची की स्थापना, बौद्धधर्म व उसकी शिक्षा के प्रचार-प्रसार में मौर्यकाल के महान राजा अशोक का सबसे बडा योगदान रहा. बुद्ध का संदेश दुनियां तक पहुंचाने के लिए उन्होंने एक सुनियोजित योजना के तहत कार्य आरंभ किया. उन्होंने पुराने स्तूपों को खुदवा कर उनसे मिले अवशेषों के 84 हजार भाग कर अपने राज्य सहित निकटवर्ती देशों में भेजकर बडी संख्या में स्तूपों का निर्माण करवाया. इन स्तूपों को स्थायी संरचनाओं में बदला ताकि ये लंबे समय तक बने रह सकें.
सांची की सभी बड़ी विशेषता है कि यहां महात्मा बुद्ध को मानव से परे आकृतियों में सांकेतिक रूप से दर्शाया गया है. इन सभी शिल्पकलाओं की एक सबसे अधिक रोचक विशेषता यह है कि यहां बुद्ध की छवि मानव रूप में कहीं नहीं है. इन शिल्पकारियों में आश्चर्यजनक जीवंतता है और ये एक ऐसी दुनिया दिखाती हैं जहां मानव और जंतु एक साथ मिलकर प्रसन्नता, सौहार्द्र और बहुलता के साथ रहते हैं. प्रकृति का सुंदर चित्रण अद्भुत है.
इस समय यूनेस्को की एक परियोजना के अंतर्गत सांची तथा एक अन्य बौद्ध स्थल सतधारा की आगे खुदाई, संरक्षण तथा पर्यावरण का विकास किया जा रहा है. हमारे प्राचीन इतिहास की सबसे बड़ी धरोहर के रुप में सांची के स्तूपों को आज भी मान्यता प्राप्त है.
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