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जिस प्रकार एक पंक्षी उड़ना चाहता है ठीक उसी तरह मानव मन भी पर्यटन का प्यासा होता है लेकिन अपनी भागती हुई जिंदगी से कुछ पल फुर्सत के निकालना भी जब मुश्किल है तो ऐसे में पर्यटन का समय कैसे मिले. अगर आप भी इसी तरह अपनी भागती जिंदगी से परेशान हैं और आपके अंदर पर्यटन की जिज्ञासा अधिक नहीं हो पाती है तो हम आपके लिए ब्लॉग की ऐसी श्रृखंला ले कर आए हैं जिसे पढ़ आपके अंतर्मन में छिपी जिज्ञासा प्रबल इच्छा बन जाएगी.
आज हम गुजरात के पर्यटक स्थलों में से सबसे पवित्र और भक्तिमय स्थल सोमनाथ मंदिर के दर्शन करेंगे. सोमनाथ भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगो में से एक है. भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिम में अरब सागर के तट पर स्थित आदि ज्योतिर्लिंग श्री सोमनाथ महादेव मंदिर की छटा ही निराली है. यह तीर्थस्थान देश के प्राचीनतम तीर्थस्थानों में से एक है.
यह लिंग शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से पहला ज्योतिर्लिंग माना जाता है. ऐतिहासिक सूत्रों के अनुसार आक्रमणकारियों ने इस मंदिर पर 6 बार आक्रमण किया. इसके बाद भी इस मंदिर का आज भी अपने अस्तित्व बना हुआ है. कहा जाता है कि पहले यह मंदिर काफी संपन्न हुआ करता था. लेकिन बार-बार लुटने की वजह से आज इसमें से ज्यादातर रत्न-मणि गायब हैं.
कृष्ण की मरणभूमि
सोमनाथ मंदिर विश्व प्रसिद्ध धार्मिक व पर्यटन स्थल है. मंदिर प्रांगण में रात साढे सात से साढे आठ बजे तक एक घंटे का साउंड एंड लाइट शो चलता है, जिसमें सोमनाथ मंदिर के इतिहास का बडा ही सुंदर सचित्र वर्णन किया जाता है. लोककथाओं के अनुसार यहीं श्रीकृष्ण ने देहत्याग किया था. इस कारण इस क्षेत्र का और भी महत्व बढ गया. ऐसी मान्यता है कि श्रीकृष्ण भालुका तीर्थ पर विश्राम कर रहे थे. तब ही शिकारी ने उनके पैर के तलुए में पद्मचिन्ह को हिरण की आंख जानकर धोखे में तीर मारा था. तब ही कृष्ण ने देह त्यागकर यहीं से वैकुंठ गमन किया. इस स्थान पर बड़ा ही सुन्दर कृष्ण मंदिर बना हुआ है.
भव्यता और कला का सूचक
यह मंदिर गर्भगृह, सभामंडप और नृत्यमंडप- तीन प्रमुख भागों में विभाजित है. इसका 150 फुट ऊँचा शिखर है. इसके शिखर पर स्थित कलश का भार दस टन है और इसकी ध्वजा 27 फुट ऊँची है. इसके अबाधित समुद्री मार्ग- त्रिष्टांभ के विषय में ऐसा माना जाता है कि यह समुद्री मार्ग परोक्ष रूप से दक्षिणी ध्रुव में समाप्त होता है.
महादेव शिव की तपस्या से लेकर समुद्र की सैर तक सब आपको यहां मिलेगा, इसकी छवि और महिमा को शब्दों में बता ही नहीं सकते हैं क्योंकि यह पहले ही वर्णित है कि यह द्वादशलिंग और महातीर्थों में से एक है.
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