अयोध्या के अस्तित्व से जुड़ी सरयू नदी की पवित्रता खतरे की ओर अग्रसर है। मोक्षदायिनी सरयू को आज खुद संरक्षण की दरकार है। उसे श्रीराम जैसा तारणहार चाहिए। नदी में प्रतिदिन पहुंच रहे हजारों मिलियन लीटर शहर के प्रदूषित जल के प्रबंधन को लेकर यदि समय से न चेता गया तो प्रदूषण रूपी महामारी से ग्रस्त हो रही सरयू का जल कुछ दिनों बाद आचमन के लायक भी नहीं रह जाएगा। प्रदूषण से मुक्ति पाने के लिए वृहद स्तर पर संरक्षण की मांग कर रही सरयू को बचाने के लिए कोई ठोस योजना शासन प्रशासन के पास नहीं है। सरयू को इस प्रदूषण से बचाने के लिए आवश्यक सीवरेज ट्रिटमेंट प्लांट जिले में है ही नहीं। सरयू की ओर तेजी से बढ़ रहे प्रदूषण को रोकने के लिए जनता में जागरूकता और शासकीय इच्छाशक्ति का अभाव प्रत्यक्ष दिखाई पड़ रहा है। स्थानीय स्तर पर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा लाख प्रयास किये जाने के बावजूद लोगों द्वारा अपशिष्ट पदार्थ को इधर-उधर फेंक देने से भी प्रदूषण बढ़ता है, जिसके निस्तारण के लिए बनाई गई नगरीय ठोस अपशिष्ट हथालन व प्रबन्धन योजना शासनस्तर पर धूल फांक रही है पर्यावरण संरक्षण सम्बंधी योजनाओं की दुर्दशा को देखकर लगता है कि यहां पर्यावरण संरक्षण के दावे दिखावा लगते हैं।
गंगा की तरह सरयू पर भी प्रदूषण की काली छाया मंडराने लगी है। सरयू के संरक्षण को लेकर न तो लोगों में जागरूकता दिख रही है और न ही हमारे जनप्रतिनिधि ही इस मामले को लेकर जागरूकता दिखा रहे हैं। शायद उन्हें सरयू के पूरी तरह गंदा हो जाने का इंतजार है। सरयू किस कदर प्रदूषित हो रही इस मामले में इस जिले का उदाहरण एक बानगी मात्र है। जिले के भीतर सरयू की अविरल धारा में प्रतिदिन 20 से 25 मिलियन लीटर शहर कर दूषित पानी गिरता है। शहर की एक लाख 80 हजार जनता द्वारा जल निकासी के मानक के रूप में यह दूषित पानी शहर के पांच नालों से होकर सरयू में पहुंचता है। बढ़ती जनसंख्या के साथ-साथ दूषित जल निकासी का भी मानक बढेगा और सरयू प्रदूषित होती चली जाएगी यह तय है। सरयू को इस महामारी से बचाने के लिए जिले में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट है ही नहीं। यह प्लांट न होने से सरयू में प्रवाहित हो रहे दूषित जल से नदी के पानी में घुले डिजाल्व आक्सीजन की मात्रा कम होती जाएगी, जिससे नदी में रहने वाले जलचर प्राणी मरने लगेगें और नदी का पानी पीने लायक भी रह नहीं जाएगा।
सरयू को प्रदूषण से बचाने के लिए आवश्यक सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट की स्थापना को लेकर कोई प्रयास न तो शासन की ओर से फलीभूत हो रहा है और न ही स्थानीय जनप्रतिनिधियों द्वारा आवाज ही उठाई जा रही है। पहाडों से निकल कर धारातल पर आने वाली नदियों के चेहरे गंदगी से मुरझाते जा रहे हैं। इन नदियों के तट पर खडे हो कर गौर से देखिए तो लगता है कि पानी का विशाल आंचल फैलाएं ये नदिया हमसे संरक्षण मांग रहीं हैं।
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