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पीछे छूटा पर्यावरण संरक्षण

अभेद्य
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विकास की अंधी

Climate-Neutral

दौड़ में पर्यावरण संरक्षण मीलों

पीछे छूट गया है। उदाहरण के लिए विश्‍व पटल पर रामनगरी के नाम से विख्‍यात और मंडल मुख्‍यालय कहे जाने वाले मैं सिर्फ अपने जिले की बात करूं तो मोक्षदायिनी सरयू से लेकर जिले की आबो-हवा इस कदर प्रदूषित हो चली है कि हर सांस के साथ प्रदूषण का जहर मानव शरीर में प्रवेश कर रहा है। ध्वनि प्रदूष

ण के कारण फैजाबाद व अयोध्या शहर बहरेपन के मुहाने पर खड़ा है। इन समस्याओं से बचने के लिए न तो जनता जागरुक है और न ही शासन-प्रशासन को इसकी चिंता।

आधुनिकता को पाने के लिए प्राकृतिक संसाधनों का क्षरण आज के दौर में आम बात हो गई है। फोरलेन पाने के लिए जहां सड़क के किनारे लगे सैकड़ों वृक्ष काट डाले गये वहीं कल कारखानों से निकलने वाले प्रदूषित पदार्थो का प्रबंधन न करने की शासकीय इच्छाशक्ति के अभाव में हम पर्यावरण संरक्षण कमजोर होता जा रहा है। सरयू की अविरल धारा में प्रतिदिन 20 से 25 मिलियन लीटर शहर कर दूषित पानी गिरता है। शहर की एक लाख 80 हजार से अधिक जनता द्वारा जल निकासी के मानक के रूप में यह दूषित पानी शहर के पांच नालों से होकर सरयू में पहुंचता है। बढ़ती जनसंख्या के साथ-साथ दूषित जल निकासी का भी मानक बढ़ेगा इसमें कोई संदेह नहीं है, और इसी के साथ सरयू प्रदूषित होती चली जाएगी यह भी तय है। सरयू को इस महामारी से बचाने के लिए जिले में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट है ही नहीं। यह प्लांट न होने से सरयू में प्रवाहित हो रहे दूषित जल से नदी के पानी में घुले डिजाल्व आक्सीजन की मात्रा कम होती जाएगी, जिससे नदी में रहने वाले जलचर प्राणी मरने लगेंगे और नदी का पानी पीने लायक भी नहीं रह जाएगा। यही हाल जिले में प्रतिदिन निकलने वाले घरेलू कूड़े कचरे की प्रबंधन योजना का भी है।

घरों से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थो से वायु प्रदूषण की मात्रा बढ़ती जा रही है। जिले में सिर्फ अयोध्या और फैजाबाद शहर से प्रतिदिन चालिस टन से अधिक घरेलू कूड़ा कचरा निकलता है, जिसके निस्तारण के लिए बनाई गई नगरीय ठोस अपशिष्ट हथालन व प्रबन्धन योजना शासनस्तर पर धूल फांक रही है। ध्वनि प्रदूषण की बात करे तो शहर के विभिन्न क्षेत्रों में ध्वनि प्रदूषण का स्तर भिन्न-भिन्न है और मानक से अधिक है। हर क्षेत्र में प्रतिदिन 60 डेसी बिल से अधिक ध्वनि मापी गई है, जो धीरे-धीरे मनुष्य की सुनने की क्षमता कम कर सकती है। ध्वनि प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए कुछ साल पहले शहर में  एकल मार्ग की व्यवस्था की गई थी लेकिन यह व्यवस्था ज्यादा दिन नहीं चल पायी। वाहनों की बढ़ती तादात के चलते बढ़े ध्वनि प्रदूषण से शहर का साईलेंट जोन कहा जाने वाला क्षेत्र भी शोर शराबे से बच नहीं सका। वाहनों की जांच के मामले में परिवहन विभाग पिछड़ा, जिसके चलते प्रतिबंधित होने के बावजूद प्रेशर हार्न शहर में बचते आज भी सुनाई पड़ते हैं। पर्यावरण से लगातार हो रहे खिलवाड़ से मानव जीवन की ओर बढ़ते खामोश खतरे से बेपरवाह शासन प्रशासन की शिथिलता का परिणाम आने वाली पीढि़यों को भुगतना पड़ सकता है। अयोध्‍या-फैजाबाद में प्रदूषण की इस स्थिति को तो पर्यावरण प्रदूषण की एक नजीर के रूप में प्रस्‍तुत किया है। कमोवेश ऐसी स्थिति आज पूरे देश में है। एक पेड लगाने के बजाए सैकडों वृक्ष काट डाले जा रहे हैं। पौध रोपड के नाम पर आने वाला धन विभाग में बंदरबाट की भेंट चढ जाता है। एक पेड लगाया और एक हजार का बजट चट कर जाने वाली प्रवृत्ति जब नौकरशाहों के अंदर से नहीं समाप्‍त होती देश में पर्यावरण संरक्षण की बात करना भी सार्थक नहीं होगा।

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