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सूरत बदलने की तैयारी है पर सीरत की चिंता नहीं

अभेद्य
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मरीजो की सेहत की ओर सरकार बहुत ध्‍यान दे रही है। तरह- तरह की योजनाएं चला रही है। पर मरीजों के लिए सर्वाधिक आवश्‍यक अपने कर्मचारियों के बरताव में सुधार की ओर भी सरकार को ध्‍यान देना चाहिए। सरकार को अस्‍पतालों की सूरत बदलने की चिंता है लेकिन सीरत का ख्‍याल बिकुल नहीं। नए भवन और नई मशीनों से अस्‍पतालों को नया स्‍वरूप तो मिल जाएगा लेकिन मरीज के लिए सर्वाधिक आवश्‍यक स्‍वास्‍थ्‍यकर्मियों के व्‍यवहार में सुधार कैसे आएगा इस पर ध्‍यान देने की जरूरत है। सरकारी अस्‍पतालों में पहुंचने वाली अधिकांश जनता आज कर्मचारियों के उपेक्षात्‍मक व्‍यवहार से पीडित है। मरीजों को अस्‍पताल में जो सेवा भाव मिलना चाहिए उन मानवीय मूल्‍यों का आज की चिकित्‍सा पद्यति में पूरी तरह पतन देखने को मिल रहा है। कर्मचारियों के दुर्व्‍यवहार से जुडी घटनाएं अक्‍सर इस बात की नजीर के रूप में सामने आती रही हैं। कहते हैं कि मरीज के ठीक होने में  अस्‍पताल की दवाओं से ज्‍यादा सेवाभाव महत्‍वपूर्ण होता है। यही व्‍यवस्‍था अस्‍पताल को अच्‍छा बनाती है और यही अव्‍यवस्‍था बढाती है। चिकित्‍सक मानते हैं कि कर्मचारियों की कमी से वर्क लोड बढने के कारण कर्मचारियों की कार्यक्षमता में कमी आ रही है, जिससे उनमें चिढचिढापन बढ रहा है। लेकिन दलील चाहे जो हो डाक्‍टारों और कर्मचारियों का यह रूखा व्‍यवहार दूर दराज से आने वाले मरीजों की भावनाओं पर भारी पडता है। कोई महिला अस्‍पताल गेट पर शिशु को जन्‍म दे देती है तो कोई देखरेख के अभाव में वार्ड में दम तोड देता है। राजकीय अस्‍पतालों में बेहतर चिकित्‍सा की आस लेकर आने वाले मरीजों को कर्मचारियों की इसी कुण्‍ढा के बीच अपना दिन काटना पडता है। चिकित्‍सक कहते हैं कि कर्मचारियों के व्‍यवहार का असर भी मरीज की सेहत पर पडता है। मरीज के साथ किया गया सहानुभूति पूर्ण व्‍यवहार उसे नया जीवन दे सकता है। आज अस्‍पतालों में रंग रोगन से ज्‍यादा आवश्‍यक है कि अस्‍पताल के कर्मचारियों को उनके दायित्‍वों का बोध कराया जाए। इस संबंध में उनकी काउंसिलिंग की जाए जिससे उनके व्‍यवहार में बदलाव आ सके ताकि राजकीय अस्‍पतालों को जनता मजबूरी के तौर  इस्‍तेमाल न करे।

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